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शिक्षा राष्ट्र निर्माण का सबसे मजबूत आधार

संजय कुमार व्यक्ति, समाज व राष्ट्र निर्माण का सबसे मजबूत आधार शिक्षा ही है. समुचित शिक्षा जन-जन तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करने का काम शिक्षा व्यवस्था का है. आज हमारी आवश्यकता है एक प्रभावपूर्ण शिक्षा व्यवस्था की. शिक्षा व्यवस्था ही हमें वैसा भविष्य दे सकती है, जैसा हम चाहते हैं. यद्यपि हमारी शिक्षा व्यवस्था अधिकाधिक […]

संजय कुमार
व्यक्ति, समाज व राष्ट्र निर्माण का सबसे मजबूत आधार शिक्षा ही है. समुचित शिक्षा जन-जन तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करने का काम शिक्षा व्यवस्था का है. आज हमारी आवश्यकता है एक प्रभावपूर्ण शिक्षा व्यवस्था की. शिक्षा व्यवस्था ही हमें वैसा भविष्य दे सकती है, जैसा हम चाहते हैं. यद्यपि हमारी शिक्षा व्यवस्था अधिकाधिक लोगों को साक्षर बनाने का अथक प्रयास कर रही है. समस्याओं के निदान की कुंजी शिक्षा व्यवस्था के ही पास है, किंतु आज हमारी शिक्षा व्यवस्था ही स्वयं समस्याग्रस्त है! समाधान के लिए हमें विचारों के गहरे स्तर पर उतरना होगा. शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए छोटे-मोटे सुधार पर्याप्त नहीं हैं, आमूल चूल परिवर्तन चाहिए, इसके लिए आवश्यक है गहन मौलिक चिंतन और अथक प्रयास. हमारे राष्ट्र की विशालता और बहुलता के समक्ष यह एक दुसाध्य कार्य है, किंतु दूरगामी परिणामों के लिए अनिवार्य भी.
किंतु हम छोटे-छोटे परिवर्तनों में उलझे हैं. समाधान का मार्ग उनसे नहीं निकलेगा. छोटे-छोटे परिवर्तनों में उलझे रहकर हम आवश्यक मौलिक चिंतन और परिवर्तन से चूक जायेंगे. हम व्यक्ति, समाज व राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य को सामने रखकर शिक्षा व्यवस्था के प्रारूप पर गहन चिंतन करें और यह समझने का प्रयास करें कि शिक्षा के मूलभूत उद्देश्यों को प्राप्त करने में हम असफल क्यों हो रहे हैं. हमारे समक्ष बाधाएं क्या हैं? शिक्षा व्यवस्था का काम एक ऐसा वातावरण तैयार करना है, जिसमें बच्चे आपस में तुलना का भाव विकसित न करें, अपितु अपनी अंतर्निहित योग्यता का विकास करें. शिक्षा के नाम पर विद्यार्थियों के जीवन निर्माण की अवधि को बर्बाद कर एक उपाधि के साथ भटकने के लिए छोड़ देना, क्या यही शिक्षा है? नौकरी प्राप्त करने के उद्देश्य से एक डिग्री ले लेना भर ही क्या शिक्षा है?
आज विद्यालयों, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों का समाज निर्माण से, चरित्र निर्माण से और छात्रोंके जीवन निर्माण से कितना संबंध है? क्या जन मानस के निर्माण का कार्य शिक्षा व्यवस्था के अतिरिक्त किसी और माध्यम से हो सकता हैै?
शिक्षा नीति निर्धारण के नाम पर बार-बार अनुसंधान की आवश्यकता नहीं है. वस्तुत: शिक्षा-व्यवस्था को चाहिए दिशा की स्पष्टता, एक व्यापक प्रयोजन और एक व्यापक उद्देश्य बोध. हम अपनी शिक्षा-व्यवस्था को पुनर्परिभाषित करें और आधारभूत ठोस कदम उठाये. सिर्फ आलोचना से और यथार्थ को नकारने से परिस्थितियां नहीं बदलतीं. शिक्षा नीति निर्धारण में सत्ता सहयोग करे, किंतु राष्ट्र के सारे प्रबुद्ध वर्ग की शक्ति इसमें लगनी चाहिए. शिक्षा नीति के निर्माण में शिक्षकों की भागीदारी हो और क्रियान्वयन में सरकार की. शिक्षा व्यवस्था की सफलता-असफलता शिक्षकों पर निर्भर करती है. आज आवश्यकता है, शिक्षकों को अपने स्वयं की गरिमा को पहचानने में सहयोग करने की. यह कार्य प्रबुद्ध शिक्षकों व सरकार के सम्मिलित प्रयास से ही संभव हो सकेगा.
एसोसिएट प्रोफेसर, बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा, रांची

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