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सत्ता के खेल में सब रहे शामिल, बारी-बारी से बदली पारी

– माले, झाविमो को छोड़ दें, तो बाकी सबने चखा 14 वर्षों में सत्ता का स्वाद – निर्दलियों ने भी बनाया-बिगाड़ा खेल, भाजपा, कांग्रेस, आजसू, राजद, जदयू सब रहे सरकार में- पिछले दो विधानसभा चुनाव में किसी को नहीं मिला बहुमत, झारखंड खाता रहा हिचकोले ब्यूरो प्रमुख, रांची झारखंड में 14 वर्षों तक सत्ता का […]

– माले, झाविमो को छोड़ दें, तो बाकी सबने चखा 14 वर्षों में सत्ता का स्वाद – निर्दलियों ने भी बनाया-बिगाड़ा खेल, भाजपा, कांग्रेस, आजसू, राजद, जदयू सब रहे सरकार में- पिछले दो विधानसभा चुनाव में किसी को नहीं मिला बहुमत, झारखंड खाता रहा हिचकोले ब्यूरो प्रमुख, रांची झारखंड में 14 वर्षों तक सत्ता का खेल चला. झारखंड का संसदीय इतिहास अलग किस्म का रहा. यहां एक-दो राजनीतिक दल को छोड़ दें, तो सबने सत्ता का स्वाद चखा. माले, झाविमो को छोड़ कर दूसरा कोई दल विपक्ष में बैठने के लिए तैयार नहीं रहा. झारखंड गठन से ही राजनीतिक उठा-पटक का खेल चलता रहा. निर्दलियों ने सरकार बनाने-बिगाड़ने का खेल मजे से किया. राष्ट्रीय पार्टियां ने कभी छोटे दलों को तो कभी निर्दलियों को मोहरा बनाया. झारखंड के 14 वर्ष के सफर में भाजपा ने सबसे लंबे समय तक सत्ता की बागडोर संभाली, तो हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पहली बार सरकार में शामिल हुई. कांग्रेस के समर्थन से पहली बार निर्दलीय मधु कोड़ा मुख्यमंत्री बने. आजसू, राजद, जदयू जैसी पार्टियां पाला बदलती रहीं. राज्य गठन के बाद यह विधानसभा का तीसरा चुनाव होगा. पहली बार 2005 में नव गठित झारखंड में चुनाव हुआ. जनता ने किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया. जोड़-तोड़ के खेल में पक्ष-विपक्ष की दूरियां खत्म रही. वर्ष 2005 के चुनाव में कांग्रेस के नौ विधायक चुन कर आये. कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनाने के लिए पहल कर दी. पिछली दो विधानसभा के कार्यकाल में राजनीतिक अस्थिरता के बीच झारखंड झूलता रहा. झारखंड में अब तक नौ सरकार बन गयी. बारी-बारी से सबने अपनी पारी बदली. अब निगाहें तीसरे विधानसभा चुनाव पर हैं. झारखंड राजनीति का सपाट रास्ता पकड़ेगी या फिर हिचकोले खायेगी. झारखंड में सरकार गठन का इतिहास: ताश पार्टी से जयपुर तक की सैरपहली सरकार अलग राज्य गठन के बाद बाबूलाल पहले मुख्यमंत्री बने. लेकिन बाबूलाल की सरकार को नजर लग गयी. फिर 2002 में ही इस एनडीए सरकार के सहयोगी जदयू व समता पार्टी के विधायकों ने बगावत कर दी. तब के विधायक लालचंद महतो, मधु सिंह, स्व रमेश सिंह मुंडा व जोबा मांझी सहित अन्य इसमें शामिल थे. विधानसभा में ये लोग यूपीए के साथ हो लिये. राज्य के पहले विधानसभा अध्यक्ष जदयू के इंदरसिंह नामधारी को बतौर मुख्यमंत्री पेश किया गया. इसके बाद सरकार मेरी कि तेरी को लेकर खूब ड्रामा हुआ. यूपीए अपने विधायकों सहित एनडीए के असंतुष्टों को बस (कृष्णारथ) से बुंडू ले गया था. राजद विधायक संजय यादव चालक बने थे व स्टीफन मरांडी कंडक्टर. 16 मार्च 03 को बुंडू के लाह कोठी में ताश (जोबा मांझी के साथ) , चेस व लूडो (अन्नपूर्णा देवी के साथ) खेला गया. पिकनिक हुई. बाबूलाल विरोध को भांपते हुए एनडीए को नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ा. बाबूलाल गये, अर्जुन मुंडा सीएम बने. दूसरी व तीसरी सरकार मुंडा सरकार चलती रही. फिर 2005 में झारखंड का पहला विधानसभा चुनाव हुआ. किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. नौ सीट वाली कांग्रेस ने शिबू सोरेन को हवा दे दी. फिर भी तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर दिया. शिबू के पास बहुमत नहीं था. एनडीए ने राज्यपाल के इस कदम को असंवैधानिक बताते हुए अपने विधायकों की दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में परेड (17 मार्च 05) करा दी. मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया. ऐन वक्त पर कमलेश सिंह व जोबा ने यूपीए को धोका दे दिया. कमलेश बीमारी के बहाने अस्पताल में भरती हो गये. वहीं जोबा की गाड़ी रास्ते में खराब हो गयी. पासा पलटता देख 10 दिन मुख्यमंत्री रहे शिबू ने विधानसभा में बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया. इससे पहले राजग ने इस डर से कि उनके विधायक पलटी न मार दें, उन्हें जयपुर की सैर करायी थी. उस यात्रा में विधायक लगभग नजरबंद थे. देश भर में राजनीति की इस झारखंडी शैली की आलोचना हुई थी. राज्य में फिर से अर्जुन मुंडा की सरकार बनी.