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संर्पूण क्रांति दिवस पर विशेष : संर्पूण क्रांति के प्रणोता लोकनायक जयप्रकाश

सत्येंद्र कुमार मल्लिक 5 जून 1974 को बिहार की राजधानी पटना में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एक विराट जुलूस निकला. लाखों लोग विधानसभा भंग करने की मांग के आवेदन-पत्रों पर लोगों के हस्ताक्षर लेकर पटना पहुंचे थे. जुलूस में पटनावासी भी काफी संख्या में शामिल हुए. जुलूस के आगे-आगे लाखों लोगों के हस्ताक्षरवाले […]

सत्येंद्र कुमार मल्लिक
5 जून 1974 को बिहार की राजधानी पटना में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एक विराट जुलूस निकला. लाखों लोग विधानसभा भंग करने की मांग के आवेदन-पत्रों पर लोगों के हस्ताक्षर लेकर पटना पहुंचे थे. जुलूस में पटनावासी भी काफी संख्या में शामिल हुए. जुलूस के आगे-आगे लाखों लोगों के हस्ताक्षरवाले आवेदन के बंडल से भरा ट्रक चल रहा था, उसके पीछे जयप्रकाश नारायण जी की जीप थी.
इनके पीछे छात्रों-युवाओं के साथ लोगों का हुजूम था. लगभग तीन घंटे में जुलूस राजभवन पहुंचा. लोकनायक जयप्रकाश नारायण और छात्र नेताओं ने राज्यपाल को आवेदन-पत्र सौंप कर कहा कि वर्तमान विधानसभा जनता का विश्वास खो चुकी है, इसलिए उसे भंग कर दिया जाये.
पांच जून को ही महामहिम राज्यपाल को विधानसभा भंग करने के लाखों हस्ताक्षरयुक्त आवेदन-पत्र सौंप कर लोकनायक जयप्रकाश के साथ जुलूस गांधी मैदान में आकर आमसभा में परिवर्तित हो गया. विराट सभा में लोकनायक जयप्रकाश ने घोषणा कि अब यह आंदोलन केवल विद्यार्थियों की 12 मांगों और विधानसभा भंग करने तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि अब यह संर्पूण क्रांति के लिए जनता की लड़ाई का रूप लेगा.
संपूर्ण क्रांति में सात घोषणाएं हुई. समाज में समानता एवं बंधुत्व की स्थापना के लिए सामाजिक क्रांति, आर्थिक विकेंद्रीकरण एवं आर्थिक समानता लाने के लिए आर्थिक क्रांति, राजनीतिक भ्रष्टाचार को समाप्त करना एवं राजनीतिक विकेंद्रीकरण के लिए राजनीतिक क्रांति, भारतीय संस्कृति रक्षा हेतु सांस्कृतिक क्रांति, शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाने एवं शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन के लिए शैक्षिक क्रांति, मनुष्यों के विचारों में जागृति उत्पन्न करने के लिए वैचारिक क्रांति एवं नैतिक-आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करने के लिए आध्यात्मिक क्रांति. इस क्रांति को सफल बनाने के लिए छात्रों को उत्तरदायित्व सौंपा गया. एक वर्ष के लिए पढ़ाई बंद करने को भी कहा गया.
लाखों लोगों का जुलूस शांतिपूर्ण था, लेकिन विराट जुलूस पर इंदिरा ब्रिगेड एवं कांग्रेस के लोगों ने गोलियां चलायी, डंडा चलाये एवं पत्थरों से हमला भी किया. इसके बावजूद जुलूस में शामिल लोगों ने एक कंकड़ भी जवाब में नहीं फेंका. लाखों लोगों की सभा में जयप्रकाश नारायण ने छात्रों एवं लोगों से वचन लिया था कि उत्तेजित होकर वे इसका बदला लेने की कोई कोशिश नहीं करेंगे.
जेपी आंदोलन का एक नारा था हमला चाहे जैसा होगा, हाथ हमारा नहीं उठेगा.
जयप्रकाश नारायण जी का व्यक्तित्व इंद्रधनुष जैसा था, उसमें अनेक रंग थे जिनमें से किसी एक को दूसरे से अलग करना मुश्किल था. स्वतंत्रता-मुक्ति की तलाश में जयप्रकाश नारायण जी साम्यवाद, समाजवाद और सवरेदय से होते हुए संपूर्ण क्रांति तक पहुंचे थे. उन्होंने देख लिया था कि संपूर्ण क्रांति के बिना न साम्य होगा न समाज का हित सधेगा और न सर्व के उदय का लक्ष्य पूरा होगा.
(लेखक जेपी विचार मंच, झारखंड के अध्यक्ष हैं)

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