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गड़बड़ी करनेवाले आइएएस अफसरों पर होगी कार्रवाई
बातचीत : राज्य के मुख्य सचिव राजीव गौबा ने प्रभात खबर से कहा भ्रष्टाचार में लिप्त होने या गड़बड़ी करने वाले आइएएस अफसरों पर भी कार्रवाई की जायेगी. केवल छोटे अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई हो, ऐसा नहीं होगा. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के गठन के लिए नियम […]
बातचीत : राज्य के मुख्य सचिव राजीव गौबा ने प्रभात खबर से कहा
भ्रष्टाचार में लिप्त होने या गड़बड़ी करने वाले आइएएस अफसरों पर भी कार्रवाई की जायेगी. केवल छोटे अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई हो, ऐसा नहीं होगा. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के गठन के लिए नियम कानून बनाये जा रहे हैं. एसीबी को निगरानी के मुकाबले अधिक शक्तियां दी जा रही हैं. इसमें इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि वह इन शक्तियों का इस्तेमाल किसी को परेशान करने या धन उगाही के लिए न करे सके.
व्यापारिक गतिविधियों में किसी भी पक्ष को उसके द्वारा किये गये निवेश के अनुरूप ही भागीदारी मिलती है. एनटीपीसी के साथ ज्वाइंट वेंचर बनाने के मामले में भी यही नीति अपनायी गयी है. राजस्व बढ़ाने के उद्देश्य से नयी उत्पाद नीति बनायी जा रही है. राज्य के मुख्य सचिव राजीव गौबा ने प्रभात खबर के विशेष संवाददाता शकील अख्तर के साथ बात चीत के दौरान यह सब कहा. उन्होंने विभिन्न मुद्दों से जुड़े सवालों पर बहुत की बेबाकी से जवाब दिया.
राज्य में भ्रष्टाचार के मामले में ‘जीरो टॉलरेंस’ की बात कही जाती है. क्या यह सिर्फ छोटे अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए है ?
नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है. गड़बड़ी करनेवाले आइएएस अफसरों पर भी कार्रवाई होगी. अभी अभी दो आइएएस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही का आदेश दिया गया है. इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ मामला काफी दिनों से लंबित चल रहा था. पर, मैं इन अधिकारियों का नाम नहीं बताऊंगा.
सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर काबू पाने के उद्देश्य से निगरानी को सक्रिय कर दिया गया है. इसलिए घूस लेते अधिकारी व कर्मचारी पहले के मुकाबले अधिक पकड़े जा रहे हैं. भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए सरकार को जनता का सहयोग भी चाहिए. जनता इसमें सरकार की मदद करे.
नाम नहीं बताने पर बड़े अफसरों के खिलाफ सरकार की कार्रवाई का संदेश जनता तक कैसे पहुंचेगा? नाम नहीं, तो कम से कम कारण बतायें?
मैं नाम तो नहीं बताऊंगा. हां थोड़ा कारण बता सकता हूं. जिन आइएएस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही का आदेश दिया गया है, उनमें से एक अधिकारी ने खूंटी और चतरा में उपायुक्त की हैसियत से काम करते हुए गड़बड़ी की थी. इस अधिकारी पर खूंटी में कुछ इंजीनियरों को मनमाने तरीके से अग्रिम देने और चतरा में मनरेगा में गड़बड़ी करने का आरोप है.
खूंटी में हुई गड़बड़ी से जुड़े मामले में इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी है. चतरा में भी मनरेगा में गड़बड़ी करनेवाली संस्थाओं के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की गयी थी. पर, आइएएस अफसर पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी थी. दूसरा मामला समाज कल्याण निदेशक के रूप में काम करते हुए गड़बड़ी करनेवाले एक तत्कालीन आइएएस अधिकारी का है. शायद घटना के समय वर्तमान विकास आयुक्त, समाज कल्याण सचिव के रूप में पदस्थापित थे.
