अर्द्धसैनिक बल, विशेष बल अौर उन इलाकों में मौजूद पुलिस तक आदिवासियों को इस देश का नागरिक नहीं मानती अौर वैसा ही उनके साथ व्यवहार करती है. यह सब कुछ इसलिए हो रहा है कि आदिवासी इलाकों में ही संसाधन (खनिज अौर वन संपदा) तथा भूमि मौजूद है, जिसका सरकार दोहन करना चाहती है.
आदिवासी क्षेत्रों में सैन्यीकरण की यही वजह है. प्रो अपूर्वानंद गुरुवार को एसडीसी सभागार में आयोजित सेमिनार में मुख्य अतिथि के तौर पर बोल रहे थे. सेमिनार का विषय था सैन्यीकरण व समुदाय पर उसका प्रभाव. सेमिनार बिरसा एमएमसी अौर नारा संस्था के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था. इस अवसर पर फादर स्टेन स्वामी ने अपने वक्तव्य में कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में सैन्यीकरण उन इलाके के लोगों के लिए अन्याय है. जिसका प्रतिरोध करना ही होगा. उन्होंने कहा कि झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में सैन्यीकरण की वजह से पारंपरिक मुंडा मानकी, पड़हा व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गयी हैं. सरकार ने अघोषित रूप से आपातकाल की स्थिति ला दी है. हमें अपनी पुरानी व्यवस्थाअों को पुन: जीवित करना होगा, यही एकमात्र रास्ता है. फिलीप कुजूर ने कहा कि सैन्यीकरण का समुदाय को गहरा आघात लगा है. इससे झारखंडी समाज की मूल व्यवस्था चरमरा गयी है. अन्य वक्ताअों ने भी इस विषय पर अपने विचार रखे. कार्यक्रम में समुदाय पर सैन्यीकरण की वजह से पड़ने वाले प्रभाव पर प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किया गया. इस अवसर पर उमेश नजीर, विकास किंडो, अमित अग्रवाल सहित अन्य वक्ताअों ने भी संबोधित किया.