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सर्दी-खांसी की भी दवा उपलब्ध नहीं
जेनरिक दवा कहां? राज्य के जन औषधि केंद्रों का हाल बेहाल रांची : स्वास्थ्य मंत्री ने भले ही राज्य के अस्पतालों में जेनरिक दवाओं के प्रयोग का निर्देश दिया है, लेकिन राज्य के जन औषधि केंद्रों का हाल बेहाल है. राज्य के आठ केंद्र तो बंद होने के कगार पर हैं. मरीज दवा खरीदने तो […]
जेनरिक दवा कहां? राज्य के जन औषधि केंद्रों का हाल बेहाल
रांची : स्वास्थ्य मंत्री ने भले ही राज्य के अस्पतालों में जेनरिक दवाओं के प्रयोग का निर्देश दिया है, लेकिन राज्य के जन औषधि केंद्रों का हाल बेहाल है. राज्य के आठ केंद्र तो बंद होने के कगार पर हैं. मरीज दवा खरीदने तो आते हैं, लेकिन दवा नहीं होने के कारण उन्हें लौटना पड़ता है.
राज्य का सबसे बड़ा संस्थान रिम्स के जन औषधि केंद्र में सामान्य बीमारी : सर्दी-खांसी, बुखार, ब्लड प्रेशर एव सुगर की दवाएं नहीं हैं. जन औषधि केंद्र में मुश्किल से 50 दवाएं हैं, जिनमें से कई एक्सपायर्ड होने के करीब हैं. ऐसे में चिकित्सकों के लिखने के बावजूद मरीजों को सस्ती दवाएं नहीं मिल रही हैं. दवाओं के अभाव में गरीब मरीजों को महंगी दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं. यही हाल सदर अस्पताल के जन औषधि केंद्र का भी है. यहां के केंद्र में दवाओं का अभाव है, जिससे मरीजों को लौटना पड़ता है.
बंद होने के कगार पर आठ केंद्र
जन औषधि केंद्र 23 जिले में खोले गये थे, लेकिन कई की हालात खस्ता है. जानकारी के अनुसार राज्य के पाकुड़, दुमका, पलामु, रामगढ़, खूंटी, सरायकेला, बोकारो, गिरिडीह आदि केंद्र बंद होने के कगार पर हैं. इन केंद्रों पर दवाएं बिकती ही नहीं हैं. रिम्स और सदर अस्पताल के केंद्र अच्छे हालात में चलते थे, लेकिन इन केंद्रों में दवाओं का अभाव हो गया है. यहां मरीज पूछ कर दवा नहीं होने के कारण लौट जाते हैं.
ब्रांडेड दवा तीन से चार गुणा महंगी
जन औषधि केंद्र में मिलनेवाली जेनरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं की तुलना में काफी सस्ती है. ब्रांडेड दवाएं तीन से चार गुणा महंगी है. गैस की दवाएं चार से 13 रुपये में मिल जाती है. वहीं डायबिटीज की दवाएं पांच से 13 रुपये व बुखार की दवा तीन रुपये में मिल जाती है. कफ सिरप 14 रुपये में मिल जाती है, जो ब्रांडेड में 50 से 65 रुपये में मिलती है. ब्लड प्रेशर की दवा चार रुपये में मिल जाती है.
हर दिन लौटते हैं 20 से 25 मरीज : रिम्स के जन औषधि केंद्र से हर दिन 20 से 25 मरीज लौटते हैं, क्योंकि वहां दवा ही नहीं है. तीन महीने पहले इसी केंद्र पर प्रति दिन 80 से 100 मरीज दवा खरीदते थे. कई ऐसे मरीज भी थे, जो दूर-दराज से सस्ती दवाएं खरीदने आते थे.
हमें दवा मिल ही नहीं रही है, तो औषधि केंद्र को क्या उपलब्ध करायेंगे. बीटीपीआइ हमें दवा उपलब्ध कराती है. पांच कंपनी देश में जेनरिक दवा बनाती है. वह बीटीपीआइ को दवा देती है. हमारी 10 लाख की दवाएं फंसी हुई हैं. कई दवाएं एक्सपायर्ड हो गयी हैं.
अविनाश तिवारी, यूनिक फार्मा
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