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अब भी लॉटरी से होता है टेंडर
ग्रामीण कार्य विभाग रांची : ग्रामीण कार्य विभाग में सड़कों व पुलों के टेंडर निष्पादन में लॉटरी की जा रही है. टेंडर निष्पादन प्रक्रिया शुरू होते ही ठेकेदारों के बीच लॉटरी भी शुरू हो गयी है. इसी लॉटरी पद्धति से टेंडर निष्पादित किया जा रहा है. ग्रामीण कार्य विभाग की सड़कों में लॉटरी पद्धति करीब […]
ग्रामीण कार्य विभाग
रांची : ग्रामीण कार्य विभाग में सड़कों व पुलों के टेंडर निष्पादन में लॉटरी की जा रही है. टेंडर निष्पादन प्रक्रिया शुरू होते ही ठेकेदारों के बीच लॉटरी भी शुरू हो गयी है. इसी लॉटरी पद्धति से टेंडर निष्पादित किया जा रहा है.
ग्रामीण कार्य विभाग की सड़कों में लॉटरी पद्धति करीब तीन वर्षो से जारी है. वहीं मुख्यमंत्री ग्राम सेतु योजना में भी लॉटरी से टेंडर के निष्पादन की प्रक्रिया शुरू हो गयी है.
हटाने की हुई थी बात
पूर्व मंत्री लोबिन हेंब्रम के कार्यकाल में लॉटरी पद्धति हटाने पर बात हुई थी. बात काफी आगे भी बढ़ गयी थी. विभाग में इसे लेकर चर्चा होती रही कि पथ निर्माण सहित अन्य विभागों की तरह ही यहां टेंडर का निष्पादन हो, पर बाद में मामला शांत हो गया.
विभागीय अभियंता मानते हैं कि लॉटरी में किसी तरह का झंझट नहीं होता है. अगर ठेकेदारों का दर समान हो जाता है, तो उन्हें बुला कर लॉटरी कर दिया जाता है. जिसका लॉटरी में नाम निकलता है, उसे काम मिलता है. ऐसे में किसी तरह के आरोप टेंडर निष्पादन करनेवालों पर नहीं लगते हैं. वे झंझट व आरोप से मुक्त होते हैं.
इस मामले में दूसरे विभागों व ठेकेदारों का पक्ष है कि इसकी कई खामियां हैं. ठेकेदारों के गुण व अवगुण देखे बिना ही लॉटरी से उसे काम दे दिया जाता है. ठेकेदार के पास कितना काम लटका हुआ है. कार्य अनुभव कैसा है, यानी ठेकेदार योग्य है या नहीं. यह सब कुछ नजरअंदाज कर दिया जाता है. स्थानीयता, वरीयता, कार्य कुशलता, क्षमता, परफॉरमेंस सभी कुछ को दरकिनार कर दिया जाता है. इससे योग्य ठेकेदार छंट जाते हैं और अयोग्य को काम मिल जाता है. इतना ही नहीं एक वित्तीय वर्ष में एक ठेकेदार को कई काम मिल जाते हैं.
किसी विभाग में नहीं होती है लॉटरी
पथ निर्माण विभाग, भवन निर्माण विभाग सहित किसी भी विभाग में लॉटरी नहीं होती है. अगर ठेकेदारों का दर समान हो जाये, तो उसकी वरीयता, स्थानीयता, काम करने की क्षमता, कार्य कुशलता आदि के आधार पर टेंडर का निष्पादन होता है. पथ निर्माण विभाग में शुरू में समान दर होने पर वरीयता को प्राथमिकता दी जाती थी. बाद में स्थानीय (लोकल) के साथ ही साथ वरीयता को आधार बनाया जाने लगा. इसके बाद अंतिम तीन वर्षो में जिस ठेकेदार ने अधिकतम सफलतापूर्वक काम किया है, उसे ही अवार्ड के रूप में प्राथमिकता दी जाने लगी.
नियम विरुद्ध भी हुई लॉटरी
ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा जारी पत्र के मुताबिक 50 लाख रुपये से कम की योजनाओं का टेंडर लॉटरी से नहीं करना है. खुद विभाग ने इस पर रोक लगायी है, पर इस राशि की योजनाएं भी लॉटरी से निष्पादित की गयी हैं.
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