फोटो दूबेजीलाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुरबाहा हो या होली, दोनों में ही खुशियों का रंग है. होली की तरह ही आदिवासी समाज के बाहा पर्व में अबीर-गुलाल की जगह प्राकृतिक रंग सखुआ फूल का व्यवहार करते हैं. बुधवार को बर्मामाइंस में दिशोम बाहा उत्सव मनाया गया. इसमें बाहा गीत-संगीत के बीच लोगों में आस्था और परंपरा के प्रति अटूट लगाव देखने को मिला. नायके बाबा (पुजारी) ग्रामीणों के बीच देवी-देवताओं के आशीष के रूप में उसे वितरित कर रहे थे. जाहेरथान में पारंपरिक वेश-भूषा मेंे लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. जाहेरथान की रौनक बढ़ गयी थी. रौनक बढ़ना लाजिमी था, क्योंकि बाहा ही एकमात्र पर्व है, जिसमें महिलाएं जाहेरथान में प्रवेश करती हैं. यहां आने वाले हर महिला-पुरुष ने मरांगबुरू-जाहेरआयो के चरणों में माथा टेका. पूजा-अर्चना बाद समाज के लोगों ने बाहा नृत्य करते हुए नायके बाद को उनके आवास तक पहुंचाया. बाहा नृत्य के लिए परसुडीह क्षेत्र के बागान टोला के नृत्य मंडली को आमंत्रित किया गया था. शाम में चिरुगोड़ा के छापोल-छापोल ग्रुप ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया. इस उत्सव में दिगंबर हांसदा, कुशल हांसदा, सावना मुर्मू,शंकर सोरेन, बाघराय हांसदा, भूषण मुर्मू, सलखू टुडू, रोहित मुर्मू, सुनाराम मुर्मू व सूरज किस्कू आदि मौजूद थे.
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बर्मामाइंस में बाहा गीत-संगीत पर थिरके लोग
फोटो दूबेजीलाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुरबाहा हो या होली, दोनों में ही खुशियों का रंग है. होली की तरह ही आदिवासी समाज के बाहा पर्व में अबीर-गुलाल की जगह प्राकृतिक रंग सखुआ फूल का व्यवहार करते हैं. बुधवार को बर्मामाइंस में दिशोम बाहा उत्सव मनाया गया. इसमें बाहा गीत-संगीत के बीच लोगों में आस्था और परंपरा […]
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