रांची: बीआइटी मेसरा के सिविल विभागाध्यक्ष डॉ बलराम सिंह ने कहा है कि धरती पर उपलब्ध 70 प्रतिशत पानी में से मात्र तीन प्रतिशत जल ही उपयोग के लायक है. इसका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है. डॉ सिंह 21 वें विश्व जल दिवस के मौके पर कैंब्रिज इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी (सीआइटी) टाटीसिलवे में सोमवार को वाटर एंड एनर्जी विषय पर एकदिवसीय सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे.
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ इंजीनियर्स के एके सक्सेना उपस्थित थे. सेमिनार में विषय प्रवेश प्रसिद्ध भूगर्भशास्त्री डॉ एसपी सिंह ने किया. डॉ बलराम सिंह ने कहा कि आउटसोर्सिंग के इस युग में हमें जल संरक्षण के लिए जागरूक होकर खुद अपनी जिम्मेवारी निभानी होगी. इसके लिये गांवों, शहरों में अधिक से अधिक तालाबों व जलाशयों का निर्माण, उनकी सुरक्षा व पारंपरिक जलस्रोतों को सहेजने व रेन वाटर हार्वेस्टिंग जैसे कारगर विधि को अपनाने की आवश्यकता है. पानी की लगातार हो रही कमी का एक प्रमुख कारण प्रकृति से हो रही छेड़छाड़ भी है.
एके सक्सेना ने कहा कि प्रकृति का वजूद जल से है. समय रहते इसके संरक्षण व उपलब्धता बढ़ाने पर व्यक्ति को गंभीर होने की आवश्यकता है. डॉ सीके सिंह ने कहा कि खादानों में खुदाई के बाद निकलने वाले खनिजों की तुलना में पांच गुणा अधिक पानी निकलता है, तो बेकार हो जाता है.
इसका ट्रीटमेंट कर सिंचाई, कारखानाओं आदि में उपयोग किया जा सकता है. सेमिनार को प्राचार्य डॉ आरपी शर्मा, डॉ ए भट्टाचार्या, डॉ एनके रॉय, प्रो जीके लाल, डॉ आलोक प्रताप सिंह आदि ने भी संबोधित किया.