जमशेदपुर : जिस कौम की जुबान खत्म हो जाये उस कौम का अस्तित्व बचाना मुश्किल हो जायेगा. इसलिए हम सभी का दायित्व है कि अपनी नस्ल को उर्दू के साथ जोड़ें. अगर हम ऐसा नहीं कर पायें तो एक दिन पछताना पड़ेगा. उक्त बातें डॉ बदरूद्दीन अहमद ने कहीं. वे रविवार को दुनिया ए अदब की ओर से आयोजित ‘आज के दाैर के साहित्य रचना का रुझान विषय पर आयाेजित सेमिनार काे संबाेधित कर रहे थे.
बिष्टुपुर स्थित एक हाेटल में आयाेजित सेमिनार में शामिल हाेने लंदन से शहर पहुंचे डॉ बदरुद्दीन ने कहा कि हिंदुस्तान में उर्दू दिन पर दिन हाशिये पर आ रही है. हमें इसकी गंभीरता काे समझते हुए लिखने अाैर पढ़ने पर विशेष जाेर देना हाेगा. मौके पर शायर अजीत बेलगावी ने कहा कि उर्दू की लिपि खात्मे की आेर है.
उर्दू आैर हिंदी बाेलनेवालाें की संख्या घटती जा रही है. यदि हिंदी-उर्दू बाेलना जानते हैं ताे सुननेवालाें की संख्या भी बढ़ानी हाेगी. मौके पर वीमेंस कॉलेज की रिजवान परवीन इरम ने कहा कि यूएनआे ने दावा किया है कि दुनिया भर में बाेली जानेवाली छह हजार से अधिक भाषाआें में ढाई हजार पर संकट है, उनमें उर्दू भी शुमार है. सेमिनार को एसआरए रिजवी छब्बन, रांची से आये एमए हक, काेल्हान यूनिवर्सिटी की राेकेया बानाे ने भी संबाेधित किया. संचालन प्राेफेसर अहमद बद्र ने किया, जबकि स्वागत मुमताज शारिक आैर धन्यवाद ज्ञापन अख्तर राजा ने किया. इस अवसर पर बड़ी संख्या में स्थानीय बुद्धिजीवी माैजूद थे.