चौथी सरकार इसी मुंडा सरकार में मधु कोड़ा भी मंत्री हुआ करते थे. कोड़ा को मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा व सरकार के गृह मंत्री सुदेश महतो की कार्यशैली नापसंद थी. इसी बीच कोड़ा दिल्ली चले गये. यूपीए से अपने मन की बात कही. तीन निर्दलीय विधायकों एनोस, कमलेश व हरिनारायण को उन्होंने अपने पाले में लिया. एनोस व हरिनारायण तो चुपके-चुपके दिल्ली पहुंच गये, लेकिन कमलेश जमशेदपुर में धरा गये. गजब का हंगामा हुआ. बाद में कोड़ा सहित इन चारों ने मुंडा सरकार से इस्तीफा (5 सितंबर 06) दे दिया. इन रण बांकुरों सहित यूपीए के विधायकों को देश के अलग-अलग हिस्सों की सैर करायी गयी. सैर-सपाटे के बाद सभी विशेष विमान से रांची पहुंचे. अपनी सरकार को अल्पमत में पाकर अर्जुन मुंडा ने भी राज्यपाल को इस्तीफा (14 सितंबर 06) सौंप दिया. अब मधु कोड़ा के नेतृत्व में झारखंड में सरकार बन गयी.पांचवीं व छठी सरकार कोड़ा सरकार अपने अंदाज में चलती रही. इधर शिबू सोरेन केंद्र में कांग्रेस की सरकार को बचाने के इनाम में सीएम का पद चाहते थे. कोड़ा सरकार के दो साल होने से एक माह पहले ही उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोंक दिया. निर्दलीयों ने कोड़ा के पक्ष में पैतरेंबाजी की. सरकार गिराने की धमकी भी दी गयी, लेकिन कांग्रेस व राजद को शिबू के सामने झुकना पड़ा. तब कोड़ा ने बेमन से सीएम की कुरसी छोड़ दी. शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बन गये. सभी निर्दलीय विधायकों को भी मंत्री बनाया गया. इधर चार माह बाद ही शिबू तमाड़ विधानसभा उपचुनाव हार गये. यह सीट जदयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या के कारण खाली हुई थी. इसके बाद 19 जनवरी 09 को राज्य में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा. राज्यपाल थे सैयद सिब्ते रजी. सातवीं सरकार राज्य का पहला राष्ट्रपति शासन काल रजी के बाद राज्यपाल के शंकरनारायणन के कारण यादगार बन गया. इसी बीच 2009 का विधानसभा चुनाव हुआ. 23 दिसंबर 09 को जब परिणाम की घोषणा हुई, तो राज्य की जनता फिर खुद को ठगा महसूस करने लगी. विधानसभा फिर त्रिशंकु हो गयी थी. फिर से जोड़-तोड़ का खेल शुरू हुआ. लगभग सभी सरकारों में कॉमन आजसू के सहयोग से राज्य में भाजपा-झामुमो की सरकार (30 नवंबर 09) बनी. लोक सभा के सांसद शिबू मुख्यमंत्री बने. आजसू के मुखिया सुदेश व भाजपा के रघुवर उप मुख्यमंत्री. आठवीं सरकार सरकार चल रही थी. शिबू को किसी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ना था. इसी बीच शिबू सोरेन ने लोक सभा में कट मोशन के दौरान यूपीए को वोट दे दिया. इधर झारखंड में शिबू सरकार के सहयोगी दल भाजपा को यह नागवार गुजरा. उसने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद एक जून 10 को दोबारा राष्ट्रपति शासन लगा. करीब तीन माह बाद भाजपा व झामुमो फिर से एक मंच पर आये. झामुमो के अनुसार 28-28 माह सरकार में रहने की शर्त पर सरकार बनी. पहले भाजपा को मौका दिया गया. अर्जुन मुंडा राज्य के आठवें मुख्यमंत्री बने. फिर अपनी बारी को लेकर झामुमो ने सरकार गिरा दिया.नौवीं सरकारभाजपा सरकार के खिलाफ झामुमो की बगावत को कांग्रेस हवा देती रही. झामुमो-कांग्रेस में बात दिल्ली से लेकर रांची तक होती रही. राष्ट्रपति शासन लगा. काफी नखरे के बाद कांग्रेस तैयार हुई. प्रदेश में कांग्रेस के नेता सरकार बनाने के लिए बेचैन थे. कांग्रेस आला कमान हेमंत सोरेन के नाम पर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर तैयार हो गया. सरकार के साथ-साथ गंठबंधन की भी कसमें खिलायी गयीं. हेमंत सोरेन की सरकार बनी. इस सरकार में राजद ने भी शामिल होने का दबाव बनाया. राजद भी सरकार में शामिल हुए. इस बार थोड़ी अलग राजनीति हुई. पहली बार आजसू सरकार में शामिल नहीं था. निर्दलीय बिना शर्त सरकार में घुस गये. कांग्रेस ने किसी निर्दलीय को मंत्री नहीं बनाया.

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