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झालको : 26 माह से वेतन नहीं
रांची : झालको बंदी की कगार पर है. इस संस्था को काम नहीं मिल रहा है. इस कारण कर्मियों को 26 माह से वेतन नहीं मिल रहा है. कर्मियों को नियमित वेतन मिले, इसके लिए संस्था को कल्याणकारी घोषित करने का प्रस्ताव तैयार किया गया, लेकिन इसे अब तक कैबिनेट में नहीं भेजा गया है. […]
रांची : झालको बंदी की कगार पर है. इस संस्था को काम नहीं मिल रहा है. इस कारण कर्मियों को 26 माह से वेतन नहीं मिल रहा है. कर्मियों को नियमित वेतन मिले, इसके लिए संस्था को कल्याणकारी घोषित करने का प्रस्ताव तैयार किया गया, लेकिन इसे अब तक कैबिनेट में नहीं भेजा गया है.
तत्कालीन वित्त सचिव (एक मार्च 2012) सुखदेव सिंह ने संस्था को वेतनमद में ग्रांट देने से मना कर दिया था. उन्होंने उस समय के जल संसाधन सचिव को लिखा था कि झालको को ग्रांट तभी मिल सकता है, जब 26 अप्रैल 2005 की अधिसूचना को सुधारा जाये. इस अधिसूचना में झालको को वाणिज्यिक संस्था बताया गया था. संस्था को काम देने की जिम्मेदारी जल संसाधन विभाग की थी, इससे मिलनेवाले कमीशन की राशि से वेतन व अन्य खर्च चलाना था.
सीएमओ ने मांगी है जानकारी : मुख्यमंत्री सचिवालय ने जल संसाधन विभाग से झालको को कल्याणकारी संस्था के रूप में घोषित करने के संबंध में कार्रवाई की जानकारी मांगी है. इस संबंध में एक अप्रैल को मुख्यमंत्री सचिवालय में ज्ञापन दिया गया था.
सात मई 2015 को पत्र लिख कर जल संसाधन विभाग के उप सचिव हेमंत कुमार भक्त ने झालको से कल्याणकारी संस्था घोषित करने के मामले में समुचित कार्रवाई कर जानकारी देने का निर्देश दिया है, जबकि कल्याणकारी संस्था घोषित करने संबंधी संचिका कैबिनेट के प्रस्ताव के लिए विभागीय स्तर पर तैयार की गयी है.
हर साल चाहिए 60 करोड़ रुपये का काम
झालको कर्मियों का वेतन मद का खर्च हर साल 5.40 करोड़ रुपये है. इसके लिए झालको को हर साल 60 करोड़ रुपये का काम चाहिए. झालको के निर्माण के समय से एक बार भी 60 करोड़ रुपये का काम विभाग ने नहीं दिया है. झालको के निर्माण के समय कर्मियों की संख्या 303 थी. यह घटकर आज 175 हो गयी है. इसमें 142 चतुर्थवर्गीय कर्मचारी हैं.
भालको को दे दिया वेतन का पैसा
जल संसाधन विभाग ने 2014-15 में विशेष परिस्थिति में वेतन व अनुदान मद में बजटीय प्रावधान किया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस राशि का भुगतान बिहार के भालको कर्मियों को कर दिया गया. यहां के कर्मियों के लिए अनुपूरक बजट में राशि का प्रबंध किया गया, लेकिन बाद में इसे सरेंडर कर दिया गया.
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