रांची : लोगों में पढ़ने की प्रवृत्ति भले ही घटी हो, लेकिन किताबें नष्ट नहीं हो सकतीं, किताबों को कोई नष्ट नहीं कर सकता. लिट्रेरी मीट जैसे आयोजनों से किताबें पुनर्जीवित होती हैं. उक्त बातें आज टाटा स्टील झारखंड लिट्रेरी मीट के उद्घाटन के अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार मार्क टली ने कही. उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बनकर मैं बहुत गौरवान्वित हूं और मैं ऐसा महसूस करता हूं कि ऐसे आयोजन से साहित्य में लोगों की रुचि बढ़ती है. इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव के कारण लोगों में पढ़ने की प्रवृत्ति कम तो हुई है, लेकिन ऐसा संभव ही नहीं है कि किताबों को कोई खत्म कर दे.

इस अवसर पर समकालीन हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने कहा कि भारतीय संस्कृति -परंपरा में असहमति के लिए हमेशा स्थान रहा है और असहमति का कम होना लोकतंत्र का कमजोर होना है. कार्यक्रम का उद्घाटन बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार मार्क टली और साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने किया.मीट के पहले सत्र में ‘जीवन की लेखनी’ विषय पर अशोक वाजपेयी से प्रभात खबर के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी ने बातचीत की और उनसे यह पूछा कि वर्तमान समय में लोगों में पढ़ने की जो प्रवृत्ति घटी है, उसे बढ़ाने में इस तरह के आयोजन कितने सफल हो सकते हैं. इस अशोक वाजपेयी ने कहा कि इस तरह के आयोजन निश्चित तौर पर कहीं ना कहीं लोगों में पढ़ने की प्रवृत्ति को बढ़ा रहे हैं साथ ही लोग आयोजन से प्रेरित होकर किताबों की ओर भी अग्रसर हो रहे हैं.
अशोक वाजपेयी ने कहा कि हिंदी समाज का क्षरण दुखद और खतरनाक है. हिंदी समाज ने अपने साहित्य का जितना अपमान किया, किसी और समाज ने नहीं किया होगा. आज जरूरत इस बात की है लोग अपने साहित्य का सम्मान करें तभी हिंदी साहित्य बचेगा. उन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने जाने पर कहा कि देश में जैसी असहिष्णुता बढ़ रही है, वह खतरनाक है, इसलिए मैंने ऐसा किया था.
इस मौके पर प्रभात खबर के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी ने कहा कि साहित्य पर केंद्रित मीट का झारखंड में पहली बार आयोजन हो रहा है. साहित्य के प्रति लोगों की घटती रुचि को बढ़ाने के लिए इस तरह के आयोजन की जरूरत है. उन्होंने यह जानकारी भी दी कि अब से सालाना इस तरह के मीट का आयोजन होगा.
मीट के दूसरे सत्र में इतिहास और पहचान: साहित्य क्षेत्रीय इतिहास का दर्पण है विषय पर अश्विनी कुमार पंकज एवं परदेशी राम वर्मा के साथ प्रभात खबर के वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र तिवारी ने बातचीत की. इस सेशन में यह बात सामने आयी कि इतिहास को गौरवान्वित करने के लिए इसे आज गलत तरीके से भी प्रस्तुत किया जा रहा है. वहीं साहित्यकार अश्विनी पंकज ने कहा कि इतिहास क्या है? संस्कृति क्या है? यह कौन तय करेगा इसपर भी ध्यान देने की जरूरत है. लोग इतिहास और संस्कृति को बदलकर रख देते हैं. आदिवासी समाज में प्राचीन काल से प्रशासनिक व्यवस्था कायम है, लेकिन अंग्रेजों के समय में यह कहा गया कि आदिवासी शासन करने में असमर्थ थे, जिसे सच मान लिया गया है. जबकि सच्चाई यह है कि जो कुछ भी हम भोगते हैं, वह सब इतिहास है.

वहीं परदेशी राम वर्मा ने कहा कि क्षेत्रीय इतिहास और संस्कृति आंचलिक कहानियों में दिखती है. कई आदिवासी परंपराएं कहानियों में नजर आती हैं, इससे यह कहा जा सकता है कि इतिहास साहित्य में नजर आ रहा है. इस दो दिवसीय कार्यक्रम में कार्यक्रम में दिव्य प्रकाश दुबे, राहुल देव, निरंजन आयंगर, अश्विनी कुमार पंकज, परदेशी राम वर्मा, राजदीप सरदेसाई, जयराम रमेश, देवप्रिया रॉय, याज्ञसेनी चक्रवर्ती, अनुज लुगून, रेमिश कंडुलना, ज्योति लकड़ा, महुआ माझी, सत्य व्यास, आशीष चौधरी, कीर्ति कुल्हारी, गौतम चिंतामणि, अनिरुद्ध रॉय चौधरी शामिल होंगे.