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बजट में पलामू की उपेक्षा
केएन त्रिपाठी ने दी आरपार की लड़ाई की चेतावनी मेदिनीनगर : राज्य के पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी ने झारखंड के बजट में पलामू प्रमंडल की उपेक्षा का आरोप लगाया है. बजट में पलामू की जो हिस्सेदारी होनी चाहिए थी, उसमें कटौती की गयी. जो तीन योजना पलामू में देने की बात कही जा रही है, […]
केएन त्रिपाठी ने दी आरपार की लड़ाई की चेतावनी
मेदिनीनगर : राज्य के पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी ने झारखंड के बजट में पलामू प्रमंडल की उपेक्षा का आरोप लगाया है. बजट में पलामू की जो हिस्सेदारी होनी चाहिए थी, उसमें कटौती की गयी. जो तीन योजना पलामू में देने की बात कही जा रही है, वह पूर्व में ही स्वीकृत थी. समाहरणालय के नये भवन का टेंडर पहले ही निकला था, जो रद्द हुआ था.
मेडिकल कॉलेज भी पूर्व की सरकार ने ही स्वीकृत किया था. ऐसे में पलामू के लिए नया क्या है. मेदिनीनगर में पेयजल की किल्लत है. इसके लिए 52 करोड़ की योजना पूर्व में सरकार द्वारा तैयार की गयी थी. इस बजट में उसे शामिल किया जाना था, लेकिन पूर्व के निर्णय को बदल कर इस सरकार ने फेज-2 की योजना को अधर में लटकाने का प्रयास किया गया है.
यदि सरकार 30 मार्च तक मेदिनीनगर के पेयजलापूर्ति के फेज-2 की योजना को बजट में शामिल नहींकरती, तो इस मामले को लेकर आरपार की लड़ाई होगी. पूर्व मंत्री श्री त्रिपाठी परिसदन में पत्रकारों से बात कर रहे थे. उन्होंने कहा कि यदि बजट में फेज-2 की योजना का समावेश नहीं हुआ, तो फिर एक साल यह मामला लटक जायेगा और सिर्फ बात ही होती रहेगी. इसलिए इस सवाल को लेकर वह चरणबद्ध आंदोलन करेंगे.
क्योंकि मेदिनीनगर पेयजल संकट से जूझ रहा है. पर सरकार में बैठे लोगों को इसकी चिंता नहीं है. श्री त्रिपाठी ने इस बात पर हैरत जतायी कि सरकार ने पलामू की उपेक्षा की, लेकिन यहां के जनप्रतिनिधि उसका विरोध तक नहीं कर रहे हैं. मौके पर कैसर जावेद, श्यामनारायण सिंह, मीडिया प्रभारी नवीन तिवारी सहित कई लोग थे.
स्मार्ट सिटी में क्यों नहीं शामिल हुआ मेदिनीनगर
पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी ने कहा कि राज्य सरकार ने स्मार्ट सीटी बनाने के मामले में मेदिनीनगर के साथ भेदभाव किया है. एक-एक प्रमंडल के दो शहरों को शामिल किया गया, लेकिन पलामू प्रमंडल के मुख्यालय मेदिनीनगर को इससे बाहर रखा गया. सरकार ने 1800 करोड़ का ऋण लेकर सड़क निर्माण की योजना तैयार की है. इसमें एक भी बड़ी सड़क का निर्माण पलामू में नहीं हो रहा है. समग्रता का अभाव है.
क्षेत्रीय विषमता साफतौर पर झलक रही है. नियोजनालय को कैरियर काउंसलिंग का माध्यम साथ ही उसे सशक्त बनाने की जो पहल उनके द्वारा शुरू की गयी थी, उसे भी इस सरकार ने बदल दिया. सामाजिक दायित्व के कार्य के लिए तीन हजार करोड़ विभिन्न कंपनियों से सरकार को प्राप्त होते हैं, इसके लिए पूर्व के सरकार ने एक विभाग को दायित्व का निर्णय लिया था, पर उस निर्णय को भी सरकार ने पलट दिया. मतलब साफ है कि सरकार को आमजनों की कोई चिंता नहीं है.
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