अतीत के झरोखे से बंगाली कोठियां 12
इंदिरा गांधी की परिचित मां आनंदमयी का आना-जाना था श्रीनिवास कोठी
बागोडीह मोड़ के पास वर्ष 1963 में जमीन खरीद बनाया था बंगला
सरिया.
बंगालियों के शहर या मिनी कोलकाता के नाम से विख्यात गिरिडीह जिले के सरिया में कोलकाता के प्रतिष्ठित जमींदार तथा शिप के बड़े ट्रांसपोर्टर रहे जगन्नाथ राय का भव्य बंगला ‘श्रीनिवास कोठी’ था. यहां वह जनवरी-फरवरी में सपरिवार छुट्टियां बिताने आते थे. लोग बताते हैं कि स्वामी शिवानंद, उड़िया बाबा अखंडानंद की सत्संगी तथा इंदिरा गांधी के संपर्क में रहीं आनंदमयी मां का भी यहां आना-जाना था. बताया जाता है कि 1940-50 के दशक में सरिया में कोलकाता के बंगाली परिवार के लोग बसने लगे थे. बंगाल के तत्कालीन जमींदार जगन्नाथ राय अपने मित्रों के साथ सरिया आया करते थे. इसी बीच सरिया के जमींदार परिवार के सदस्य जगन्नाथ राय का बंगाल के जमींदार जगन्नाथ राय (दोनों का एक ही नाम) से मुलाकात हुई. संबंध की प्रगाढ़ता के साथ ही सरिया स्थित बागोडीह मोड़ (वर्तमान में नेताजी चौक) के पास सरिया के जमींदार परिवार से बंगाल के इस जमींदार परिवार के व शिप ट्रांसपोर्टर जगन्नाथ राय ने वर्ष 1963 में छह एकड़ 13 डिसमिल जमीन खरीदी. चारदीवारी के बीच भव्य बंगला ‘श्रीनिवास कोठी’ बनवाया.कोठी में एक बड़ा सा उद्यान
राय परिवार ने अपने भव्य बंगले के परिसर में विभिन्न प्रजाति के आम, नींबू, चीकू, इमली, बेल, कटहल, बेर, जामुन, चंदन, नीम महुआ, झावां, गुलर, काजू, अशोक, तेजपत्ता, अमरुद, गुलाब जामुन, अनन्नास, गुलमोहर, देवदार, यूकेलिप्टस, साल आदि के फलदार, छायादार व इमारती लकड़ी के सैकड़ों पौधे लगाये. बंगले की सुंदरता में चार चांद लगाने के लिए गुलाब, गेंदा, जूही, चंपा, चमेली, गुड़हल, अपराजिता, पारिजात, जीनिया, सर्पगंधा, रातरानी, सदाबहार जैसे विभिन्न प्रकार के फूलों से बगीचे सजे रहते थे. इस तरह यह बंगला एक बागान व उद्यान जैसा हो गया.बड़का कोठी के नाम से भी जानते थे लोग
बताया जाता है कि आध्यात्मिक प्रवृत्ति के कारण बंगले के मालिक जगन्नाथ राय ने अपने बंगले का नाम श्रीनिवास कोठी रखा. स्थानीय लोग उसे बड़का कोठी के नाम से भी जानते थे. बंगले की देखरेख तथा रख रखाव के लिए तुषार बनर्जी नामक केयरटेकर थे. 1969 में श्रीमती इंदिरा गांधी के संपर्क में रही आनंदमयी मां संयोगवश सरिया की इस कोठी में गयीं. इससे प्रेरित होकर बंगले के मालिक ने इस परिसर में एक यज्ञशाला व अतिथि भवन भी बनवा दिया. यहां उन्होंने भव्य यज्ञ का भी आयोजन किया था. बताया जाता है कि उनके बंगले में आनेवाले अतिथि, साधु-महात्मा यज्ञशाला स्थित कुटिया में रहते थे. पूजा-पाठ व हवन का कार्य उसी जगह साल भर चलते रहता था.2018 में बिक गयी कोठी, पर यादें बची हैं
जानकार बताते हैं कि जगन्नाथ राय के दो पुत्रों में बड़ा पुत्र नील माधव राय कोलकाता में सिनेमा हॉल संचालक तथा बिल्डर व छोटा पुत्र बेनी माधव राय का वाराणसी, मथुरा, द्वारिका, राजस्थान, पुरी आदि जगहों में 30 धर्मशालाएं स्थापित हैं. इनकी दर्जनों यात्री बसें चलती थीं. बदलती परिस्थिति के साथ समयाभाव के कारण 2018 में बंगले को बेच दिया गया. खरीदार सत्यदेव प्रसाद ने बताया कि कोठी खरीदने के बाद आज वहां घनी आबादी वाला क्षेत्र हो गया है. उसी जगह पर सरिया का सबसे बड़ा निजी अस्पताल, बड़ी-बड़ी दुकानें, मकान सहित राजशाही रिसॉर्ट है. श्रीनिवास कोठी की जमीन तो बिक चुकी, पर जगन्नाथ राय के बंगला के खरीदार ने आज भी उसे सहेज कर रखा है.(लक्ष्मीनारायण पांडेय)B
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है