(फोटो शिवानंद के नाम से सेव है)- क्रिया योग के इंटरनेशनल रिट्रीय का चौथा दिनजमशेदपुर. क्रिया योग के इंटरनेशनल रिट्रीट को संबोधित करते हुए क्रिया योगी शिवेंदु लाहिड़ी ने रविवार को कहा कि चित्तवृत्तियों के धरातल पर निर्मित संबंधों का निर्वाह निरपेक्ष भाव से करना चाहिए. चौथे दिन के सत्संग में ‘शांडिल्य भक्ति सूत्र’ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भक्ति का अर्थ है ‘विभक्ति अर्थात् विभाजन का अभाव.’ अत: भक्त वह है, जो विभक्त नहीं है. समस्त प्रकार के विभाजन एवं भेदभाव विभेदकारी चित्तवृत्ति मैं की उत्पत्ति है. भक्त मैं से मुक्त होने के कारण सब प्रकार के विभाजनों से मुक्त निर्मन की सहजावस्था में होता है. कर्म योग का अर्थ है वह कर्म जिसमें मैं नबीं बै. उन्होंने कहा कि योग की भांति भक्ति भी मोक्ष प्रदायी है, क्योंकि दोनों में ही किसी प्रकार की चाह नहीं होती. इच्छा ही बंधन है और इच्छा का अभाव ही तो मुक्ति है. इच्छा का अर्थ है चित्तवृत्ति. ऋषि शांडिल्य निर्मन और विराट चैतन्य को भक्ति की करुणा बताते हैं और यही सही है. मैं का स्वभाव हिंसा है और मैं से रहित होने के कारण भक्ति प्रेम पूर्ण चित्त की अवस्था है. अहिंसा का अर्थ ही है प्रेम, क्योंकि केवल प्रेम ही धरती पर अहिंसक हो सकता है और इसीलिए अहिंसा परम धर्म है. क्रिया योग जीवन में भक्ति अर्थात् प्रेम को उपलब्ध होने के योग्य बनाता है.
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भक्ति का अर्थ है विभाजन का अभाव : शिवानंद जी
(फोटो शिवानंद के नाम से सेव है)- क्रिया योग के इंटरनेशनल रिट्रीय का चौथा दिनजमशेदपुर. क्रिया योग के इंटरनेशनल रिट्रीट को संबोधित करते हुए क्रिया योगी शिवेंदु लाहिड़ी ने रविवार को कहा कि चित्तवृत्तियों के धरातल पर निर्मित संबंधों का निर्वाह निरपेक्ष भाव से करना चाहिए. चौथे दिन के सत्संग में ‘शांडिल्य भक्ति सूत्र’ की […]
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