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पत्नी व बच्चों को प्रताड़ित करनेवाला अफसर बरखास्त

न्याय के लिए 20 वर्ष तक पत्नी ने लड़ी कानूनी लड़ाई रांची : पत्नी के रहते हुए दूसरी महिला से संबंध रखने और पत्नी व बच्चों को प्रताड़ित करने के आरोप में सरकार ने राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रामचंद्र भगत को बरखास्त कर दिया है. वह इस आरोप में बरखास्त होनेवाले राज्य के पहले […]

न्याय के लिए 20 वर्ष तक पत्नी ने लड़ी कानूनी लड़ाई
रांची : पत्नी के रहते हुए दूसरी महिला से संबंध रखने और पत्नी व बच्चों को प्रताड़ित करने के आरोप में सरकार ने राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रामचंद्र भगत को बरखास्त कर दिया है. वह इस आरोप में बरखास्त होनेवाले राज्य के पहले अधिकारी हैं. भगत की पत्नी ने इसके लिए 20 वर्षो तक कानूनी लड़ाई लड़ी.
भगत की पत्नी ने वर्ष 1992 में अपने पति के खिलाफ लोहरदगा थाने में प्राथमिकी (27/92) दर्ज करायी थी. इसमें उन्होंने अपने पति पर दूसरी महिला के साथ रहने और प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था. प्रथम श्रेणी के न्यायिक दंडाधिकारी ने मामले की सुनवाई के बाद भगत को दोषी करार दिया. साथ ही उन्हे तीन वर्ष सश्रम कारावास की सजा दी. वहीं 500 रुपये का अर्थ दंड लगाया.
अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने भी भगत की अपील खारिज करते हुए उसे दी गयी सजा को बहाल रखा. इसके बाद भगत ने हाइकोर्ट में सजा के खिलाफ अपील की. हाइकोर्ट ने सुनवाई के बाद अपील खारिज कर दी और उसे दी गयी सजा को बहाल रखा. इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में क्रिमिनल अपील (439-2006) दायर की.
सुप्रीम कोर्ट ने अपील पर सुनवाई के बाद वर्ष 2012 में फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने क्रिमिनल अपील को खारिज करते हुए मुजरिम को मिली जमानत रद्द कर दी और उसे सजा भुगतने के लिए जेल जाने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद राज्य सरकार ने अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई शुरू की. सरकार ने रामचंद्र भगत को सेवा से बरखास्त करने का फैसला लिया.
साथ ही जवाब-तलब किया. कई बार स्मार पत्र दिये जाने के बाद अधिकारी ने सरकार को अपना जवाब भेजा. सरकार ने जवाब को असंतोषप्रद माना और बरखास्तगी के मामले में राज्य लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) से राय मांगी. जेपीएससी ने सरकार को अपनी राय देते हुए कहा कि वह पहले विधि विभाग की राय लें कि ऐसे मामलों में बगैर विभागीय कार्यवाही के किसी अधिकारी को दंड दिया जा सकता है या नहीं.
इसके बाद इस मामले को विधि विभाग के पास भेजा गया. विधि विभाग ने अपनी राय में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(ए) में निहित प्रावधानों के तहत न्यायालय द्वारा सजा सुनाये जाने के बाद किसी अधिकारी को बगैर विभागीय कार्यवाही के दंडित किया जा सकता है. विधि विभाग की इस राय के बाद सरकार ने इस अधिकारी को बरखास्त करने से संबंधित आदेश जारी कर दिया. कैबिनेट ने भी इस पर सहमति दे दी.

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