निगरानी के बदले एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) बनाने की बात हो रही है. पर, इस मामले में अब तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है?
इस दिशा में तेजी से काम चल रहा है. किसी इकाई के लिए नियम कानून आदि बनाने में थोड़ा समय तो लगता ही है. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसीएक्ट) में राज्य को विशेष न्यायालयों के गठन की शक्तियां दी गयी हैं. यहां भ्रष्टाचार से जुड़े मामले की तेजी से सुनवाई करने और संपत्ति जब्त करने के लिए न्यायालयों के गठन से संबंधित अध्यादेश पर कैबिनेट की सहमति हो चुकी है. बिहार ने भी ऐसे नियम बनाये हैं. ऐसी जानकारी मिली है कि वहां लागू नियम पर कानूनी विवाद पैदा हो गया है. इसलिए यहां हम लोग इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. कुछ विधि विशेषज्ञों की राय है कि सरकार द्वारा जारी किये जानेवाले अध्यादेश पर राष्ट्रपति की आवश्यक है.
इस बात के मद्देनजर केंद्र सरकार से बातचीत की जा रही है. हम लोग केंद्र से यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि इस मामले में राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है या नहीं. साथ ही इस बात की भी कोशिश कर रहे हैं कि अगर राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक हो तो वह हमें जल्दी मिल जाये.
यह तो न्यायालय के गठन की बात हुई. निगरानी के बदले एसीबी बनाने की कार्रवाई कहां तक पहुंची है. एसीबी को भ्रष्टाचार के मामलों में जांच करने की कितनी आजादी रहेगी?
एंटी करप्शन ब्यूरो के कामकाज आदि के लिए नियम कानून बनाये जा रहे हैं. उम्मीद है कि अगले 10-15 दिनों में एसीबी के कामकाज से जुड़े नियम कानून के प्रारूप को कैबिनेट की बैठक में पेश कर दिया जायेगा. जहां तक एसीबी को आजादी देने की बात है, तो वह दी जा रही है.
पर, इसके लिए बनाये गये नियम कानून में इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि एसीबी को दी जानेवाली आजादी लोगों को परेशान करने या पैसा कमाने का जरिया न बने. एसीबी में अधिकारियों व कर्मचारियों के चयन के मापदंड भी तय किये जा रहे हैं, ताकि संदेहास्पद भूमिकावाले अधिकारी या कर्मचारी इसमें शामिल नहीं हो सके. एसीबी के अधिकारियों को एसटीएफ आदि की तरह इन्सेंटिव दिये जाने पर भी विचार किया जा रहा है.
एनटीपीसी के साथ किये गये एमओयू पर कई तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं. यह कहा जा रहा है कि ज्वाइंट वेंचर कंपनी में 24 प्रतिशत का हिस्सा लेना राज्य के लिए नुकसान का सौदा है?
यह गलत धारणा है. व्यापार का सामान्य सिद्धांत यह है कि किसी कंपनी में जो जितना पूंजी लगाता है, उसे उतने ही प्रतिशत का हिस्सा मिलता है. एनटीपीसी के साथ ज्वाइंट वेंचर बनाने के लिए सरकार ने पहले पीटीपीएस की परिसंपत्तियों जैसे जमीन, डैम, मशीन आदि का मूल्यांकन कराया.
पीटीपीएस की परिसंपत्तियों के मूल्य के हिसाब से ही सरकार ने एनटीपीसी के साथ बननेवाले ज्वाइंट वेंचर में अपना हिस्सा लिया. सरकार चाहती, तो ज्वाइंट वेंचर में 50 प्रतिशत या उससे अधिक की हिस्सेदारी भी ले सकती थी. पर, इसके लिए उसे ज्वाइंट वेंचर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी के अनुरूप पूंजी निवेश करना पड़ता. मान लिया कि अगर सरकार और 25 प्रतिशत हिस्सेदारी लेती, तो उसे बाजार के कर्ज लेकर 6000 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश एनटीपीसी के साथ बननेवाले ज्वाइंट वेंचर में करना पड़ता.
