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खुद को साबित करने में लगे नेत्रहीन
वाद्य यंत्र व संगीत से नि:शक्तता को मात दे रहे ब्लाइंड बच्चे सिलम स्थित ब्लाइंड स्कूल में नि:शक्त बच्चे गढ़ रहे भविष्य. दुर्जय पासवान गुमला : उग्रवाद में गुमला जिला ए श्रेणी में है. इसकी पहचान अंधविश्वास, अशिक्षा व पिछड़ापन भी है. बावजूद गुमला के नि:शक्त बच्चे बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर हैं. जिनकी आंखों […]
वाद्य यंत्र व संगीत से नि:शक्तता को मात दे रहे ब्लाइंड बच्चे
सिलम स्थित ब्लाइंड स्कूल में नि:शक्त बच्चे गढ़ रहे भविष्य.
दुर्जय पासवान
गुमला : उग्रवाद में गुमला जिला ए श्रेणी में है. इसकी पहचान अंधविश्वास, अशिक्षा व पिछड़ापन भी है. बावजूद गुमला के नि:शक्त बच्चे बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर हैं. जिनकी आंखों की रोशनी बचपन से नहीं है. या फिर चार-पांच साल की उम्र में आंख की रोशनी चली गयी. ऐसे बच्चे वाद्य यंत्र व संगीत के जरिये अच्छे मुकाम को प्राप्त करने की कोशिश में हैं.
शहर से सटे सिलम घाटी में ब्लाइंड स्कूल संचालित है. समाज कल्याण विभाग के सहयोग से मुक्ति संस्थान द्वारा स्कूल चलाया जा रहा है. यहां अभी 24 ब्लाइंड बच्चे हैं. जो ब्रेल लिपी की पढ़ाई के साथ वाद्य यंत्र व संगीता की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.
छह साल की उम्र में आंख की रोशनी चली गयी : लगनू खेरवार, उम्र 15 साल है. घर गुमला प्रखंड के घटगांव है. घोर उग्रवाद प्रभावित गांव है. लगनू जब छह साल का था, तब उसके आंख की रोशनी जंगली जड़ी बूटी के इलाज से होने के कारण चली गयी. अब वह दोनों आंख से देख नहीं सकता. लेकिन उसका हुनर उसकी नि:शक्तता को मात दे रहा है.
बिना देखे हारमोनियम में उसकी अंगुली इस प्रकार चलती है, मानो वह दोनों आंख से देख कर बजा रहा है. लगनू कहता है, आंख की रोशनी नहीं है तो क्या हुआ. वह अपने मन की आंख व हाथों के हुनर से जरूर एक दिन अच्छे मुकाम को हासिल करेगा.
बचपन से नेत्रहीन है, पर प्रतिभा का धनी है : ब्लाइंड स्कूल में कुंदन कुमार पढ़ता है. उम्र 11 साल है. पिता का नाम राजेश कुमार, घर करौंदी गांव है. कुंदन प्रतिभा का धनी है.
दोनों आंख से वह देख नहीं सकता. लेकिन वह तबला वादन में माहिर है. उसके दोनों हाथ तबला में बड़ी खूबसूरती से चलते हैं. हर गीत पर वह तबला बजा लेता है. कुंदन चाहता है कि वह तबला वादन में अपनी एक अलग पहचान बनाये. उसने कहा कि बचपन से ही वह नेत्रहीन है. शुरू में थोड़ी परेशानी हुई. लेकिन जब से स्कूल में पढ़ रहे हैं. अब नेत्रहीन होने का मलाल नहीं है.
हर गीत गा लेती है, सुर में मधुर है :भरनो प्रखंड के सरगांव पतराटोली गांव की बिरसमुनी कुमारी व पालकोट प्रखंड के बंगरू रक्तपानी गांव की सुनीता खाखा दोनों नेत्रहीन हैं. लेकिन इनके सुर बहुत ही सुंदर है. इनकी संगीत सुनने के बाद सुनते रहने का मन करता है. दोनों छात्राएं बचपन से नेत्रहीन हैं.
बिरसमुनी का कहना है कि बचपन से गाने का शौक था. जब ब्लाइंड स्कूल में आयी तो यहां के शिक्षकों ने गाने के लिए प्रेरित किया. जिसका परिणाम आज वह हर स्टेज पर गा लेती है.
नेत्रहीन बच्चों की प्रतिभा से डीसी दिनेशचंद्र मिश्र के अलावा कई बड़े अधिकारी प्रभावित हैं. खुद डीसी इन बच्चों से जाकर मिले हैं. आधा एक घंटा तक वे बच्चों की गीत सुने हैं. खास कर कुंदन के तबला वादन से वे काफी प्रभावित हैं.
शिक्षक के नजरिये से देखें तो इन बच्चों में जो प्रतिभा है, वह दोनों आंख से देखनेवाले लोगों में भी नहीं है. एक बार सिखाने के बाद ये बच्चे ताल व धुन पकड़ लेते हैं. मुझे सिखाने में कहीं दिक्कत नहीं होती है.
सत्यनारायण प्रसाद, शिक्षक, वाद्य यंत्र
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