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(बॉटम) कांग्रेस ने उम्मीदवारों को अपने हाल पर छोड़ा

कांग्रेस आलाकमान के मूड और इरादे अनुकूल नहीं सुमन के श्रीवास्तवपांच चरणों में झारखंड विधानसभा की चुनाव प्रक्रिया 25 नवंबर को शुरू हो रही है. चुनाव के इस महासंग्राम में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार अपने हाल में ही खड़े हैं. कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए यह एक चिंता का विषय है कि पहले पार्टी ने निर्दलीय […]

कांग्रेस आलाकमान के मूड और इरादे अनुकूल नहीं सुमन के श्रीवास्तवपांच चरणों में झारखंड विधानसभा की चुनाव प्रक्रिया 25 नवंबर को शुरू हो रही है. चुनाव के इस महासंग्राम में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार अपने हाल में ही खड़े हैं. कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए यह एक चिंता का विषय है कि पहले पार्टी ने निर्दलीय मधु कोड़ा की सरकार का समर्थन किया, फिर झामुमो के हेमंत सोरेन सरकार में शामिल होकर राज्य का नेतृत्व दिया. जाहिर तौर पर कांग्रेस की छवि इससे खराब हुई है. हेमंत सोरेन सरकार का समर्थन करने के निर्णय के अलावा कोड़ा सरकार को चलाने में मदद करने के पछतावे के दंश को भी उम्मीदवार झेल रहे हैं. भाजपा की कांग्रेस मुक्त झारखंड के आह्वान और राष्ट्रीय जनता दल के पुराने और माहिर राजनेता लालू प्रसाद का भ्रष्टाचार में लिप्त रही सरकारों को मौन समर्थन देना भी चुनाव में बड़ा मुद्दा बना हुआ है. भाजपा द्वारा स्टार प्रचारकों को चुनाव में उतारने के बजाय मीडिया में ताबड़तोड़ प्रचार करने की रणनीति भी कांग्रेस, राजद और जदयू गंठबंधन को मूकदर्शक के रूप में खड़ा कर दिया है. भाजपा ने प्रत्येक विधानसभा सीट पर चुनावी रथ रवाना किया है, वहीं झामुमो ने भी 25 चुनावी रथों को रवाना कर चुनावी समर में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है. कांग्रेस ने अब तक अपना चुनावी घोषणा पत्र तक जारी नहीं किया है. यहां तक की पार्टी की ओर से सिर्फ दो हेलीकॉप्टरों को ही अब तक चुनाव प्रचार के लिए बुक कराया गया है. कांग्रेस विधायक दल के नेता राजेंद्र सिंह और झारखंड प्रभारी बीके हरि प्रसाद ही चुनावी गतिविधियों की धीमी रफ्तार का जवाब दे सकते हैं. पार्टी के एक विधायक का कहना है कि कांग्रेस के समर्थन दिये जाने से झामुमो की स्थिति मजबूत हुई है. दिल्ली में बैठे कांग्रेसी नेताओं ने शुरू से ही अपनी हार स्वीकार कर ली है. देश की राजधानी में बैठे कांग्रेस के दिग्गज भी चुनावी गतिविधियों में हिस्सेदारी नहीं निभा रहे हैं. वैसे विधायक जिन्होंने सत्ता सुख भोगा है और जिनके लिए पैसा ही महत्वपूर्ण है, वे ही गंभीरता से चुनाव लड़ रहे हैं अन्य तो सिर्फ फेस सेविंग कर रहे हैं. निर्दलीय मुख्यमंत्री रहे मधु कोड़ा की सरकार को कांग्रेस ने 2009 में समर्थन दिया था. तत्कालीन राज्यपाल के शंकर नारायण के अच्छे कार्य और राष्ट्रपति शासन के बजाय पार्टी ने मधु कोड़ा की सरकार बनाने में मदद की, पर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आंकड़ों की संख्या तक नहीं पहुंच पायी. चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 16.2 प्रतिशत वोट ही मिले, जिससे पार्टी 14 सीटों पर ही सिमट गयी. वहीं झाविमो ने नौ फीसदी मतों के आधार पर 11 सीटें हासिल की. भाजपा को 20 प्रतिशत मत मिले. झामुमो ने 15 प्रतिशत मतों के साथ 18 सीटें हासिल की. कमोबेश इतनी ही सीटें भाजपा को भी मिलीं. एक बार फिर कांग्रेस ने हेमंत सोरेन सरकार को समर्थन दिया. कांग्रेस के बड़े