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विपक्षी पार्टियों ने कहा, सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करे केंद्र और राज्य सरकार, खतरे में है वनाधिकार कानून का अस्तित्व
वनाधिकार अधिनियम, 2006 जब अस्तित्व में आया था, तो इसे आदिवासियों और अन्य वनवासियों के अधिकारों के संघर्ष में एक मील के पत्थर की तरह देखा गया था़ संविधान में पांचवीं और छठी अनुसूची में आदिवासियों के अधिकार संरक्षित किये गये हैं, मगर यह विशेष क्षेत्रों में ही लागू है.वनाधिकार अधिनियम ने इसे और व्यापक […]
वनाधिकार अधिनियम, 2006 जब अस्तित्व में आया था, तो इसे आदिवासियों और अन्य वनवासियों के अधिकारों के संघर्ष में एक मील के पत्थर की तरह देखा गया था़
संविधान में पांचवीं और छठी अनुसूची में आदिवासियों के अधिकार संरक्षित किये गये हैं, मगर यह विशेष क्षेत्रों में ही लागू है.वनाधिकार अधिनियम ने इसे और व्यापक बनाया है, लेकिन 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस संबंध में दिये गये आदेश के बाद कहा जा रहा है कि देश के 16 राज्यों के हजारों आदिवासी बेघर हो जायेंगे. ऐसे में खासकर झारखंड में विपक्षी पार्टियां इसे एक साजिश करार देते हुए केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार पर निशाना साध रही हैं. आरोप लगाया जा रहा है कि उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सही तरीके से पक्ष नहीं रखा.
वनाधिकार को कमजोर कर रही भाजपा : हेमंत
दुमका : जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह अपने उद्योगपति मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए वनाधिकार अधिनियम में छेड़छाड़ कर कमजोर करने पर लगी हुई है. दुमका स्थित अपने आवास पर हेमंत ने कहा कि वनाधिकार से संबंधित मामले में 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में राज्य व केंद्र सरकार ने अपनी दलीलें सही तरीके से नहीं रखी. इसमें झारखंड सरकार की ओर से भारी लापरवाही दिखी है. अधूरा शपथ-पत्र दाखिल किया गया था.
यही वजह थी कि राज्य सरकार को फटकार तक मिली. हेमंत ने कहा कि भाजपा सरकार की बेरुखी के कारण ही जो फैसला आया है, उसमें पुन: अपील करने का मौका वन भूमि पर पुश्तों से रह रहे लोगों को नहीं मिल पायेगा. झारखंड में 29 प्रतिशत वनभूमि है, ऐसे में यह निर्णय बहुत बड़े तबके को प्रभावित करेगा. उन्होंने कहा कि ऐसा हो गया तो अस्वीकृत आवेदनों के आधार पर लोगों को बेदखल किया जायेगा. अस्वीकृत व गैर कानूनी आवेदन में अंतर है.
सही जानकारी के अभाव में सही ढंग से दस्तावेज जमा नहीं कराना भी अस्वीकृति का कारण होता है. पर इसे आधार बना कर उन्हें बेदखल नहीं किया जा सकता. हेमंत ने बताया कि पूरे देश में वनाधिकार अधिनियम के तहत जमा किये गये 46 प्रतिशत आवेदन निरस्त किये गये हैं. दूसरी ओर निरस्त आवेदनों में से पुन: फाइल करने के बाद 80 प्रतिशत लोगों का दावा सही पाया गया. उन्हें पट्टा मिला.
झामुमो ने वन विभाग का कार्यालय घेरा : आदिवासी-मूलवासी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में बेदखल करने के खिलाफ सोमवार को झामुमो रांची जिला समिति ने वन विभाग के प्रमंडल कार्यालय का घेराव किया. नेताओं ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कमजोर तरीके से दलील पेश की.
इस मामले में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करे. पार्टी आदिवासी-मूलवासी परिवार के साथ खड़ी है. इससे पहले राजेंद्र चौक से जुलूस निकाल कर कार्यकर्ता वन विभाग के कार्यालय पहुंचे. कार्यक्रम की अध्यक्षता जिलाध्यक्ष मुश्ताक आलम ने की. संचालन सचिव अंतु तिर्की ने किया. मौके पर महिला मोर्चा की केंद्रीय अध्यक्ष महुआ माजी, शमनूर मंसूरी, अफरोज अंसारी, वर्षा गाड़ी, रोशन सिंह, एजाज शाह, परमिंदर सिंह नामधारी, कुद्दुस अंसारी, दिलीप ठाकुर, वीरू तिर्की, कलाम आजाद, रिजवा मुंडा, मुकेश महतो, सतीश कुमार ठाकुर, वसीम खान, निजाम अंसारी, रवि महली, प्रदीप कुमार गंझू, हेमलाल मेहता, चिंतामणि सांगा, शांति तिर्की, अंजली कश्यप, आफताब आलम आदि मौजूद थे.
