रांची: शहर की लचर ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार को लेकर झारखंड हाइकोर्ट गंभीर है, लेकिन सरकार और अधिकारी समस्या से निजात दिलाने में असक्षम साबित हुए हैं. यही वजह है कि पिछले पांच साल में हाइकोर्ट को 54 से अधिक आदेश पारित करने पड़े. इसके बावजूद समाधान नहीं निकला. ट्रैफिक मामले में हाइकोर्ट के आदेशों का पुलिंदा बन गया है. रोज मेन रोड समेत विभिन्न चौक-चौराहों पर जाम लगता है. समस्या से निजात के लिए सरकार की ओर से कई समयबद्ध योजनाएं बनायी गयीं, लेकिन इसे अमल में नहीं लाया गया.
2008 में दायर हुई थी जनहित याचिका
शहर की ट्रैफिक और प्रदूषण समस्या से निजात दिलाने के लिए रजनीश मिश्र की ओर से वर्ष 2008 में जनहित याचिका दायर की गयी थी. कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए कई आदेश दिये. यही नहीं, अधिकारियों को कोर्ट में बुला कर समझाया और फटकारा, लेकिन नतीजा सिफर है.
वर्ष 2011 में दिये 15 आदेश
ट्रैफिक व्यवस्था के मामले में कोर्ट ने वर्ष 2011 में 15 आदेश दिये. इसमें मेन रोड से अतिक्रमण हटाने, हॉकर्स को बाइलेन में शिफ्ट करने, पार्किग स्थल में चल रही दुकानों को सील करने संबंधी कई आदेश पारित किये.
जज बदलते रहे, समाधान नहीं
मई 2009 में झारखंड हाइकोर्ट ने इस मामले में गंभीर टिप्पणी की थी. कहा था कि ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारनेवाले कई जज बदल गये. सुप्रीम कोर्ट जाकर रिटायर हो गये, पर यहां की ट्रैफिक व्यवस्था नहीं सुधरी.
..तो मेन रोड से जाकर देखें
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान परिवहन सचिव से पूछा था कि आपका कार्यालय कहां है? किस रास्ते से कार्यालय जाते हैं? यह बताये जाने पर कि बाइपास रोड होकर प्रोजेक्ट बिल्डिंग जाते हैं. कोर्ट ने कहा था कि कभी मेन रोड होकर कार्यालय जाकर देखें. पता चल जायेगा कि कार्यालय जाने में कितना समय लगता है और राजधानी की ट्रैफिक व्यवस्था का क्या हाल है.