सरकार ने विधानसभा में घोषणा की है कि दो माह के अंदर राज्य की स्थानीय नीति घोषित कर दी जायेगी. इसे देखते हुए प्रभात खबर कैसी हो हमारी स्थानीय नीति श्रृंखला चला रहा है. कैसी हो स्थानीय नीति, इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार हमें मेल कर सकते हैं या फिर लिख कर भेज सकते हैं. हमारा पता है : सिटी डेस्क, प्रभात खबर, 15-पी, कोकर इंडस्ट्रीयल एरिया, रांची या फिर हमें मेल करें.
राज्य गठन की तिथि हो स्थानीयता का आधार
डॉ सुनील कुमार सिन्हा
झारखंड में स्थानीय कौन हो, इस सवाल को राज्य गठन के साथ ही यहां के राजनीतिक दलों ने अहम मुद्दा बना दिया. राजनीतिक पार्टी, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता सभी अपने-अपने तरीके से इसकी व्याख्या कर रहे हैं. जिस प्रकार देश की आजादी के समय जो यहां रहे, उन्हें भारत की नागरिकता प्राप्त हुई, उसी प्रकार 15 नवंबर 2000 के पूर्व जो भी झारखंड में रह रहे हैं उन्हें स्थानीय माना जाये.
राज्य गठन की तिथि को ही स्थानीयता का कट ऑफ डेट माना जाय. जो भी व्यक्ति राज्य गठन के पूर्व यहां आकर बसे हैं, यदि वे यहां रहने का अपना प्रमाण प्रस्तुत करते हैं, तो उन्हें स्थानीय होने का लाभ मिलना चाहिए. 15 नवंबर 2000 के पूर्व का अपना राशन कार्ड, बैंक खाता, वोटर आइडी, ड्राइविंग लाइसेंस, अचल संपत्ति, शैक्षणिक प्रमाण पत्र समेत अन्य निवास का कोई प्रमाणपत्र दिखाता हो तो उसे स्थानीय माना जाये. 15 नवंबर 2000 के अलावा और कोई भी कट ऑफ डेट तय करना कहीं न कहीं किसी न किसी के साथ बेईमानी होगी. स्थानीय होने का हक जितना 500 वर्ष पूर्व से रहने वाले लोगों का है, उतना ही झारखंड गठन के एक दिन पूर्व से यहां रह रहे लोगों का भी है.
(लेखक झारखंड इंटर कॉलेज शिक्षक संघ के प्रधान महासचिव हैं )
भाषा संस्कृति व जनसंख्या को आधार बनाया जाये
प्रेमचंद मुमरू
यह सवाल जरूर उठना चाहिए कि झारखंड किसके लिए बना. सबके लिए या मूल झारखंडियों के लिए? जनवरी 2002 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा कि डोमिसाइल अथवा स्थानीयता का अर्थ स्थायी निवासी है. साथ ही कोई भी भारतीय हर राज्य का निवासी नहीं हो सकता. एक राज्य का निवासी दूसरे राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता. पर झारखंड में एक व्यक्ति बिहार का भी स्थानीय है और झारखंड का भी. यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है.
वर्ष 1982 में बिहार सरकार ने स्थानीयता के विषय में अधिसूचना जारी की, जिसमें स्थानीयता के लिए जिला को आधार माना गया और कहा कि जिले में पिछले सर्वे के रिकार्ड ऑफ राइट्स में जिन लोगों की अपने या पूर्वजों के नाम की जमीन का उल्लेख है, उन्हें ही स्थानीय माना जाना चाहिए. उस अधिसूचना को माननीय झारखंड हाइकोर्ट ने, जिसमें खतियान का भी जिक्र था उसे खारिज कर दिया.स्थानीयता का आधार मूल रूप से झारखंडियों के लिए होना चाहिए. उनकी झारखंडी भाषा संस्कृति, परंपरा और जनसंख्या को आधार बना कर स्थानीयता तय करनी चाहिए.
(लेखक आदिवासी बुद्धिजीवी मंच से जुड़े हैं)
झारखंड बनने के 14 वर्षो के बाद भी स्थानीय नीति नहीं बन सकी है. स्थानीय नीति नहीं होने के कारण ही बाहर से आये लोग यहां नौकरी हासिल कर लेते हैं और यहां के नौजवान बेरोजगार रह जाते हैं. एकीकृत बिहार में 1981 में स्थानीयता को परिभाषित करने का निर्णय लिया गया था. इसमें कहा गया था कि स्थानीयता की परिभाषा का आधार जिला में पिछले सर्वे को माना जाये. जिले में हुए अंतिम सर्वे को आधार मान कर उसके अनुसार ही स्थानीय नीति बने. रघु साव, धनबाद
त्नस्थानीय नीति का मुद्दा संवेदनशील है. झारखंड अलग राज्य बनने के समय को ही आधार वर्ष माना जाना चाहिए. राज्य गठन के समय या उससे पहले बहुत सारे लोग झारखंड में रह कर नौकरी/ व्यवसाय में लगे. वे लगातार यहां रह रहे हैं. यहीं पर रह कर उनके बच्चों का लालन-पालन भी हुआ. ऐसे लोगों को अगर स्थानीय नहीं माना गया, तो यह उनके साथ अन्याय होगा. इसके अलावा जो लगातार तीन वर्ष से यहां रह कर पढ़ाई कर रहे हैं, उन्हें भी स्थानीय माना जाये.
चंदन
पिछले 14 वर्षो में स्थानीयता के मुद्दे पर सिर्फ राजनीति ही हुई है. यह सही है कि संविधान के अनुच्छेद 15 व 16 के तहत देश के किसी भी नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में समान अवसर प्राप्त है. इसी अनुच्छेद के उपशीर्षक ए व बी बना कर संविधान में यह व्यवस्था की गयी है कि राज्य चाहे तो अपने अधिवासी जनों के निमित्त नियोजन का कुछ हिस्सा सुरक्षित रख सकता है. स्थानीय नीति के कवच द्वारा ही झारखंडी अस्मिता की रक्षा संभव है.
महादेव महतो, शिक्षक
मेरा मानना है कि स्थानीय नीति 1932 के खतियान के आधार पर या फिर अंतिम सेटलमेंट के आधार पर बननी चाहिए. ऐसा नहीं होने पर दूसरे राज्यों के लोग अपने राज्य के साथ साथ झारखंड में भी आरक्षण का लाभ ले लेंगे. इस स्थिति में झारखंड वासी दोनों ओर से छले जायेंगे. दूसरी बात, झारखंड बिहार से अलग हुआ है, तो बिहार की स्थानीय नीति के आधार पर ही यहां स्थानीय नीति लागू करनी चाहिए.
निमाई कुमार महतो, बरियातू