नेता जयराम रमेश का उस समय भारी समर्थन रहा. यहां तक की कांग्रेस के स्थानीय दिग्गज राजेंद्र प्रसाद सिंह और झारखंड के प्रभारी बीके हरि प्रसाद ने भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी पर हेमंत सोरेन की सरकार का समर्थन करने का दबाव बनाया. एक कांग्रेसी नेता का कहना है कि अधिकतर कांग्रेसी नेताओं के पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे भी नहीं हैं. पार्टी हाई कमान की ओर से मुट्ठी भी बंद कर रखी गयी है. पार्टी ने अब तक मीडिया के विज्ञापन के बजट और होर्डिंग में एक पाई खर्च नहीं की है. कांग्रेस आलाकमान के मूड और इरादे अनुकूल नहीं हैं. पार्टी के कई मजबूत उम्मीदवारों ने भाजपा और अन्य के खिलाफ लड़ने से अपने को अलग कर लिया है. उदाहरण के तौर पर हजारीबाग से पार्टी के सीटिंग विधायक सौरभ नारायण सिंह ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. उनका कहना है कि वे 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. भवनाथपुर के विधायक अनंत प्रताप देव ने भाजपा का दामन अंतिम दौर में थाम लिया. कुछ स्थानों पर स्थानीय कांग्रेसी नेताओं ने झामुमो से गुपचुप समर्थन का सौदा कर लिया है. पार्टी के एक बड़े नेता का मानना है कि झामुमो के कमजोर प्रत्याशी के विरुद्ध कांग्रेस अपने मजबूत उम्मीदवार को उतारने से गुरेज कर रही है. राज्यसभा सांसद प्रदीप बलमुचु का कहना है कि दु:खद स्थिति तो यह है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत, जो लोहरदगा से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं और पहले चरण में विधानसभा सीट के लिए मतदान होना है, वे भी पार्टी के ही नेताओं से जूझ रहे हैं. अगर प्रदेश अध्यक्ष को चुनाव लड़ना था, तो उन्हें अपनी जमीन पहले से बनानी चाहिए थी. वैसे भी भाजपा-आजसू के प्रत्याशी कमल किशोर भगत से उन्हें भारी चुनौती मिल रही है. इनकी हार से भाजपा के अभियान कांग्रेस मुक्त झारखंड को बल मिलेगा. कांग्रेस पार्टी ने राजद के लालू प्रसाद के साथ चुनावी गंठबंधन की है. राजद को 18 सीटें दी गयी हैं. यह सीटें वैसी हैं, जहां पार्टी का जनाधार नहीं है. बिहार से जुड़े कुछ वैसे सीट को छोड़ कर स्थिति भी अच्छी नहीं है. कांग्रेस के एक अन्य नेता का कहना है कि हमने झामुमो के साथ चुनावी गंठबंधन नहीं किया. झामुमो ने पहले ही संताल परगना के 18 सीटों पर चुनाव लड़ने की अपनी स्थिति स्पष्ट की थी. हमलोगों ने संताल में नौ सीटें जीती थीं. इसी आधार पर हमने राजद को 18 और जदयू के छह सीटें दी. कांग्रेस ने 66 सीटें अपने पास रखी हैं. 10 राजद और पांच सीटें जदयू को दी थीं. कांग्रेस के मीडिया प्रभारी लाल किशोर नाथ शाहदेव के अनुसार कांग्रेस, राजद और जदयू के चुनावी गंठबंधन में पहले कुछ और तय हुआ था. बाद में राजद ने 18 और जदयू ने आठ सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये. यह आधिकारिक घोषणा के तहत नहीं की गयी.इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट के क्षेत्रीय निदेशक हरिश्वर दयाल का मानना है कि कांग्रेस ने पहले ही अपनी हार स्वीकार कर ली है. पार्टी के तगड़े उम्मीदवार अपनी ही सीट बचाने के लिए मेहनत कर रहे हैं. पार्टी और संगठन भी ऐसे उम्मीदवारों के पक्ष में ढाल बन कर सामने नहीं आ रहा है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि कांग्रेस ने पहले चरण के 13 सीटों में से सिर्फ सात पर ही उम्मीदवार खड़े किये हैं. जबकि हमारी स्थिति पांकी, विश्रामपुर, गुमला, लोहरदगा और डालटेनगंज में अच्छी है.

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