दुजर्य पासवान
गुमला : 1994 में भाकपा माओवादी (एमसीसीआई) सबसे पहले बिशुनपुर प्रखंड के बड़कादोहर गांव में घुसे थे. इसके बाद से माओवादी का विस्तार होता गया और गुमला जिला माओवादियों का गढ़ बन गया. गुमला के बगल में लातेहार, लोहरदगा, सिमडेगा जिला व छत्तीसगढ़ राज्य के जशपुर जिला है. इस कारण यह माओवादियों का सेफ जोन बन गया. सारंडा आने जाने के लिए यह सड़क उपयुक्त है. गुमला जिले में अगर नक्सली घटना देंखे, तो पुलिस पर नक्सली भारी पड़ते रहे हैं.
कई बड़ी घटना को नक्सली अंजाम दे चुके हैं. 30 से अधिक पुलिसकर्मी व जवानों को मार चुके हैं. लेकिन इधर छह महीने में पुलिस ने जिस रणनीति से भाकपा माओवादियों के खिलाफ अभियान चलाया है. नक्सलियों को भारी नुकसान हुआ है और उन्हें बैकफुट में जाना पड़ा है. हालांकि माओवादियों को नुकसान पहुंचाने में पुलिस के सहयोगी जेजेएमपी का नाम आता रहा है.
माओवादी भी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर पुलिस का सहयोगी जेजेएमपी को बताते रहा है. लेकिन गुमला जिले में अभी भाकपा माओवादियों की जो स्थिति है. माओवादी यहां कई क्षेत्रों में कमजोर हुए हैं. मार्च माह से लगातार माओवादियों के इलाके में पुलिस अभियान चला रही है. यहां तक कि पुलिस की मुठभेड़ माओवादी सेंट्रल कमेटी के शीर्ष नेता अरविंद जी के दस्ते के साथ भी मुठभेड़ हो चुका है. छह बार बड़ी मुठभेड़ हुआ है. इसमें पुलिस ने एक माओवादी दीपक को मार गिराने में अबतक सफलता प्राप्त की है. वहीं पुलिस ने भारी मात्र में नक्सलियों के सामान बरामद किया है.
हार्डकोर नक्सली सुशील को भी पुलिस ने पकड़ी है, जो इस वर्ष की सबसे बड़ी सफलता है. अभी पालकोट में तिलकमैन साहू उर्फ दीपक के दस्ते के साथ पुलिस की मुठभेड़ हुई थी. इसमें अगर थोड़ा बहादुरी पुलिस दिखाती, तो यहां बड़ी सफलता मिलती. 10 से 12 नक्सली जरूर पुलिस के हाथ आते. हालांकि पुलिस की लगातार दबिश के कारण माओवादी आगे की रणनीति नहीं बना पा रहे हैं. कुछ क्षेत्रों में संगठन भी कमजोर हुआ है. वहीं पलामू घटना के बाद गुमला पुलिस भी माओवादियों को घेरने में लगी हुई है. एसपी भीमसेन टुटी खुद लगातार अभियान चला रहे हैं. एएसपी पवन सिंह पहले से सीआरपीएफ जवानों के साथ अभियान में लगे हुए हैं.