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झारखंड मुसलिम वेलफेयर सोसायटी :::असंपादित

झारखंड मुसलिम वेलफेयर सोसायटी :::असंपादितसाकची स्थित जामा मसजिद में झारखंड मुसलिम वेलफेयर सोसायटी नाम से चैरिटी चलता है. इसे सहायता केंद्र भी कहा जा सकता है. इसकी खूबी है कि इसमें हर धर्म के वयस्क बिना सूद लाभ के कुछ राशि जमा करते हैं. ये सोसायटी के सदस्य होते हैं. सदस्य जरूरत के हिसाब से […]

झारखंड मुसलिम वेलफेयर सोसायटी :::असंपादितसाकची स्थित जामा मसजिद में झारखंड मुसलिम वेलफेयर सोसायटी नाम से चैरिटी चलता है. इसे सहायता केंद्र भी कहा जा सकता है. इसकी खूबी है कि इसमें हर धर्म के वयस्क बिना सूद लाभ के कुछ राशि जमा करते हैं. ये सोसायटी के सदस्य होते हैं. सदस्य जरूरत के हिसाब से लोन ले सकते हैं. इस राशि से प्राप्त ब्याज से जरूरतमंद की सहायता की जाती है. यहां भी धर्म को नहीं देखा जाता. लाइफ @ जमशेदपुर की रिपोर्ट … हर धर्म के लोग हैं सदस्य वर्तमान में वेलफेयर सोसायटी में करीब 16 हजार सदस्य (बेनिफिशियरी) हैं. जो अलग-अलग धर्म के हैं. झारखंड मुसलिम वेलफेयर सोसायटी से संबंध रखने वाले हसीब बताते हैं कि इस सोसायटी में हर धर्म के लोग हैं. जुगसलाई स्थित गौरीशंकर रोड वार्ड नंबर छह के जनरैल सिंह भाटिया सिख हैं. जुगसलाई के ही अनीता सिंह हिंदू धर्म में विश्वास रखती हैं. जाकिरनगर मानगो के मोहम्मद जावेद इकबाल इसलाम धर्म के अनुयायी हैं. ये सभी सोसायटी के सदस्य हैं. सभी सोसायटी के फंड में पैसे जमा करते हैं. कैसे हुआ जुड़ाव जनरैल सिंह भाटिया बताते हैं कि जुगसलाई में उनके घर के पास ही मोहम्मद साबिर का घर है. इस घर से शुरू से उनका पारिवारिक रिश्ता रहा. वह बताते हैं कि उन्हें कभी नहीं लगा कि वह अलग धर्म के हैं. मोहम्मद साबिर से ही उन्हें वेलफेयर सोसायटी के बारे में जानकारी मिली. जानकारी पाकर वह इसका सदस्य बने और पैसा जमा किया. यहां से वह सहायता के रूप में कुछ राशि भी ले चुके हैं. अभी तक लोन वापस नहीं किया है. अनीता सिंह भी सोसायटी की सदस्य हैं. उन्हें मुसलिम समुदाय के लोगों से ही यहां की जानकारी मिली. उनके पति राजेश सिंह प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं. वह बताते हैं कि उन्हें पता चला था कि सदस्य बन जाने के बाद कभी जरूरत पड़ने पर सोसायटी से लोन लिया जा सकता है. मोहम्मद जावेद के मुताबिक घर में छोटा-छोटा पैसा जमा करना मुश्किल हो जाता है. दस-बीस रुपये आप जमा नहीं कर सकते. सोसायटी में आप छाेटा-छोटा पैसा भी जमा कर सकते हैं. साथ ही यहां से लोन भी ले सकते हैं. वह बताते हैं कि यह एक तरह से आगे बढ़ने का जरिया है. इसलिए वह इससे जुड़े. कैसे हुई स्थापना झारखंड मुसलिम वेलफेयर सोसायटी पहले मुसलिम फंड के नाम से जानी जाती थी. इसके संस्थापक हाजी अब्दुल हकीम थे. उन्होंने गरीब लोगों के बीच पैसा जमा करने का कॉन्सेप्ट विकसित किया. इसी उद्देश्य से इसकी स्थापना 1983 में की गयी. उस समय झारखंड अलग नहीं हुआ था. इसलिए बिहार से ही इसका रजिस्ट्रेशन कराया गया था. झाखंड अलग राज्य बनने के बाद इसका नाम बदल दिया गया. इसी साल 2015 में इसका झारखंड मुसलिम वेलफेयर सोसायटी के नाम से रजिस्ट्रेशन कराया गया. क्या है उद्देश्य सोसायटी बनाने का उद्देश्य हर समुदाय के गरीब लोगों को आगे बढ़ने के