भाजपा के डीएनए में है जमीन छीनना : डॉ अजय
रांची : प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष डॉ अजय कुमार ने कहा कि उद्योगपतियों को जमीन दिलाना भाजपा के डीएनए में है. इसको लेकर वह तरह-तरह का हथकंडा अपनाती है. यही वजह है कि भाजपा की केंद्र व राज्य सरकार ने जानबूझ कर सुप्रीम कोर्ट में कमजोर दलील रखी. इसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने जंगल में बसे आदिवासी व मूलवासी के करीब 20 लाख लोगों को विस्थापित करने का आदेश देना पड़ा.
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मामले में कांग्रेस की राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ की सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अविलंब चुनौती देने का निर्देश दिया है. डॉ कुमार सोमवार को प्रदेश कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में वन अधिकार कानून वैद्यता को चुनौती दी गयी है.
सरकार की ओर से कमजोर दलील देने के कारण कर कोर्ट ने आदिवासी-मूलवासी को बेदखल करने का आदेश दिया है. कांग्रेस ने वन अधिकार कानून लागू कराया था, ताकि आदिवासी-मूलवासी के अधिकार का हनन नहीं हो. वहीं दूसरी तरफ भाजपा आदिवासी व मूलवासी को बेदखल कर निजी घरानों को जमीन देना चाहती है.
रैली में दिखेगी विपक्षी एकता : डॉ अजय कुमार ने कहा कि दो मार्च को मोरहाबादी मैदान में कांग्रेस की परिवर्तन उलगुलान रैली होने वाली है. इसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी चुनावी बिगुल फूकेंगे.
रैली में विपक्षी एकता दिखेगी. कांग्रेस पार्टी ने झामुमो, झाविमो, राजद समेत अन्य दलों को रैली में शामिल होने का निमंत्रण दिया है. इसको लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से बात की जा रही है. रैली में दो लाख से अधिक लोग शामिल होंगे. मौके पर मैनूल हक, विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, मीडिया प्रभारी राजेश ठाकुर, रमा खलखो, संजय पांडेय, सुरेश बैठा समेत कई लोग मौजूद थे.
पुनर्विचार याचिका दायर करे सरकार
रांची : आदिवासी सरना महासभा के मुख्य संयोजक व पूर्व मंत्री देव कुमार धान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से देश भर के लाखों आदिवासी बेघर हो जायेंगे. सिर्फ झारखंड में ही 28, 000 आदिवासी परिवार बेघर होंगे. लिहाजा सरकार अविलंब सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करे़ इस विषय पर 11 मार्च को राजभवन के समक्ष प्रदर्शन किया जायेगा़
श्री धान ने कहा कि केंद्र व राज्य की भाजपा सरकार हमेशा मौके की तलाश में रहती है की कैसे आदिवासियों को प्रताड़ित किया जाये और उनका अस्तित्व समाप्त किया जा सके़ भाजपा सरकार ने कोर्ट में आदिवासियों का पक्ष ठीक से नहीं रखा जिसके कारण ऐसा निर्णय आया है़ उन्होंने कहा कि जिन परिवारों के दावों को खारिज किया गया है, उन्हें दुबारा ग्राम सभा को भेजना चाहिए़ बैठक में छेदी मुंडा, अजीत उरांव, बिरसा उरांव, अरविंद उरांव, शंकर उरांव, विनोद उरांव, राजेंद्र उरांव मौजूद थे़
रांची : आदिवासी सेंगेल अभियान व झारखंड दिशोम पार्टी के अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने राष्ट्रपति को पत्र लिख कर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये आदेश के आलोक में सकारात्मक कार्रवाई की मांग की है़
साथ ही कहा है कि राष्ट्रपति 16 राज्याें के 11,91 327 दावेदारों अर्थात इतने परिवारों के लगभग 60 लाख लोगों को बेदखल होने से बचा लें, क्योंकि वन ही इनका जीवन है़ वनाधिकार कानून के निर्माण के पीछे का सिद्धांत यह है कि आदिवासी, वन और वन्य पशु एक दूसरे के साथी हैं, पूरक हैं, जो सदियों से एक साथ जी रहे है़ं
वहां पानी, बिजली, दवा, सड़क, स्कूल, अस्पताल, रोजगार, टेलीफोन जैसी सुविधाएं नहीं होती हैं, फिर भी आदिवासी वहां जी रहे है़ं इसलिए आदिवासी सेंगेल अभियान व झारखंड दिशोम पार्टी की मांग है कि भारत सरकार अविलंब एक अध्यादेश लाकर समाधान की दिशा में पहल करे़
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