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साहित्यकारों की दिवाली

…पापा पहुंचे तब मैंने पटाखे चलाये (फोटो कमल नाम से सेव है)मां ने सभी भाइयों में पटाखे बांट दिये थे, लेकिन रोज शाम 4-5 बजे तक घर आ जाने वाले पापा जी रात के 8 बजे तक नहीं आये थे. हाथीदाढ़ी खदान (जहां वे इंचार्ज थे) से आ कर एक मलकट्टा सूचना दे गया था […]

…पापा पहुंचे तब मैंने पटाखे चलाये (फोटो कमल नाम से सेव है)मां ने सभी भाइयों में पटाखे बांट दिये थे, लेकिन रोज शाम 4-5 बजे तक घर आ जाने वाले पापा जी रात के 8 बजे तक नहीं आये थे. हाथीदाढ़ी खदान (जहां वे इंचार्ज थे) से आ कर एक मलकट्टा सूचना दे गया था कि ‘मेजर ब्रेक डाउन’ होने के कारण उन्हें घर आने में देर होगी. मैं गुमसुम था, हर दिवाली में मेरे पटाखे तो पापा जी के हाथों ही शुरू होते थे. रात 10 बजे के करीब पापा जी आये, मैं जा कर उनसे लिपट गया. तब जा कर मेरी दिवाली शुरू हुई. इस बार पहली बार बड़ा बेटा ‘अमन’ अपने इंजीनियरिंग कॉलेज में होने के कारण साथ नहीं होगा.कमल (वरीय कथाकार)———————-उस दिवाली ने मुझे बड़ा भाई दिया (फोटो डॉ रागिनी भूषण के नाम से सेव है)मेरे पिता के आदर्श शिष्य वकील भाई साहब न जाने कब हमारे परिवार से जुड़ गये और मेरी मां उनकी गुरुमाता हो गयीं पता ही नहीं चला. उस समय मैं नौंवी में थी. दीपावली के दिन अचानक भाई साहब ने जलती रंगीन फुलझड़ी मेरे हाथ में दे दी, क्योंकि मुझे वही पसंद है. भाई साहब की गतिविधियों को देख मैं हैरान थी, सो मैं पूछ बैठी, क्या आपके यहां भी दिवाली होती है, तब वे फटाक से बोले, अरी बहना, दिवाली तो हर हिंदुस्तानी के घर में होती है. बस तब से उनकी ईद हमसे पूरी होती और हमारी दिवाली उनके बगैर अधूरी रहती. डॉ रागिनी भूषण (संस्कृत विभागाध्यक्ष, कोल्हान विवि)

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