वह हमारी हीरो थीं. वह न होतीं तो हम आज जिंदा नहीं होते. हैवानों ने उन्हें जिंदा जला डाला. पेशावर के आर्मी स्कूल से बच कर निकले इरफानुल्लाह उस लम्हे को याद कर सिहर उठते हैं. वह इरफानुल्लाह की टीचर आफशा अहमद थीं, जिनकी उम्र महज 24 साल थी. पेशावर के लेडी रीडिंग अस्पताल में भरती इरफानुल्लाह ने बताया कि अगर आफशा न रही होतीं, तो वह भी मर चुके होते. वह आतंकियों और बच्चों के बीच में दीवार की तरह खड़ी हो गयीं थीं.टीचर को अंदाजा हो गया था 15 साल के इरफानुल्लाह ने बताया कि आतंकी जब हमारे क्लासरूम में घुसे, हम अपनी टीचर के साथ बैठे थे. जब तक हम जान पाते कि क्या हो रहा, वह खड़ी हो गयीं और आतंकियों को रोकने की कोशिश की. उन्हें अंदाजा हो गया था कि क्या होनेवाला है? आंसुओं में डूबे इरफानुल्लाह ने बताया कि आफशा आतंकियों के सामने डट कर खड़ी थीं. उन्होंने तालिबान को चुनौती देते हुए कहा कि वह अपने बच्चों को मरने नहीं देंगी. उन्होंनें कहा, ‘पहले तुम सब मुझे गोली मारो, मैं अपने बच्चों की लाशें नहीं देख सकती. इरफानुल्लाह के मुताबिक ये उनकी आखिरी शब्द थे. तालिबानियों ने उनके शरीर पर कोई चीज फेंक दी और अगले ही पल वह आग की लपटों में घिर गयीं. इरफानुल्लाह ने बताया कि हम बस यही देख पाये कि तालिबान ने उन्हें जिंदा जला डाला. वह आग की लपटों से घिरी हुईं थी फिर भी चिल्ला-चिल्ला कर हमें भाग जाने के लिए कह रही थीं. वह बहुत ही बहादुर थीं. उसे दुख है कि वह अपने टीचर को नहीं बचा पाया. उसने कहा कि वह हमारी हीरों थीं. वह सुपरवुमैन थी. अब हमें कौन पढ़ायेगा.?
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वह हमारी हीरो थीं, तालिबान ने जिंदा जला दिया
वह हमारी हीरो थीं. वह न होतीं तो हम आज जिंदा नहीं होते. हैवानों ने उन्हें जिंदा जला डाला. पेशावर के आर्मी स्कूल से बच कर निकले इरफानुल्लाह उस लम्हे को याद कर सिहर उठते हैं. वह इरफानुल्लाह की टीचर आफशा अहमद थीं, जिनकी उम्र महज 24 साल थी. पेशावर के लेडी रीडिंग अस्पताल में […]
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