चाकुलिया हवाई अड्डा के भविष्य पर फैसला आज
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उम्मीद. सीएम के आदेश पर उच्चस्तरीय टीम करेगी निरीक्षण
चाकुलिया हवाई अड्डा के भविष्य पर फैसला आज चाकुलिया : पूर्वी सिंहभूम में नये एयरपोर्ट की मांग पर मंगलवार को अहम निर्णय आ सकता है. इसके भविष्य पर आज फैसला आ सकता है. चाकुलिया एयरपोर्ट को अपग्रेड कर एयरपोर्ट बनाने की दिशा में केंद्रीय व राज्य सरकार भी गंभीर है. एेसे में मंगलवार को निरीक्षण […]
चाकुलिया : पूर्वी सिंहभूम में नये एयरपोर्ट की मांग पर मंगलवार को अहम निर्णय आ सकता है. इसके भविष्य पर आज फैसला आ सकता है. चाकुलिया एयरपोर्ट को अपग्रेड कर एयरपोर्ट बनाने की दिशा में केंद्रीय व राज्य सरकार भी गंभीर है. एेसे में मंगलवार को निरीक्षण करने आने वाली टीम से हरी झंडी मिलने के बाद इसे अपग्रेड कर आधुनिक एयरपोर्ट का रास्ता साफ हो जायेगा.
चाकुलिया में द्वितीय विश्व युद्ध काल में तीन करोेड़ की लागत से निर्मित सामरिक हवाई अड्डा के दिन बहुरने के आसार बढ़ गये हैं. मुख्यमंत्री के आदेश पर 12 अप्रैल को एक उच्च स्तरीय टीम हवाई अड्डा का निरीक्षण कर इसके खुलने की संभावना तलाशेगी. टीम में अपर मुख्य सचिव सह राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष आरके श्रीवास्तव,
परिवहन एवं नगर विमानन विभाग के प्रधान सचिव केके खंडेलवाल और रांची स्थित बिरसा मुंडा एयरपोर्ट के निदेशक अनिल विक्रम शामिल हैं. यह टीम इस बात की जांच करेगी कि यह एयरपोर्ट संचालन की स्थिति में है कि नहीं. टीम की रिर्पोट तय करेगी कि यह एयरपोर्ट चालू होगा अथवा नहीं.
कई मौजा में फैला है हवाई अड्डा
चाकुलिया स्टेशन से करीब एक किमी दक्षिण लगभग 562 एकड़ भूमि पर यह हवाई अड्डा दीघी, मौरबेड़ा, सुगनीबासा, पुरनापानी मौजा में फैला है. जंगलों से भरे इन मौजों में टैंक के प्रवेश के लिए सड़कें भी बनी हैं. दीघी के पास फायरिंग रेंज और टैंक धोने के लिए निर्मित सीमेंट के स्टेज आज भी देखे जा सकते हैं. इसके विशाल रनवे पर 10 मिग जहाज के उतरने और उड़ने की क्षमता थी. कहा जाता है कि 1945 में हिरोशिमा पर बम बरसाने वाले विमान ने इसी हवाई अड्डा से अंतिम उड़ान भरी थी.
दीघी के पास अफसरों के लिए और सुनमुनिया के पास अफसरों की पत्नियों के लिए क्लब भवन था. इसके अवशेष आज भी हैं. इसलिए सुनसुनिया को मेम क्लब कहा जाता है. हवाई अड्डा के पास एक भवन सुरक्षित है. इसे सिगनल भवन कहा जाता है. कई जगह जलापूर्ति के लिए बने जल मीनार के अवशेष भी हैं.
महफूज है मुख्य रनवे
इस हवाई अड्डे का कई किमी में फैला मुख्य रनवे सुरक्षित है. इसकी मरम्मत हो सकती है. रनवे पर जहाज बांधने के लिए कई हैंगर आज भी देखे जा सकते हैं. शाखा रनवे भी महफूज है. हवाई अड्डा क्षेत्र में कई कुएं और डीप बोरिंग भी हैं. इनकी मरम्मत कर कार्य लायक बनाया जा सकता है. ब्लॉक ऑफिस के पास तब का बना बेतार संदेश भवन के अवशेष भी हैं.
1982 तक सुरक्षित था
1982 तक यह हवाई अड्डा सुरक्षित था. कंटीले तार की घेराबंदी थी. निर्मित सभी आवास सुरक्षित थे. तब नागरिक उड्डयन विभाग इसकी निगरानी होती थी. देखरेख के लिए गार्ड बहाल थे. इसके बाद धीरे-धीरे यह हवाई अड्डा उजड़ता गया. भवनें तोड़ दी गयीं. अज्ञात लोगों ने रनवे को तोड़ने का काम भी शुरू कर दिया.
1965 और 1971 में हुआ था उपयोग
कहा जाता है कि इस हवाई अड्डा का उपयोग 1965 के पाकिस्तान युद्ध में हुआ था. इसके बाद 1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान भी भी इस हवाई अड्डा पर बांग्लादेशियों को युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया था. इसके बाद से इसका उपयोग नहीं हुआ.
सांसद और विधायक ने की पहल: सांसद विद्युत वरण महतो और विधायक कुणाल षाड़ंगी ने इस हवाई अड्डा को चालू करने की पहल की. सांसद ने इस मामले को कई बार उठाया.
वहीं विधायक कुणाल षाड़ंगी ने गैर सरकारी प्रश्न के तहत विधान सभा में इसे चालू करने की मांग रखी. इस मसले पर विधायक दिल्ली में एयरपोर्ट ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के चेयरमैन आरके श्रीवास्तव से मिले थे. सांसद विद्युत वरण महतो ने कहा कि 40 करोड़ खर्च कर इस हवाई अड्डा को चालू किया जा सकता है.
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