ये हैं सिलवंती कुजूर. रांची वीमेंस कॉलेज में चपरासी की नौकरी करती हैं. 1971 में पति अधिक नशा करने के कारण चार बच्चों को सिलवंती के सहारे छोड़ कर चले गये. तीसरी कक्षा तक पढ़ाई करने के कारण वीमेंस कॉलेज में पति के जगह चपरासी की नौकरी लगी. किसी तरह एक बेटा और तीन बेटियों का खर्च चल पाती थी. बच्चों की शिक्षा के लिए दूसरे के घर पर बर्त्तन तक मांजने को विवश हुई. यह मेहनत तब रंग लायी जब बेटियों ने अपनी मुकाम हासिल कर ली. बेटी (ममता ) देवघर रमादेवी बाजला कॉलेज में लेक्चचर बनी, तो सबसे छोटी बेटी (मधु) रामगढ़ के केबी हाई स्कूल में शिक्षिका. बेटा रांची वीमेंस कॉलेज में अस्थायी रूप से क्लर्क का काम कर रहा है. सिलवंती कहती हैं कि पति के जाने के बाद कभी हिम्मत नहीं हारी. सिर्फ इस बात का जुनून था कि कब बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जायें. ताकि मेरे बच्चों को कभी दोबारा ऐसा दिन न देखना पड़े. मधु कहती हैं कि मां काम के प्रति आज भी उत्सुक है. उन्होंने बहुत संघर्ष किया है. अब हम उन्हें वह सारी खुशी देंगे.
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खुद चपरासी, बेटी को बनाया लेक्चरर
ये हैं सिलवंती कुजूर. रांची वीमेंस कॉलेज में चपरासी की नौकरी करती हैं. 1971 में पति अधिक नशा करने के कारण चार बच्चों को सिलवंती के सहारे छोड़ कर चले गये. तीसरी कक्षा तक पढ़ाई करने के कारण वीमेंस कॉलेज में पति के जगह चपरासी की नौकरी लगी. किसी तरह एक बेटा और तीन बेटियों […]
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