धुरकी (गढ़वा) : घर में भुखमरी की स्थिति देख बेटा कमाने के लिए गुजरात गया, लेकिन तीन साल बाद भी उसका कोई पता नहीं चला. शादी के साल से ही उसके लापता हो जाने के कारण बहू के पिता की तरफ से शादी तोड़ने एवं आर्थिक दंड देने का दबाव आ गया. इससे बीमारी से लाचार मां-बाप के ऊपर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है.
एक तो बेटे के गायब होने का दुख व दूसरा पंचायत द्वारा लगाये गये आर्थिक दंड की राशि की व्यवस्था करना उनके लिए पहाड़ साबित हो रहा है. जबकि घर में फांकाकशी की स्थिति है. यह हकीकत है धुरकी प्रखंड के खाला गांव निवासी आदिम जनजाति परिवार से आनेवाले सिंघा कोरवा की. मजदूरी करके जीवन बसर करनेवाला सिंघा कोरवा अपनी समस्या को लेकर किसके पास जाये, यह उसे समझ में नहीं आ रहा है. परिवार में उसकी बीमार पत्नी बंधिया देवी के अलावे दो छोटे पुत्र एवं एक पुत्री है. इन सबों की परवरिश का दायित्व भूमिहीन सिंघा के ऊपर ही है. शरीर स्वस्थ रहने पर वह मजदूरी करके सबको पालता है.
माली हालत ठीक नहीं रहने के कारण ही उसका 22 साल का बड़ा बेटा बुधन कोरवा कमाने के लिए घर से निकला था. सिंघा कोरवा कहता है कि रक्शी के बाबूलाल कोरवा का बेटा सुनील कोरवा उसे अपने साथ काम दिलाने को कह कर अहमदाबाद लेकर गया था. तब से आजतक उसका पता नहीं चला. न कोई खबर आयी और न ही पैसा. पूछने पर सुनील कहता है कि वह उसे जहां छोड़ कर आया था, वहां से गायब है. बुधन की शादी उसी साल धुरकी में बनवारी कोरवा की बेटी संतरी के साथ हुई थी. लेकिन तीन साल तक बुधन का पता नहीं चला, तो बनवारी कोरवा बेटी की छुटा-छुटी (एक रस्म) करने और शादी का खर्चा वापस दिलाने के लिए आया. इसे लेकर गांव में कोरवा समाज की पंचायत बैठी.
इसमें संतरी ने भी यही कहा कि जब बुधन है ही नहीं, तो वह यहां किसके साथ रहेगी. इसके बाद पंचायत ने सिंघा कोरवा पर 6051 रुपये का आर्थिक दंड लगाया. पंचायत में किसी भी सदस्य ने सिंघा कोरवा की हालत पर विचार नहीं किया. इसके बाद से सिंघा कोरवा बेटा व आर्थिक दंड भरने को लेकर परेशान है. गौरतलब है कि आदिम जनजाति परिवार के उत्थान के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं चलायी जाती है, लेकिन सिंघा कोरवा को आज तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिल पायी है. वह बेघर है.