फोटो31 सीकेपी 51.प्रतिनिधि, बंदगांवबंदगांव प्रखंड के तिरका गांव में ढिरीचपी (कब्र पर रखा पत्थर को धोना) का उत्सव मनाया गया. इसमें प्रत्येक घर वाले अपने रिश्तेदारों को तथा आसपास के गांव वालों को निमंत्रण देकर बुलाया तथा कब्र पर रखे पत्थर को धोकर उसे अपनी परंपरा के अनुसार सजाया गया. यह आदिवासियों के पूर्वजों से मिलने का कार्यक्रम है. यह सदियों पुरानी प्रथा है, जिसे लोग मनाते आ रहे हैं. इस पर्व के माध्यम से पुरखों की स्मृति को बरकरार रखा जाता है. कहा जाता है कि जब आदिवासी समुदाय भारतवर्ष में आये थे, उस वक्त भारतवर्ष वीरान था. चारों ओर जंगल यानी अंधेरा सा दिखाई देता था, इसलिए (मुंडा भाषा) में हेंद्रे शिसुम कहा था. यही हेंद्रे दिशुम बदल कर हिंदुस्तान हो गया. भारतवर्ष में सर्वप्रथम आने वाले आदिवासियों को ही जल, जंगल और जमीन पर उनका अधिकार हो गया. आदिवासियों को अपनी संस्कृति और जाति की पहचान को बरकरार रखने का अधिकार है. इस कार्यक्रम में काफी संख्या में बुजुर्ग बुद्धिजीवी उपस्थित थे. इस कार्यक्रम में लोकोन मुंडा, सोना मुंडा, बिरसा मुंडा, बारत मुंडा, विजय मुंडा समेत अन्य उपस्थित थे.
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बंदगांव में ढिरीचपी कार्यक्रम आयोजित
फोटो31 सीकेपी 51.प्रतिनिधि, बंदगांवबंदगांव प्रखंड के तिरका गांव में ढिरीचपी (कब्र पर रखा पत्थर को धोना) का उत्सव मनाया गया. इसमें प्रत्येक घर वाले अपने रिश्तेदारों को तथा आसपास के गांव वालों को निमंत्रण देकर बुलाया तथा कब्र पर रखे पत्थर को धोकर उसे अपनी परंपरा के अनुसार सजाया गया. यह आदिवासियों के पूर्वजों से […]
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