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यज्ञ में त्याग की भावना होनी चाहिए : धर्मराज

पाटन मोड़ पर प्रवचन कार्यक्रमपड़वा(पलामू). मकर संक्रांति के अवसर पर पाटन मोड पर प्रवचन का 30 वां अधिवेशन चल रहा है. मिरजापुर से पधारे पंडित धर्मराज शास्त्री ने कहा कि प्राचीन काल में भी यज्ञ हुआ करते थे. उसका प्रभाव देखने को मिलता था. इस काल में भी यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है. […]

पाटन मोड़ पर प्रवचन कार्यक्रमपड़वा(पलामू). मकर संक्रांति के अवसर पर पाटन मोड पर प्रवचन का 30 वां अधिवेशन चल रहा है. मिरजापुर से पधारे पंडित धर्मराज शास्त्री ने कहा कि प्राचीन काल में भी यज्ञ हुआ करते थे. उसका प्रभाव देखने को मिलता था. इस काल में भी यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है. मगर इसका सही प्रभाव देखने को नहीं मिलता. शास्त्रों में यह वर्णित है कि यज्ञ सदा कल्याणकारी होता है. लेकिन पलामू में प्रति वर्ष कई जगहों पर यज्ञ का आयोजन किया जाता है, फिर भी पलामू हर वर्ष सुखाड़-अकाल की चपेट में ही रहता है. कहा जाता है कि जहां यज्ञ का आयोजन होता है, वहीं लगातर तीन वर्ष तक अच्छी बारिश होती है. किसानों के अलावा अन्य प्राणी सुख का अनुभव करते हैं. मगर यहां ठीक उलटा देखने को मिल रहा है. उन्हांेने कहा कि इसका मतलब यह है कि यज्ञ शुभकामना व त्याग की भावना से नहीं किया गया. यह बात सुनने में अटपटा जरूर लग रहा है, मगर यह कड़वा सच है. पंडित इंद्रेश शास्त्री ने हनुमान जी के चरित्र चित्रण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संसार को जो विपत्ति से निकालता है, उसे भगवान कहते हैं. भगवान को भी जो संकट से उबारे उसे हनुमान कहा गया है.

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