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इसलाम में नैतिकता

सुहैल सईद इसलाम में नैतिक विषयों पर जोर दिया गया है. इसलाम धर्म का उत्थान केवल धार्मिक, सामाजिक क्रांति का परिणाम नहीं था, बल्कि यह सही अर्थों में विश्व इतिहास की सबसे बड़ी संपूर्ण क्रांति थी. जिसने नैतिक, सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक रूप से ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया और […]

सुहैल सईद
इसलाम में नैतिक विषयों पर जोर दिया गया है. इसलाम धर्म का उत्थान केवल धार्मिक, सामाजिक क्रांति का परिणाम नहीं था, बल्कि यह सही अर्थों में विश्व इतिहास की सबसे बड़ी संपूर्ण क्रांति थी. जिसने नैतिक, सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक रूप से ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया और इसे बदल कर रख दिया. इसलाम के आगमन से पहले विश्व के एक बड़े भू-भाग का मानव समाज न केवल हर प्रकार के गैर अखलाकी कामों में लिप्त था, बल्कि इसे एक प्रकार की सामाजिक स्वीकृति भी हासिल थी. किसी प्रकार के नैतिक मूल्यों सिद्धांतों पर अमल तो दूर इन सिद्धांतों-मूल्यों से वाकिफ ही नहीं थे.
ताकतवर कमजोरों पर जुल्म कर रहे थे. महिलाओं पर हर प्रकार का अन्याय, अत्याचार हो रहा था. लोग पानी की तरह शराब का सेवन करते थे. जिसके नतीजे में अनेक प्रकार की सामाजिक बुराई व अपराध जन्म लेते थे. समाज के कमजोर वर्गों का कोई सुनने वाला ही नहीं था. इस हालात में जब इसलाम धर्म का आगमन हुआ, तो पैगंबर (स) ने पीड़ित मानव समाज के बीच अल्लाह का यह महान संदेश सुनाया कि मुझे इसलिए पैगंबर बना कर भेजा गया कि मैं नैतिकता की तकमील कर दूं.
अर्थात पूर्ण रूप से इसे समाज में स्थापित कर दूं. इसलाम धर्म नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों पर बहुत अधिक जोर इसलिए देता है कि उसे मालूम है कि अगर समाज में इन बुनियादी नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को स्थापित कर दिया गया, तो मानव समाज के अंदर मौजूद अधिकतर बुराइयों और अनैतिक कार्यों का खात्मा स्वयं ही हो जायेगा.

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