लोहरदगा :15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ. भारत की गुलामी और आजादी के बीच के अनुभव आज भी पुराने लोगों के जेहन में है. चर्चा के क्रम में पुराने लोग बताते हैं कि किस तरह 15 अगस्त को एक उत्सव की तरह मनाया गया था. लोगों को कैसी खुशी मिली थी. उस समय का माहौल कैसा था. दृश्य कैसा था. लोगों ने गुलामी और आजादी दोनों को देखा और फर्क महसूस किया.
लोहरदगा शहर में आजादी की एक निशानी है जिसे जय प्रकाश स्तंभ यानी स्वतंत्रता प्राप्ति का स्मारक कहा जाता है़ इसका निर्माण 15 अगस्त 1947 को किया गया था. यह स्तंभ शहरी क्षेत्र के गुदरी बाजार हनुमान मंदिर के पास आज भी स्थित है. लोग इसे बड़े गर्व से दिखाते हैं. इसी कड़ी में कुछ पुराने लोगों की यादें प्रभात खबर प्रकाशित कर रहा है.
आज और कल में जमीन-आसमान का अंतर : रांची कॉलेज के पूर्व प्राचार्य 92 वर्षीय डॉ विश्वंभर नाथ पांडेय पुरानी यादों को ताजा करते हुए अतीत में खो जाते हैं. उन्होंने बताया कि आजादी के समय वे आइए के विद्यार्थी थे. जैसे ही सूचना मिली कि भारत देश आजाद हो गया है. हर ओर उत्सव का माहौल हो गया. लोग अपने घरों से निकल कर खुशियां मनाने लगे. क्या बच्चे, क्या महिलाएं, क्या बूढ़े सभी सड़कों पर आ गये सबके चेहरे पर खुशी झलक रही थी. अपने-अपने घरों में तिरंगा फहरा कर लोग आजादी का जश्न मना रहे थे.
गांधी टोपी पहन कर हाथ में तिरंगा झंडा लेकर लोग गलियों में घूम रहे थे. नारे लगाये जा रहे थे. विद्यालयों में मिठाइयां बांटी जा रही थी. लोगों की खुशी का कोई पैमाना नहीं था. जगह-जगह राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया गया था. आज भी वो दिन याद है जब सड़कों पर मिलिट्री चलती थी तो लोग अपने घरों में दुबक जाते थे. आज और कल में जमीन-आसमान का अंतर है.