राज्य में स्थानीय नीति तय करने से पहले सामंजस्य स्थापित करना जरूरी है. यहां की कुल आबादी 3.29 करोड़ है. इसमें से 70 से 80 लाख लोग प्रवासी हैं. ऐसे लोग पिछले 60 से 70 वर्ष से यहां घर बना कर रह रहे हैं. व्यवसाय और नौकरी कर रहे हैं, लेकिन इनका नाम खतियान में नहीं है. वर्षो से यहां रहनेवाले लाखों आदिवासी परिवार का नाम भी नाम इसमें शामिल नहीं है.
ऐसी स्थिति में सरकार को इस बात का ध्यान रख कर स्थानीयता तय करना चाहिए, ताकि किसी के साथ भेदभाव नहीं हो. झारखंड में लैंड रिकॉर्ड के सव्रे का काम शुरू किया गया था. कई जगहों पर सव्रे का काम पूरा हो गया है. ऐसे में नये सव्रे के आधार पर लोगों का नाम खतियान में दर्ज किया जाना चाहिए. जहां तक 1932 के खतियान की बात है, उसे हाइकोर्ट ने 10 साल पहले ही खारिज कर दिया है.
ऐसे में सरकार को सर्वमान्य हल निकालना चाहिए. इसके बाद कट ऑफ डेट पर विचार करना चाहिए. एक ही जमीन दो से तीन बार बेची जा रही है. लोगों को ठगा जा रहा है. जमीन से संबंधित हजारों विवाद न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है. ऐसे में सरकार को अविलंब सरकार को सव्रे का काम पूरा करना चाहिए. लैंड सव्रे में झारखंड और बिहार सबसे पीछे है. इस बात की जानकारी लोकसभा में भी दी गयी थी. स्थानीय नीति में सबका ख्याल रखा जाना चाहिए. सरकार एक सर्वमान्य हल निकाले. समाज के हर वर्ग का विचार लिया जाना चाहिए. इस मामले में केवल राजनीति नहीं होनी चाहिए. स्वार्थ से ऊपर उठ कर फैसला करने का समय है.