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भयावह: सात किलोमीटर क्षेत्र में उठ रहीं लपटें, जंगल से भाग रहे जानवर, दो दिनों से जल रहा है दलमा

जमशेदपुर/पटमदा: हाथियों के सबसे बड़े अभयारण्य में शुमार दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी का सात किलोमीटर क्षेत्र पिछले दो दिनों से आग की लपटों से घिरा है. लगातार फैलती आग की वजह से छोटे-छोटे वन्य जीवों का जीना मुश्किल हो गया है, वहीं‍ साल के पेड़ धू-धू कर जल रहे हैं. लेकिन वन विभाग मूकदर्शक बना […]

जमशेदपुर/पटमदा: हाथियों के सबसे बड़े अभयारण्य में शुमार दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी का सात किलोमीटर क्षेत्र पिछले दो दिनों से आग की लपटों से घिरा है. लगातार फैलती आग की वजह से छोटे-छोटे वन्य जीवों का जीना मुश्किल हो गया है, वहीं‍ साल के पेड़ धू-धू कर जल रहे हैं. लेकिन वन विभाग मूकदर्शक बना हुआ है. उसने अबतक कोई एक्शन नहीं लिया है. अगर आग पर जल्द काबू न पाया गया, तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है.
इन सात किलोमीटर क्षेत्र में नूतनडीह, बाटालुका व आमदापहाड़ी के बहुमूल्य साल जंगल के लाखों पेड़ और असंख्य कीड़े-मकोड़े आग की भेंट चढ़ चुके हैं. आग पर काबू पाने के लिए वन विभाग व इको विकास समिति के किसी भी सदस्य ने प्रभावित क्षेत्र का मुआयना तक नहीं किया है. विकराल स्थिति और विभाग की लापरवाही देख आस-पास के ग्रामीण भयभीत हैं. वहीं, दलमा के बोंटा का जंगल भी आग की चपेट में है. ग्रामीणों के अनुसार तेज हवा व लू के कारण आग काफी तेजी से फैल रही है. अगर विभाग ने जल्द ही कोई कार्रवाई नहीं की, तो आग गांव तक पहुंच जायेगी. 192 वर्ग किलोमीटर में फैले इस जंगल में किसी तरह का कोई ठोस इंतजाम तक नहीं किया गया है.
आज तक दलमा में नहीं बन सकी फायर लाइन. राज्य गठन के बाद तय किया गया था कि दलमा को आग से बचाने के लिए जनवरी के बाद से फायर लाइन बनाने का काम शुरू कर दिया जायेगा. जिसके तहत पेड़-पौधे वाले घने क्षेत्र में बीच-बीच में गैप कर एक लाइन बनायी जायेगी, ताकि अगर आग लगे तो उसे लाइन तक रोका जा सके. इस कांसेप्ट को 15 साल के गुजर जाने के बावजूद दलमा के जंगलों में लागू नहीं किया जा सका है.
क्या हो रहे नुकसान
1. पेड़ों के बीज भूमि पर गिरकर बाल वृक्ष के रूप में उगते हैं अथवा वृक्षों से पुनः पौधे (कॉपिस) निकलते हैं. इन दोनों विधियों से जंगलों का अस्तित्व बरकरार रहता है. जंगल की आग से ये बाल वृक्ष जल रहे हैं, जबकि तीव्र आग कटे वृक्षों की जड़ों को सुखा रही है, जिससे भूमि बंजर हो रही है.
2. तेज आग से वृक्षों के जलने के कारण भूमि को सूर्य और वायु का प्रकोप सहना पड़ता है. जिससे मृदा-क्षरण (सायल इरोजन) हो रहा है.
3. आग की चपेट में आने से वन्य पशु-पक्षियों समेत अंड व नवजात जल रहे हैं. जिसके कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है.
अाग लगने की वजह
1. मजदूरों द्वारा शहद, साल के बीज जैसे कुछ उत्पादों को इकट्ठा करने के लिए जानबूझकर आग का लगाया जाना.
2. कुछ मामलों में जंगल में काम कर रहे मजदूरों, वहां से गुजरने वाले लोगों या चरवाहों द्वारा गलती से जलती हुई कोई चीज वहां छोड़ दिया जाना.
3. आस-पास के गांव के लोगों द्वारा दुर्भावना से आग लगाना.
एहतियात जो बरती जाएं
पहले की तरह अप्रैल, मई और जून के महीनों में आग पर निगरानी रखने के लिए कर्मचारी नियुक्त किए जाने चाहिए.
सीमित मात्रा में घास-फूस जलाने की सीमा रेखा का स्पष्ट रेखांकन जो धन की कमी की वजह से छोड़ दिया गया था, नियमित किया जाना चाहिए.
आग जलाने के काम को नियन्त्रित किया जाना चाहिए जिससे जंगल में पेड़ से गिरी चीड़ के पेड़ की पत्तियां इकट्ठी न होने पाएं.
चीड़ की सुई जैसी पत्तियों के वैकल्पिक प्रयोग को सरकार द्वारा बढ़ावा दिया जाए. इससे जंगल में इन ज्वलनशील पत्तियों के फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी.
वन विभाग के कर्मियों को वायरलेस के जरिए बेहतर संचार साधन उपलब्ध कराए जाएं, ताकि वे जंगल की आग से निपटने पेड़ों को काटने के खिलाफ त्वरित कार्रवाई कर सकें.

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