जमशेदपुर : रिटायरमेंट के बाद भी पीएन सिंह को टाटा वर्कर्स यूनियन में अध्यक्ष पद पर बनाये रखने के लिए सत्ता पक्ष की ओर से किये जा रहे तमाम प्रयासों के बीच महामंत्री बीके डिंडा की भूमिका अहम हो गयी है. कमेटी मेंबरों द्वारा आवेदन देने के बाद अब महामंत्री को फैसला लेना है कि रिक्वीजिशन मीटिंग बुलानी है या नहीं. चूंकि पीएन सिंह को अध्यक्ष बनाये रखने के लिए यह मीटिंग बुलायी गयी है.
अत: अगर यूनियन मीटिंग नहीं बुलाती है तो यह तय हो जायेगा कि कहीं न कहीं यूनियन का विरोध है और फिर मीटिंग में लिये गये फैसले या प्रस्ताव पर महामंत्री को ही फैसला लेना होगा. यह उन पर निर्भर करेगा कि वे प्रस्ताव को मानते हैं या नहीं. अगर यूनियन की रजामंदी से मीटिंग नहीं होती है तो मैनेजमेंट भी प्रस्ताव को मानेगा या नहीं, यह भी सवालों के घेरे में होगा.
* महामंत्री के पास सीमित विकल्प
महामंत्री बीके डिंडा चाहे तो मीटिंग बुला सकते हैं और को-ऑप्शन करा सकते है, लेकिन उनके पास सीमित विकल्प हैं. पीएल शाह के पदाधिकारी बनाये रखने का वे खुद विरोध कर चुके हैं. एसएन सिंह को महामंत्री बनाये जाने में वे खुद शिकायतकर्ता रहे हैं और जब यूनियन की मान्यता रद्द हुई थी
* 30 के बाद मीटिंग बुला सकते हैं आवेदनकर्ता
रिक्वीजिशन मीटिंग के लिए दिये गये आवेदन के एक सप्ताह के भीतर यूनियन को फैसला लेना है कि वे लोग मीटिंग बुलायेंगे या नहीं. अगर यूनियन मीटिंग नहीं बुलाती है तो आवेदन देने वाले मीटिंग बुलायेंगे. 29 सितंबर की शाम तक यूनियन महामंत्री को फैसला लेना है. इसके बाद 30 सितंबर का समय बच जायेगा कि आवेदनकर्ता मीटिंग बुलाये. 30 सितंबर को यूनियन अध्यक्ष पीएन सिंह का अंतिम दिन टाटा स्टील के कर्मचारी के तौर पर है. एक अक्तूबर से वे यूनियन के सदस्य नहीं रह जायेंगे. उससे पहले ही इस पर फैसला लेना होगा.
* विपक्ष के दोनों हाथों में लड्डू, सत्ता पक्ष सांसत में
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विपक्ष के दोनों हाथों में लड्डू है और सत्ता पक्ष सांसत में है. अगर किसी तरह पीएन सिंह को अध्यक्ष पद पर बनाये रखा जाता है तो विपक्ष कोर्ट चला जायेगा और वहां से चुनाव का आदेश आना तय है. क्योंकि कोर्ट में ग्रेड रिवीजन की दलील भी समाप्त हो गयी है, कार्यकाल भी समाप्त हो चुका है और चुनाव का समय भी आ चुका है.
* महामंत्री की भूमिका अहम
– महामंत्री ही यूनियन के संविधान के रक्षक और कस्टोडियन होते हैं. ऑफिस बियरर की मीटिंग कब बुलानी है और रिक्वीजिशन मीटिंग बुलानी है या नहीं, यह फैसला उन्हें ही लेना हैत्र अगर रिक्वीजिशन मीटिंग में कोई फैसला लिया जाता है तो उसे मानना या लागू करना भी महामंत्री के हाथों में ही होगा
– डीसी और एसपी की देखरेख में चुनाव कराये जाने को लेकर हाइकोर्ट में पहले से धर्मेंद्र उपाध्याय का केस 1069/2014 लंबित है, अगर महामंत्री कोर्ट में लिखकर दे देते हैं कि वे चुनाव कराने को तैयार हैं, तो हर हाल में चुनाव कराना पड़ेगा
– संविधान के तहत 31 मार्च 2014 को कार्यकाल समाप्त हो जाता है, पर सत्ता पक्ष का मानना है कि दो साल का कार्यकाल 18 जुलाई 2014 को समाप्त होता है. यूनियन संविधान के मुताबिक दो साल में चुनाव कराना है. चुनाव कराने की जिम्मेवारी भी महामंत्री के हाथों में ही होती है. ऐसे में महामंत्री को फैसला लेना है कि वे चुनाव करायेंगे या रिटायरमेंट के बाद अध्यक्ष के तौर पर पीएन सिंह को सत्तासीन रखना है
– 18 जुलाई 2014 को हर हाल में दो साल का कार्यकाल समाप्त हो चुका है. श्रमायुक्त सह ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार और झारखंड हाइकोर्ट में सत्ता पक्ष ने लिखकर दिया है कि ग्रेड रिवीजन नहीं हुआ है, जिस कारण कमेटी मेंबरों ने चुनाव को टाला है. अब ग्रेड रिवीजन हुए एक माह बीत चुका है.