Advertisement
भय के साये में जी रहा है 30 परिवार
अविनाश मेदिनीनगर : जिरमनिया कुंवर रात में गहरी नींद में सो नहीं पाती. रात में उठ कर कई बार वह देखती है कि सब कुछ ठीकठाक है न. इसी तरह पिछले कई वर्ष से भय के साये में जिरमनिया का जीवन कट रहा है. भय का और कोई कारण नहीं, बल्कि जर्जर हो चुका मकान […]
अविनाश
मेदिनीनगर : जिरमनिया कुंवर रात में गहरी नींद में सो नहीं पाती. रात में उठ कर कई बार वह देखती है कि सब कुछ ठीकठाक है न. इसी तरह पिछले कई वर्ष से भय के साये में जिरमनिया का जीवन कट रहा है. भय का और कोई कारण नहीं, बल्कि जर्जर हो चुका मकान है. जिरमनिया कुंवर पोखराहा खुर्द में बसे कुष्ठ कॉलोनी में रहती है. करीब 25 साल पहले पलामू के तत्कालीन उपायुक्त एस जलजा की पहल पर मेदिनीनगर से करीब पांच किलोमीटर दूर पोखराहा खुर्द गांव में कुष्ठ कॉलोनी बसायी गयी थी. इसमें वैसे कुष्ठ रोगियों को ले जाकर सुव्यवस्थित ढंग से बसाया गया था, जो मेदिनीनगर के ओवरब्रीज के नीचे रहते थे.
बताया जाता है कि 1991-92 में यह कॉलोनी बसी थी, उसी समय सरकारी स्तर पर आवास बने थे. यहां रहने वाले लोगों के जीविकोपार्जन के लिए भी व्यवस्था की गयी थी. करीब 22 एकड़ जमीन चिह्नित की गयी थी. इस पर आवास भी बने है और खेतीबारी भी होती है. लेकिन आज के तिथि में उस वक्त का बना आवास पूरी तरह से जर्जर हो चुका है. इसलिए इस तरह की समस्या से सिर्फ जिरमनियां ही परेशान नहीं है. बल्कि यह समस्या कॉलोनी में रहने वाले लगभग 30 परिवार के साथ है. कुष्ठ कॉलोनी में लगभग 30 आवास है.
कॉलोनी में जाने के बाद राजकुमार राम से मुलाकात हुई. राजकुमार की उम्र लगभग 75 साल होगी. वह अब ठीक तरीके से चल भी नहीं पाता. बाहर वह अपनी पत्नी तेतरी बुढ़ी के साथ बैठा था. राजकुमार बातचीत में पुराने दिनों का याद करता है. कहता है कि जलजा मैडम थी. एक दिन ओवरब्रीज के पास वह चली आयी. सबसे हालचाल लिया कहा था कि बेहतर जगह पर भेज दिया जाये, तो रहेंगे क्या. तब सभी ने हामी भरी थी.
उसके बाद कुष्ठ कॉलोनी बस गयी. जब तक वह रही हमेशा कुष्ठ कॉलोनी में आकर लोगों से हालचाल लेती थी. राजकुमार को अभी भी वह प्रसंग याद है, जब मैडम ने उसे कहा था तुम तो भीख मांगते है मेहनत कर पाओगे. तब राजकुमार ने कहा था कि मेहनत कर लेंगे. राजकुमार ने मेहनत से खेतीबारी की थी और उससे जो सब्जी उगायी थी. उसने मैडम को दिखाया भी था. मैडम काफी खुश हुई थी. हालांकि अभी भी खेत है. लेकिन वहां रहने वाले लोग खेती नहीं कर पाते. बगल के ही एक किसान उस जमीन पर खेती करते हैं और फसल कॉलोनी में रहने वाले लोगों को भी देते है. हालांकि अब यह कुष्ठ कॉलोनी सुव्यवस्थित नहीं है. इस बीच राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है कि कुष्ठ रोगियों को सुव्यवस्थित ढंग से बसाया जायेगा. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या पलामू के इस कुष्ठ कॉलोनी के भी दिन बहुरेंगे. क्योंकि लोग बताते हैं कि 25 साल पहले जो आवास मिला था, वह जर्जर हो चुका है. अभी तक सरकारी स्तर पर इस कॉलोनी में संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत दस शौचालय का निर्माण कराया जा रहा है.
खुद पढ़ा नहीं, पर बच्चों को है पढ़ाने की ललक
कुष्ठ कॉलोनी में रहने वाले रंजीत और विकास सगे भाई हैं. बचपन में ही मां-बाप छोड़ कर कहीं चले गये थे.दादा-दादी ने भीख मांगकर पाला पोसा, गरीबी के कारण पढ़ नहीं सके. लेकिन दोनों की इच्छा है कि उनके बच्चे पढ़े. इसके लिए वे लोग प्रयास भी कर रहे हैं. यद्यपि अभी कॉलोनी में रहने वाले बच्चों में शिक्षा के प्रति अपेक्षित रुचि नहीं है. 30 घरों की इस बस्ती में करीब 200 लोग रहते हैं. विकास और रंजीत रिक्शा चलाता है. अन्य कई लोग आज भी भीख मांग कर अपना रोजी रोटी चलाते हैं. जब यह कॉलोनी बसी थी, तब लोगों को रोजगार के लिए भी साधन उपलब्ध कराये गये थे.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement