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केबुल कंपनी: 16 साल बाद बदलेगी कर्मचारियों की किस्मत
जमशेदपुर :शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही केबुल कंपनी के मजदूरों में खुशी की लहर दौड़ गयी. मजदूर कंपनी गेट पर जुटे और एक दूसरे को फैसले की जानकारी दी. 16 साल तक संघर्ष कर चुके मजदूरों में हालांकि अब भी संदेह है, पर अब आगे का रास्ता साफ नजर आ रहा है. […]
जमशेदपुर :शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही केबुल कंपनी के मजदूरों में खुशी की लहर दौड़ गयी. मजदूर कंपनी गेट पर जुटे और एक दूसरे को फैसले की जानकारी दी. 16 साल तक संघर्ष कर चुके मजदूरों में हालांकि अब भी संदेह है, पर अब आगे का रास्ता साफ नजर आ रहा है. यह स्पष्ट हो गया है कि टाटा स्टील ही कंपनी का अधिग्रहण करेगी. केबुल कंपनी के अधिग्रहण की टाटा स्टील को अनुमति देना सुप्रीम कोर्ट के लिए एक सामान्य प्रक्रिया थी लेकिन यह आदेश केबुल कर्मचारियों के लिए वरदान मिलने जैसा है.
केबुल बस्ती व कॉलोनी में लौटी रौनक : शुक्रवार के फैसले से केबुल बस्ती और केबुल कॉलोनी की रौनक लौट गयी है. महिलाओं से लेकर बच्चों तक के चेहरे पर एक नयी चमक दिख रही है. सभी में उम्मीद जगी है कि जल्द ही कंपनी फिर से खुलेगी और उनके रोजी-रोजगार के रास्ते खुलेंगे.
बंद और खुलती रही कंपनी : गोलमुरी स्थित इंकैब इंडस्ट्रीज (केबुल कंपनी) 15 साल पहले बंद हो गयी थी. केबुल कंपनी 1920 में स्थापित हुई थी. ब्रिटिश कैलेंडर केबुल के नाम से यह कंपनी थी. 1988 में नाम इंकैब इंडस्ट्रीज लिमिटेड हो गया. कंपनी का 26 फीसदी शेयर काशीनाथ तापुरिया ने खरीदा. इसके बाद पूरा प्रबंधन उनके हाथ में आ गया. करीब तीन साल तक उन्होंने कंपनी चलायी. 1991-92 में कंपनी की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो गयी. घाटा दिखाया गया, लेकिन इससे पहले यह कंपनी न्यूनतम दो करोड़ रुपये की आमदनी करती रही. इसके बाद काशीनाथ तापुरिया ने हाथ खींच लिया.
1996 में मलेशियाई कंपनी ने किया था अधिग्रहण : 1996-97 में केबुल कंपनी को मलेशियाई कंपनी लीडर यूनिवर्सल ने अधिग्रहण कर लिया. वाइस चेयरमैन पीके सर्राफ की देखरेख में उत्पादन शुरू हुआ. वर्ष 1999 में उन्होंने अपना इस्तीफा सौंपा. इसके बाद मलेशियाई कंपनी ने भी हाथ खींच लिया. फिर पी घोष होलटाइम डायरेक्टर बने. 1999 के दिसंबर में कंपनी का कामकाज पूरा ठप हो गया.
2000 में रुग्ण उद्योग बता बायफर में भेजी गयी कंपनी :
अप्रैल, 2000 में रुग्ण उद्योग बताकर कंपनी को बायफर में भेजा गया. वहां इसकी लगातार सुनवाई हुई. इस दौरान कंपनी को प्रमोटरों के लाले पड़ गये. 2001 में अंतरिम प्रबंधकीय कमेटी बनी, 2009 में तीन नये डायरेक्टर बने. वर्ष 2001 में अंतरिम प्रबंधकीय कमेटी का गठन हुआ. इसकी देखरेख में ही कंपनी की सारी गतिविधियां संचालित थीं. वर्ष 2009 के मई माह में तीन नये डायरेक्टर को मलेशियाई कंपनी प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया. तब से निदेशक मंडल की देखरेख में कंपनी चलायी जा रही है.
टाटा स्टील ने केबुल के लिए प्रस्ताव सौंपा : शुरुआती दौर में कंपनी के लिए कोई प्रोमोटर आगे नहीं आया. कई यूनियनों ने अपनी ओर से प्रस्ताव दिया. लेकिन बाद में टाटा स्टील ने कर्मचारियों के साथ बैठक करने के बाद केबुल कंपनी के लिए अपना प्रस्ताव सौंपा.
दो सप्ताह में तैयार करनी है रिपोर्ट
दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले के अनुसार दो माह के भीतर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट को तैयार करना है. वहीं इसके अधिग्रहण के लिए काम शुरू करना होगा. टाइड अप प्रोजेक्ट के तहत पूरी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जायेगी. इसमें तय किया जायेगा कि कितना बकाये का भुगतान कब तक किया जा सकता है. कंपनी किस तरह चलायी जा सकती है. कंपनी को चालू करने के लिए मुख्य ऑपरेटिंग एजेंट स्टेट बैंक पूरा फाइनांस करने को तैयार है. इसकी जानकारी स्टेट बैंक ने दिल्ली हाइकोर्ट से लेकर बायफर तक को दे दी है.
टाटा स्टील का पैकेज
अनसिक्यूर्ड क्रेडिटर के पेमेंट-74.25 लाख रुपये
कंपनी के पुनरुद्धार पर-1265.00 लाख रुपये
अनिवार्य क्रेडिट-2984.01 लाख रुपये
मजदूर के बकाये मद में-359.00 लाख रुपये
पीएफ के बकाये मद में-370.00 लाख रुपये
ग्रेच्यूटी मद में-1741.00 लाख रुपये
मजदूरी के मद में भुगतान-2470.00 लाख रुपये
कुल परियोजना-8701.00 लाख रुपये में
जापानी कंपनी के साथ मिलकर चलेगी कंपनी
केबुल कंपनी को टाटा स्टील संचालित करेगी. एक जानकारी के अनुसार करीब तीन सौ करोड़ रुपये की लागत से टाटा स्टील कंपनी को पुनर्जीवित करेगी. टाटा स्टील सूत्रों के मुताबिक तार कंपनी की तर्ज पर ही केबुल कंपनी का संचालनजापानी कंपनी के साथ मिल कर किया जायेगा, इसे लेकर आवश्यक तैयारी कर ली गयी है.
बकाया का आधा देगी टाटा स्टील
अधिग्रहण के बाद टाटा स्टील को आधा बकाया वेतन देना होगा. इसका उल्लेख टाटा स्टील के प्रस्ताव में है. केबुल कंपनी का 116 करोड़ रुपये बकाया है. केबुल कंपनी के जमशेदपुर प्लांट में 1450 मजदूरों व पदाधिकारियों के मद में 116 करोड़ रुपये बकाया है. वर्तमान में 1292 कर्मचारी व पदाधिकारी कार्यरत हैं, जिनमें 120 पदाधिकारी हैं. इस मद में भुगतान कंपनी को करना होगा.
कुल संपत्ति और कर्मचारी
बंद होने के समय कर्मचारी : 1450
वर्तमान में जमशेदपुर में कर्मचारी : 1292
रिटायर कर्मचारियों के बाद शेष : 900
पुणे में कर्मचारियों की संख्या : 180
कोलकाता में कर्मचारी : 60
भारत में अन्य कर्मचारी : 60
कुल अनुमानित संपत्ति बंदी के समय (जमशेदपुर) : 120 करोड़
वर्तमान कीमत : लगभग 500 करोड़
मजदूरों का बकाया : लगभग 116 करोड़
पानी-बिजली का बकाया : 23 करोड़
अन्य बकाया : दो-तीन करोड़
कंपनी का शेयर : 51 % लीडर यूनिवर्सल , 12 % काशीनाथ तापुड़िया और 5 % पीके सर्राफ.
क्या बनता था : 33 केवीए तक का विश्वस्तरीय केबुल
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