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रिम्स कॉटेज क्या टूरिस्ट प्लेस है: कोर्ट
रांची : हाइकोर्ट में सोमवार को वीआइपी बंदियों को रिम्स कॉटेज में रख कर इलाज कराने के मामले में स्वत: संज्ञान से दर्ज क्रिमिनल याचिका पर सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस वीरेंदर सिंह व जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए रिम्स में बंदियों के स्पेशल ट्रीटमेंट पर नाराजगी जतायी. कोर्ट ने […]
रांची : हाइकोर्ट में सोमवार को वीआइपी बंदियों को रिम्स कॉटेज में रख कर इलाज कराने के मामले में स्वत: संज्ञान से दर्ज क्रिमिनल याचिका पर सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस वीरेंदर सिंह व जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए रिम्स में बंदियों के स्पेशल ट्रीटमेंट पर नाराजगी जतायी. कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि कानून का सख्ती से पालन कराया जाये.
खंडपीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए पूछा कि क्या रिम्स का कॉटेज टूरिस्ट स्पॉट है, जहां वीआइपी बंदियों का अलग से ट्रीटमेंट चलता है. वैसे बंदियों को स्पेशल ट्रीटमेंट देने की क्या जरूरत है. कॉटेज आरामगाह स्थल नहीं है. वीआइपी देख कर इलाज में भेदभाव नहीं हो, बल्कि सभी मरीजों के इलाज की व्यवस्था एक समान हो. दिखावा करनेवाली मानसिकता बदलनी चाहिए. रिम्स के चिकित्सक बिना तबादला के भय व दबाव के मरीजों का बेहतर इलाज करें.
खंडपीठ ने कहा कि रिम्स की व्यवस्था को ऐसा बनाया जाये, जिसमें गरीब से गरीब मरीज (आम लोगों का) का बिना खर्च के बेहतर इलाज हो सके. जब मरीज ठीक हो कर घर जायें, तो पास-पड़ोस के लोगों को वे रिम्स की अच्छाइयों की जानकारी दे सके. खंडपीठ ने राज्य सरकार के जवाब पर, प्रार्थी को प्रति उत्तर दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय प्रदान किया. मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी.
इससे पूर्व राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दायर कर बताया गया कि रिम्स में बंदियों के इलाज के लिए गाइड लाइन निर्धारित कर कर दिया गया है. स्वास्थ्य विभाग के प्रदान सचिव के हस्ताक्षर से आदेश जारी किया गया है. किसी भी बंदी की जांच पहले ओपीडी में होगी. उसके बाद जरूरत पड़ने पर भरती लिया जायेगा. मेडिकल बोर्ड की अनुशंसा पर अधिकतम दो सप्ताह तक बंदी को रख कर इलाज किया जा सकता है.
इससे अधिक इलाज पर संबंधित जेल अधीक्षक को अदालत से अनुमति लेनी जरूरी होगी. ददई दुबे के मामले में राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि उनका इलाज रिम्स में होगा या नहीं, यह मेडिकल बोर्ड ही तय करेगा. मामले के एमीकस क्यूरी अधिवक्ता निलेश कुमार ने सुनवाई के दौरान पूर्व मंत्री ददई दुबे की दबंगई की ओर खंडपीठ का ध्यान आकृष्ट कराया.
उन्होंने अखबारों में प्रकाशित खबरों की जानकारी देते हुए कहा कि एक तरफ वीआइपी बंदियों के इलाज के लिए नियम बनाया जा रहा है, वहीं रिम्स में इलाज के लिए श्री दुबे की ओर से चिकित्सकों पर दबाव डाला जा रहा है. रिम्स प्रशासन ने श्री दुबे को कॉटेज भी दे दिया है.
गौरतलब है कि प्रभात खबर में तीन सितंबर 2013 को वीआइपी बंदियों के लिए आरामगाह बन गया है रिम्स नामक प्रकाशित खबर जस्टिस एचसी मिश्र की अदालत ने स्वत: संज्ञान लिया था.
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