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राज्य में पांच लाख बच्चे अति कुपोषित
सर्वे रिपोर्ट : कुपोषण बड़ी समस्या, झारखंड देश में दूसरे नंबर पर, 56.5 फीसदी बच्चे कुपोषित रांची : झारखंड में कुपोषण एक बड़ी समस्या है. खास कर बच्चों के लिए यह जानलेवा साबित हो रहा है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-तीन की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग 56.5 फीसदी है. राज्य […]
सर्वे रिपोर्ट : कुपोषण बड़ी समस्या, झारखंड देश में दूसरे नंबर पर, 56.5 फीसदी बच्चे कुपोषित
रांची : झारखंड में कुपोषण एक बड़ी समस्या है. खास कर बच्चों के लिए यह जानलेवा साबित हो रहा है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-तीन की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग 56.5 फीसदी है. राज्य में पांच लाख बच्चे अति कुपोषित हैं. यह जानना दुखद है कि झारखंड में हर वर्ष 46 हजार बच्चों की मौत हो जाती है.
यहां प्रति एक हजार जीवित जन्म लेने बच्चों में से 55 एक से पांच वर्ष में, 38 जन्म के पहले वर्ष तक व 24 जन्म के 28 दिनों के अंदर ही मर जाते हैं. जन्म के 28 दिनों के अंदर मर जाने वाले नवजात क ी संख्या लगभग 19 हजार है. आम तौर पर एक स्वस्थ नवजात का वजन 2.5 किलो होना चाहिए. इधर झारखंड के सभी जिलों में इससे कम वजन के बच्चे पैदा होते हैं. गुमला व सिमडेगा में तो 55 फीसदी नवजात कम वजन के होते हैं. इससे इनकी मृत्यु दर बढ़ जाती है.
क्या है कारण
कुपोषण के अलावा बच्चों की मौत मातृ व शिशु सुरक्षा कार्यक्रम का बेहतर क्रियान्वयन न होने, संस्थागत प्रसव की कमी, कुल प्रजनन दर अधिक होने, सौ फीसदी टीकाकरण न होने तथा नवजात की देखभाल में कमी से होती है. गर्भवती माताओं की उचित देखभाल न होने से भी नवजात कुपोषित पैदा होता है.
कुपोषण से मुक्ति के लिए सरकारी प्रयास
आंगनबाड़ी केंद्र
राज्य भर के 38432 आंगनबाड़ी केंद्रों के सहारे छह वर्ष तक के बच्चों को पोषाहार उपलब्ध कराया जाता है.
नियमित टीकाकरण
नवजात के लिए नियमित टीकाकरण का कार्यक्रम भी चलाया जाता है. टीकाकरण टीबी, डिप्थीरिया, कुकुर खांसी, टेटनस, पोलियो, खसरा व हेपेटाइटिस-बी जैसी बीमारियों के लिए होता है.
बच्चों को विश्लेष खुराक
इस योजना के तहत बच्चों को विटामिन-ए दी जाती है.
एमटीसी सेंटर
अति कुपोषित बच्चों के लिए सरकार ने विभिन्न अस्पतालों तथा स्वास्थ्य केंद्रों मे कुपोषण उपचार केंद्र (एमटीसी) की स्थापना की है. यहां कुपोषित बच्चों को रख कर उनका विशेष ख्याल रखा जाता है.
आंगनबाड़ी ने सही रोल नहीं निभाया
राज्य के कुल 38432 आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों, महिलाओं व किशोरियों को पोषाहार उपलब्ध कराया जाता है, पर इन केंद्रों को पोषाहार के लिए मिलने वाली धन राशि की बंदरबांट होती रही है. प्रधान महालेखाकार की तीन जिलों के टेस्ट चेक (ऑडिट) रिपोर्ट में इसका खुलासा हो चुका है. गढ़वा, दुमका व धनबाद जिले में की गयी यह जांच वर्ष 2006 से 2011 के बीच आंगनबाड़ी केंद्रों में विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन व विभागीय लोगों की कार्यशैली पर आधारित थी.
गढ़वा के केंद्रों पर साल में तीन सौ दिन के बदले वर्ष में सिर्फ 21 से 251 दिन तथा धनबाद के आंगनबाड़ी केंद्रों में दो से 42 दिन ही पोषाहार दिया गया था. अब सरकार केंद्रों पर रेडी-टू-इट पोषाहार उपलब्ध कराती है.
तीन साल तक नहीं मिला विटामिन-ए
राज्य भर के करीब 38 लाख बच्चों को गत तीन वर्षो तक विटामिन-ए की खुराक नहीं मिली. ये बच्चे पांच वर्ष तक की उम्र के हैं. चिकित्सकों का कहना है कि बच्चों को साल में विटामिन के दो डोज दिये जाते हैं.
गत तीन वर्ष तक विटामिन-ए नहीं देने का असर भविष्य में दिखेगा. चिकित्सकों के अनुसार विटामिन-ए की कमी से दृष्टि दोष व अंधापन का खतरा रहता है. वहीं संक्रमण से लड़ने में भी यह विटामिन सहायक है. कुपोषित बच्चों को इसकी खास जरूरत होती है.
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