इस कर्ज के बदले सरकार को हर साल सूद के रूप में भारी भरकम रकम चुकानी पड़ती. ऐसा करना राज्यहित में नहीं था. इसलिए एनटीपीसी के साथ बननेवाले ज्वाइंट वेंचर में पीटीपीएस की परिसंपत्तियों के मूल्य के अनुरूप ही हिस्सेदारी ली गयी. ज्वाइंट वेंचर में बननेवाली कंपनी शीघ्र ही काम शुरू कर देगी. इससे राज्य में बिजली की स्थिति में सुधार होगा.
प्रधानमंत्री के साथ होनेवाली वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में झारखंड के मुद्दे पर कोई बात हुई?
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के सहारे कई बार प्रधानमंत्री से बात हुई. इसमें रेलवे लाइन, फॉरेस्ट क्लियरेंस और कोल ब्लॉक आदि के मुद्दे शामिल थे.
विकास की गति को तेज करने के लिए कोई बदलाव?
विकास के लिए पहली जरूरत थी ‘पॉजिटिव माइंड सेट’. अब यह माइंड सेट बन गया है. सभी विभाग सक्रिय हो गये हैं. सभी कुछ नया करने की सोच रहे हैं. काम तेजी से हो, इसके लिए अभी एक जैसे कामवाले या उससे संबंधित विभागों को मिला कर एक विभाग बनाया गया है.
इससे काम करने में आसानी होगी. फाइलों का मूवमेंट कम हो जायेगा. पिछले दिनों विभागों व मंत्रियों की वित्तीय शक्तियां बढ़ायी गयी थी. इसके परिणाम स्वरूप अब तक 90 प्रतिशत राशि का स्वीकृति आदेश जारी करने में सफलता मिली है. पहले इसी प्रक्रिया में अधिक समय लगता था. कई नीतियां बनायी गयी हैं. विभिन्न प्रकार के उद्योग धंधों को बढ़ावा देने के लिए श्रम सहित दुकान प्रतिष्ठान नियमावली में बदलाव किया गया है. विकास योजनाओं में गड़बड़ी करनेवालों को दंडित किया जा रहा है.
राजस्व बढ़ाने के लिए कौन -कौन से कदम उठाये जा रहे हैं?
राजस्व बढ़ाने के उद्देश्य से वाणिज्य कर विभाग ने कई काम किये हैं. जैसे इंटिग्रेटेड चेकपोस्ट शुरू किया गया है. हर स्तर के व्यापारियों के असेसमेंट के लिए समय सीमा निर्धारित की गयी है. राज्य में उत्पाद से राजस्व कम मिलता है. इसे बढ़ाने के लिए नयी उत्पाद नीति बनायी जा रही है. नयी नीति बनाने के लिए मेरी ही अध्यक्षता में समिति बनायी गयी है.
राजधानी के विकास के लिए भी हो रहा है बहुत कुछ
मुख्य सचिव ने कहा है कि राजधानी की सड़कों के विकास के लिए पथ निर्माण विभाग को अतिरिक्त 100 करोड़ दिये गये हैं. इस राशि से 33 सड़कों के मजबूतीकरण आदि का काम करना है. विभाग ने अब तक 20 सड़कों का काम शुरू कर दिया है. रांची शहरी क्षेत्र के विकास के लिए नगर निगम को 70 करोड़ रुपये दिये गये हैं. इस राशि से 10 पार्को का निर्माण किया जाना है. निर्माण कार्य वन विभाग द्वारा किया जायेगा. इसके अलावा 20 तालाबों का सुंदरीकरण भी करना है. रांची के लिए 350 करोड़ की लागत से ड्रेनेज सिवरेज के काम के लिए वर्क आर्डर दे दिया गया है. शहर में ये चीजें जल्द ही दिखने लगेंगी.
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