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बुढ़ापा में भी लकड़ी काटने की विवशता

धुरकी(गढ़वा). सरकार आदिम जनजातियों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही हैं. लेकिन आदिम जनजाति के जीविकोपार्जन में कितना बदलाव आ पाया है, इसका अंदाजा प्रखंड के मिरचइया गांव की आदिम जनजाति की बुधिया कुंवर की स्थिति को देख कर लगाया जा सकता है. बुधिया 80 वर्ष की उम्र में भी अपनी आजीविका के लिए […]

धुरकी(गढ़वा). सरकार आदिम जनजातियों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही हैं. लेकिन आदिम जनजाति के जीविकोपार्जन में कितना बदलाव आ पाया है, इसका अंदाजा प्रखंड के मिरचइया गांव की आदिम जनजाति की बुधिया कुंवर की स्थिति को देख कर लगाया जा सकता है.

बुधिया 80 वर्ष की उम्र में भी अपनी आजीविका के लिए मिरचइया के जंगल लकड़ी निकालने के लिए विवश है. बुधिया को न तो वृद्धावस्था पेंशन मिल रहा है और न ही ठंड से बचने के लिए कोई कंबल मिला. पहले बुधिया वनतुलसी काट कर अपना जीविकोपार्जन की, अब वनतुलसी खत्म होने पर वह लकड़ी काट कर बेच रही है.

बुधिया ने बताया कि पांच साल पहले ही उसका पति मर गया है. उसके तीन लड़के हैं. लेकिन तीनों जो कमाने के नाम से बाहर गये हैं, काफी दिनों से उनका अता-पता नहीं है, जिसके कारण बुढि़या अपने पेट भरने के लिए उम्र की ढलान पर भी शारीरिक श्रम करने के लिए विवश हैं.

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