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139 बंदियों में जगी रिहाई की आस
रांची : सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद झारखंड की जेलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 139 बंदियों में रिहाई की आस जगी है. राज्य की जेलों में अभी 139 बंदी ऐसे हैं, जिन्हें अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी. बंदी 14 साल की सजा काट चुके हैं. हालांकि इनमें […]
रांची : सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद झारखंड की जेलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 139 बंदियों में रिहाई की आस जगी है. राज्य की जेलों में अभी 139 बंदी ऐसे हैं, जिन्हें अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी. बंदी 14 साल की सजा काट चुके हैं.
हालांकि इनमें से वैसे बंदी, जिन्हें दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले में आजीवन कैद की सजा दी गयी है या फिर जिनके मामलों की जांच केंद्रीय एजेंसी (सीबीआइ व एनआइए) ने की है, उन्हें इस फैसले से राहत नहीं मिलेगी. राज्य सरकार के पास ऐसे बंदियों की रिहाई का अधिकार नहीं होगा. सरकार और जेल प्रशासन सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति मिलने का इंतजार कर रही.जानकारी के मुताबिक पहले आजीवन कारावास का मतलब 14 साल तक जेल के भीतर रहना होता था.
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि आजीवन कारावास का मतलब पूरी जिदंगी जेल के भीतर रहना है, लेकिन राज्यों में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित कमेटी को यह अधिकार था कि 14 साल तक जेल के भीतर सजा काट चुके बंदियों के व्यवहार व गतिविधियों की समीक्षा कर उन्हें रिहा कर सकती है. जुलाई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में राज्य सरकारों के इस अधिकार को खत्म कर दिया था. इसके बाद ऐसे 139 बंदियों को रिहा होने का उम्मीद समाप्त हो गयी थी.
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