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अत्याचार से राहत पर खर्च किये गये 1.31 करोड़
एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम-1989 रांची : अनुसूचित जाति (एससी) तथा अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सदस्यों पर किसी भी तरह का अत्याचार रोकने के लिए देश में कानून है. इसे एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम-1989 के नाम से जाना जाता है. राज्य का कल्याण विभाग इस कानून को लागू करने वाली नोडल एजेंसी है. अत्याचार पीड़ित को […]
एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम-1989
रांची : अनुसूचित जाति (एससी) तथा अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सदस्यों पर किसी भी तरह का अत्याचार रोकने के लिए देश में कानून है. इसे एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम-1989 के नाम से जाना जाता है. राज्य का कल्याण विभाग इस कानून को लागू करने वाली नोडल एजेंसी है. अत्याचार पीड़ित को कल्याण विभाग की तरफ से वित्तीय सहायता मिलती है. विभिन्न तरह की प्रताड़ना व अत्याचार के लिए अलग-अलग धाराअों के तहत वित्तीय सहायता देय है.
न्यूनतम 85 हजार तथा अधिकतम आठ लाख रुपये तक की सहायता दी जा सकती है. झारखंड में वर्ष 2016 के दौरान अत्याचार निवारण मद में 1.31 करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं.
सबसे अधिक 16 (एसटी-14 तथा एससी-2) लोगों को वित्तीय राहत लोहरदगा में दी गयी है. वहीं इसके बाद लातेहार में 15 (एसटी-7 तथा एससी 8), रांची में 11 (एसटी-10 तथा एससी-एक) तथा दुमका में नौ (एसटी-चार तथा एससी-पांच) लोगों को अत्याचार निवारण कानून के तरह वित्तीय सहायता मिली है. शेष जिलों में अौसतन दो-तीन लोगों का यह सहायता मिली है. वित्तीय सहायता संबंधित थाने में प्राथमिकी, आरोप पत्र गठित होने तथा अंत में न्यायालय के आदेश के आधार पर किस्तों में मिलती है.
लोहरदगा, लातेहार व रांची में सर्वाधिक लोगों को मिली सहायता
िकस मामले में कितनी दी जाती है सहायता राशि
विभागीय सूत्रों के अनुसार ज्यादातर मामले एससी-एसटी समुदाय के किसी सदस्य को गाली-गलौज करने तथा उनके साथ मारपीट के होते हैं. इस मामले में अधिकतम एक लाख रुपये की सहायता मिलती है.
पीड़ित पक्ष की तरफ से प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद पहले किस्त के रूप में उसे 25 हजार रुपये दिये जाते हैं. इसके बाद आरोप पत्र दाखिल होने पर 50 हजार तथा अंत में पीड़ित के पक्ष में न्यायालय का आदेश आने के बाद शेष 25 हजार रुपये का भुगतान किया जाता है. उसी तरह यौन उत्पीड़न के मामले में अधिकतम दो लाख रुपये दिये जाते हैं. पीड़िता की मेडिकल जांच व प्राथमिकी दर्ज होने पर 50 फीसदी रकम यानी एक लाख रु उसे दे दिये जाते है. इसके बाद 25 फीसदी यानी 50 हजार रु आरोप पत्र दायर होने के बाद तथा शेष रकम न्यायालय का आदेश आने के बाद दिया जाता है.
गैंग रेप के मामले में सबसे अधिक अाठ लाख रु की वित्तीय सहायता या मुआवजे का प्रावधान है. यह भी हो सकता है कि सबकुछ होने के बाद न्यायालय से पीड़ित के पक्ष में फैसला नहीं आये. इस स्थिति में उसे अंतिम किस्त का भुगतान नहीं होता है. पर जो रकम उसे मिल चुकी है, वह वापस नहीं ली जाती.
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