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झारखंड में निजी बैंक जनहित योजनाओं के लिए नहीं देते हैं कर्ज

दिनेश केडिया, रांची झारखंड में निजी बैकों का योगदान केवल उनके व्यवसाय तक की सीमित होता दिख रहा है. सरकारी योजनाओं व शिक्षा, कृषि सहित अन्य प्राथमिक क्षेत्रों में निजी बैंकों की भागीदारी नगण्य है. कृषि लोन हो या एजुकेशन लोन, किसान क्रेडिट कार्ड जारी करने की स्थिति हो या ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाएं खोलने […]

दिनेश केडिया, रांची
झारखंड में निजी बैकों का योगदान केवल उनके व्यवसाय तक की सीमित होता दिख रहा है. सरकारी योजनाओं व शिक्षा, कृषि सहित अन्य प्राथमिक क्षेत्रों में निजी बैंकों की भागीदारी नगण्य है. कृषि लोन हो या एजुकेशन लोन, किसान क्रेडिट कार्ड जारी करने की स्थिति हो या ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाएं खोलने की बात सभी मानकों पर निजी बैंक काफी पीछे हैं. इसके अलावा आम लोगों को बैंकों से जोड़ने की योजना से लेकर अन्य सरकारी योजनाओं में भी निजी बैंक रुचि नहीं दिखाते. हाल की में हुई राज्यस्तरीय बैंकर्स कमेटी की बैठक में भी निजी बैंकों की भागीदारी पर चिंता जतायी गयी थी.
सरकार द्वारा चलायी जा रही कई कल्याणकारी योजनाओं में बैंकों से लोन लेने की भी जरूरत होती है, लेकिन इन योजनाओं में निजी बैंक लोन नहीं देते हैं. एसएलबीसी द्वारा अब उन्हें लक्ष्य भी नहीं दिया जा रहा है. प्रधानमंत्री रोजगार गारंटी योजना (पीएमइजीपी), स्वर्णजयंती ग्रामीण स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाइ) के तहत आवेदन मिलने पर भी उन्हें वित्त उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है. इसके अलावा लघु उद्यमी क्रेडिट कार्ड, आर्टिशियन क्रेडिट कार्ड, स्वरोजगार क्रेडिट कार्ड जारी करने में भी निजी बैंकों की भागीदारी नहीं है.
स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) के क्षेत्र में भी निजी बैंकों की रुचि नहीं है.जमा लेते हैं, लोन नहीं देते: आंकड़ों के अनुसार निजी बैंक राज्य में पैसे तो डिपोजिट लेते हैं, लेकिन लोगों को उस अनुपात में लोन नहीं देते. राज्य में निजी बैंकों का कुल सीडी रेशियो तय मानक 60 प्रतिशत से ज्यादा यानी 68.05 प्रतिशत है, लेकिन 13 निजी बैंकों में से मात्र चार बैंकों का ही यह अनुपात अच्छा है. राज्य में लगभग 350 करोड़ रुपये का डिपोजिट उठाने वाले यस बैंक ने मात्र 1.90 प्रतिशत यानी 6.65 करोड़ रुपये का ही लोन दिया है. वहीं लक्ष्मी विलास बैंक का सीडी रेशियो 1.79 प्रतिशत, कोटक महिंद्रा का 6.76 प्रतिशत, आइएनजी वैश्य का 7.39 प्रतिशत, साउथ इंडियन बैंक 15.68 प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर बैंक 20.90 प्रतिशत और फेडरल बैंक का 25.66 प्रतिशत है. इसमें भी यदि कमजोर तबके, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति व महिला की बात हो, तो कोई भी निजी बैंक इनको लोन देने में रुचि नही दिखाता.
बच्चों की शिक्षा में रुचि नहीं: निजी बैंको को राज्य के बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए लोन देने में कोई रुचि नहीं है. अच्छे शिक्षण संस्थानों में पढ़ने के लिए बच्चे लोन लेते हैं, लेकिन निजी बैंकों का इसमें योगदान काफी कम है. एसएलबीसी की बैठक में भी निजी बैंकों की भागीदारी बढ़ाने का निर्देश दिया गया. राज्य में एजुकेशन लोन के लिए दिये गये कुल 63,186 खातों में मात्र 104 खाते ही निजी बैंकों के पास हैं.
सभी बैंकों द्वाराबच्चों को 2195 करोड़ रुपये का लोन दिया गया है. इनमें निजी बैंकों की भागीदारी लगभग एक प्रतिशत यानी मात्र 2.33 करोड़ रुपये ही है. वहीं होम लोन देने के मामले मे ज्यादातर निजी बैंकों को का रिकार्ड खराब है. राज्य में दिये गये 64,180 होम लोन में निजी क्षेत्र के बैंकों न 5650 ही होम लोन दिये हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं खोलते शाखाएं
निजी बैंकों की रुचि केवल शहरी व अर्धशहरी क्षेत्रों में शाखाएं खोलने में हैं. आंकड़ों के अनुसार, राज्य में निजी बैंकों की 165 शाखाओ में सबसे ज्यादा 89 शहरी क्षेत्रों में व 65 अर्धशहरी क्षेत्रों में है. ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 11 शाखाएं ही हैं. इनमें से भी आठ बैंकों ने ग्रामीण क्षेत्रों में एक भी शाखा नहीं खोली है.
कृषि व कृषकों से दूर
निजी बैंक कृषि लोन में भी दिलचस्पी नहीं लेते. क्रॉप लोन, सब्जी की खेती के लिए छोटी अवधि के लोन, ट्रैक्टर-ट्रिलर लोन आदि में एक-दो निजी बैंक ही लोन देते हैं. वहीं हॉर्टिकल्चर व सिंचाई व्यवस्था के लिए तो एक रुपया भी लोन हीं दिया गया है. किसान क्रेडिट कार्ड में एचडीएफसी बैंक ने बेहतर काम किया है.
बैंक ने 5447 केसीसी जारी किये हैं और 55.79 करोड़ रुपये का लोन दिया है. इसके अलावा फेडरल बैंक व आइसीआइसीआइ बैंक ने मामूली योगदान दिया. अन्य बैंकों ने न तो किसी को केसीसी दिया और न ही लोन.

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