लिए सहायता प्रदान करना है. किसी भी समुदाय और कौम का कोई भी वयस्क सोसायटी का सदस्य हो सकता है. साथ ही एक घर का हर वयस्क भी इसका सदस्य बन सकता है. ऐसे होता है पैसा जमा इसमें सदस्य दस, बीस रुपये कर छोटी-छोटी राशि जमा करते हैं. ऐसे लोगों को बेनीफिशियरी मेंबर कहा जाता है. इसमें एक मुश्त अधिकतम 19 हजार 500 रुपये जमा किया जा सकता है. सोसायटी में एक व्यक्ति का दो लाख रुपये तक ही रखा जाता है. सदस्य जब चाहे अपना मूलधन वापस ले सकता है. सदस्य को सुविधा दी गयी है कि वह खुद सोसायटी में अाकर पैसा जमा कर सकता है या समय-समय पर उनके घर या दुकान जाकर कलेक्टर पैसा जमा लेते हैं. लोन पाने का तरीका लोन सोसायटी के सदस्यों को ही मिलता है. नियमानुसार एक बार में अधिकतम 19 हजार 500 रुपये ऋण दिया जाता है. इसके एवज में इतने ही मूल्य के सोना या चांदी रखना होता है. लोन की राशि वापस करने पर गहने वापस कर दिये जाते हैं. जमीन के कागजात पर लोन नहीं दिया जाता. जानकारी के मुताबिक लोन लेने पर कुछ प्रोसेसिंग फीस भी ली जाती है. लोन निश्चित समय के लिए दिया जाता है. इस अवधि में ऋण नहीं लौटाने पर प्रोसेसिंग फीस बढ़ जाता है. ऋण वापस नहीं करने पर सदस्य की स्थिति को देखते हुए पाक रमजान में प्रोसेसिंग फीस का 60 फीसदी तक लौटा दिया जाता है. स्थिति अधिक खराब रहने पर पूरी प्रोसेसिंग फीस तक माफ की जा सकती है. इसका निर्णय सोसायटी की बैठक में लिया जाता है. रमजान में ही इसकी घोषणा होती है कि मूलधन वापस कर अपना गहना ले जायें. लोन पाने के लिए एक प्रोसेस से गुजरना होता है. सदस्य को जिस काम के लिए ऋण चाहिए उससे संबंधित एक आवेदन देना होता है. साथ में डोकेमेंट्स भी लगाने होते हैं. बांट दिये जाते हैं ब्याज सोसायटी में जितने पैसे आते हैं उसे बैंक में जमा कर दिया जाता है. स्वाभाविक रूप से इस पैसे पर बैंक ब्याज देता है. ब्याज के पैसे गरीबों में बांट दिये जाते हैं. किसी गरीब या जरूरतमंद को इलाज, बेटी की शादी जैसे काम के लिए मुफ्त में पैसे दिये जाते हैं. उदाहरण के लिए बेटी की शादी करनी है तो आवेदन के साथ डॉक्टर की रसीद की छायाप्रति, अस्पताल का खर्च, आइडी, पता आदि डोकोमेंट्स लगाने होते हैं. सहायता राशि अधिकतम पांच हजार रुपये ही दी जाती है. इससे अधिक की राशि के लिए सोसायटी की बैठक में फैसला लिया जाता है. पैसा सही हाथों में जाये इसके लिए कलेक्टर इन्क्वायरी करते हैं. मुफ्त में लगाये जाते हैं चेकअप कैंप सोसायटी की तरफ से समय-समय पर मुफ्त मेडिकल चेकअप कैंप लगाये जाते हैं. साथ ही चेकअप कैंप पर मुफ्त में दवा भी दी जाती है. इसके अलावा समय-समय पर गरीब बच्चों के बीच स्टेशनरी भी बांटे जाते हैं. जानकारी के मुताबिक सोसायटी की तरफ से मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति देने और गरीब बच्चों की पढ़ायी का खर्च वहन करने की योजना भी है. ऐसे निकलता है सोसायटी का खर्च वर्तमान में अस्थायी, कलेक्टर आदि मिलाकर सोसायटी में 16 स्टाफ काम कर रहे हैं. यहां पूरी तरह से बैंक के समान काम होता है. हर सदस्य का डिटेल रखना. उनके पैसे, ऋण आदि का हिसाब रखना पेचीदा काम है. स्टाफ को मेहनताना दिया जाता है. यह पैसा प्रोसेसिंग फीस और एक बार ली जाने वाली मेंबरशिप फी से निकलता है.

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