रांची: सरकार ने पंचायतों को राहत देने और लोगों को कम कीमत पर बालू उपलब्ध कराने के लिए पर्यावरण स्वीकृति फीस कम करने की योजना बनायी है. इसके तहत बालू घाटों की पर्यावरण स्वीकृति के लिए निर्धारित फीस को अधिकतम पांच हजार रुपये तक रखने का प्रस्ताव तैयार किया गया है. राज्य में फिलहाल पांच […]
रांची: सरकार ने पंचायतों को राहत देने और लोगों को कम कीमत पर बालू उपलब्ध कराने के लिए पर्यावरण स्वीकृति फीस कम करने की योजना बनायी है. इसके तहत बालू घाटों की पर्यावरण स्वीकृति के लिए निर्धारित फीस को अधिकतम पांच हजार रुपये तक रखने का प्रस्ताव तैयार किया गया है.
राज्य में फिलहाल पांच एकड़ से बड़े बालू घाटों के लिए पर्यावरण स्वीकृति फीस एक लाख रुपये है. खान कार्यो के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित नियम के तहत किसी भी तरह के खनन कार्य के लिए पर्यावरण स्वीकृति के अलावा स्वीकृत माइनिंग प्लान का होना आवश्यक है. बालू घाटों से बालू उठाव के मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह नियम प्रभावी है. इसलिए सरकार ने राज्य में पर्यावरण स्वीकृति के लिए स्टेट लेवल इंवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (सिया) का गठन किया था. साथ ही औद्योगिक इकाइयों, मेजर मिनरल, माइनर मिनरल, बालू घाटों और ईंट भठ्ठों को पर्यावरण स्वीकृति देने के लिए फीस निर्धारित की गयी है. 0.5 एकड़ से पांच एकड़ से बड़ेबालू घाटों के लिए 2.5 हजार से एक लाख रुपये तक की फीस पर्यावरण स्वीकृति के लिए निर्धारित है.
सरकार ने बालू का अधिकार पंचायतों को देने के बाद पर्यावरण फीस और माइनिंग प्लान बनाने पर आनेवाले खर्चो का आकलन किया और उसे पंचायतों के हितों के अनुकूल नहीं पाया. बालू घाटों से बालू उठाव के लिए माइनिंग प्लान बनाने का काम निजी कंपनियों या इंजीनियरों द्वारा किया जाता है. इसके लिए वे कम से कम 70 हजार रुपये की फीस लेते हैं. ऐसी स्थिति में अगर किसी बालू घाट का क्षेत्रफल पांच एकड़ से अधिक हो तो करीब 1.70 लाख रुपये का खर्च उठाव शुरू होने से पहले ही हो जायेगा. अगर बालू घाटों का क्षेत्रफल 0.5 एकड़ हो तो भी माइनिंग प्लानिंग बनाने के लिए निजी कंपनियां उतनी ही फीस लेती हैं.
ऐसी स्थिति में आर्थिक कारणों से छोटे घाटों से बालू का उठाव नहीं हो सकेगा. इसलिए सरकार बालू घाटों के पर्यावरण स्वीकृति के लिए अधिकतम 10 हजार रुपये तक ही फीस रखने और छोटे-छोटे कई घाटों को एक साथ मिलना कर माइनिंग प्लान बनवाने के पक्ष में है. खान विभाग ने फीस में संशोधन आदि से प्रस्ताव तैयार कर मुख्यमंत्री के विचारार्थ भेज दिया है. सरकार का मानना है कि इससे बालू उठाव की लागत कम होगी और उसका लाभ आम लोगों को मिलेगा.
बालू घाटों की नीलामी आरंभ
बालू घाटों की नीलामी का अधिकार पंचायतों को दिये जाने के बाद बालू घाटों की नीलामी प्रक्रिया आरंभ कर दी गयी है. चाईबासा और गुमला में बालू घाटों की नीलामी के लिए निविदा जारी कर दी गयी है. वहीं रांची में भी निविदा जारी करने की प्रक्रिया चल रही है. खान विभाग के सूत्रों ने बताया कि इस बार नीलामी पंचायतों के माध्यम से ही करायी जायेगी. इसमें जिला पंचायती राज पदाधिकारी ग्रामीण क्षेत्रों में और नगर निकाय के सीइओ शहरी क्षेत्र में नीलामी की प्रक्रिया को पूरा करायेंगे. जिला खनन पदाधिकारी इसमें सहयोग करेंगे. जिला खनन पदाधिकारी डाटा आदि बनाने में सहयोग करेंगे. जिला खनन पदाधिकारियों को बालू घाटी की मापी करा कर नीलामी निकालने का आदेश दिया गया है.
निविदा में शर्ते रखी गयी है कि नीलामी में भाग लेने व्यक्ति या संस्था को ग्राम सभा, मुखिया या पंचायत या प्राधिकृत पदाधिकारी से सहमति प्राप्त करनी होगी. नीलामी प्राप्त करने वाले को 30 दिनों के अंदर पर्यावरण स्वीकृति के लिए आवेदन देने की शर्त रखी गयी है. यह भी कहा गया है कि जिस संस्था में 51 फीसदी सदस्य अनुसूचित जाति के होंगे उन्हें प्राथमिकता दी जायेगी.