आभाव . चुआपानी के लिए जल ही जीवन का नारा बेकार साबित हो रहा
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डोभा का गंदा पानी पीने को िववश ग्रामीण
आभाव . चुआपानी के लिए जल ही जीवन का नारा बेकार साबित हो रहा सरकार गांवों के विकास का दंभ तो भरती है लेकिन धरातल पर विकास नहीं झलकता है. लोग फटेहाली में तो जी ही रहे हैं बुनियादी सुविधाओं से भी लोग पूरी तरह महरूम हैं. बृंदावनी के चुआपानी गांव में लोग गंदा पानी […]
सरकार गांवों के विकास का दंभ तो भरती है लेकिन धरातल पर विकास नहीं झलकता है. लोग फटेहाली में तो जी ही रहे हैं बुनियादी सुविधाओं से भी लोग पूरी तरह महरूम हैं. बृंदावनी के चुआपानी गांव में लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैें.
रानीश्वर : बृंदावनी पंचायत के चुआपानी गांव के लोगों को शुद्ध पेयजल तक भी नसीब नहीं है़ यहां के ग्रामीण गांव के पास एक तालाब के नजदीक छोटा से डोभा खोद कर उससे निकलने वाले गंदा पानी पीने को मजबूर है़ जिस गड्ढे का पानी ग्रामीण पी रहे हैं उसी गड्ढे का पानी मवेशी व जंगली जानवर भी पी रहा है़ गरमी के मौसम में वह भी सुख जाता है़ तक ग्रामीण गांव से एक किलोमीटर दूर दूसरे तालाब के पास झरना खोद कर वहां से पीने के लिए पानी लाते हैं.
गांव में चापानल तो दूर एक कुंआ तक भी नहीं है़ चुआपानी गांव पहले तरणी पंचायत के अधीन था़ अब बृंदावनी पंचायत के अधीन है़ गांव में करीब तीन सौ की आवादी है़ सभी संताल जाति के हैं. केंद्र व राज्य सरकार स्वच्छता की बात कर रहे हैं. लेकिन इन ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल तक भी नसीब नहीं है़ इसकी चिंता किन्हीं को नहीं है़ पेयजल एवं स्वच्छता विभाग भी ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए पहल नहीं की है़ अशुद्ध पानी पीने से ग्रामीण अक्सर बीमार पड़ते हैं. गरमी के दिनों व बरसात के समय हर रोज ग्रामीण बीमार पड़ते हैं. ग्रामीणों को पेयजल नसीब नहीं होने से ग्रामीणों में काफी रोष है़ गांव में एक स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्र भी है़ स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों को भी गंदा पानी ही पीना पड़ता है़ बाहर से गांव जानेवाले लोग अपने साथ बोतल में पानी भर कर ले जाते हैं. जल ही जीवन है सरकार का यह नारा चुआपनी जैसे गांव के लिए बेकार है़ ग्रामीणों को पेयजल तक नसीब नहीं होने से ग्रामीण महिलाएं अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.
सरकार स्वच्छता के बारे में जोर-शोर से प्रचार कर रही है़ पर सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के पहाड़ के उपर स्थित चुआपानी गांव के ग्रामीणों को पेयजल की भी व्यवस्था नहीं है़ इसकी चिंता किन्हीं को नहीं है़ सरकार कागजी घोषणाएं दिन-प्रतिदिन कर रही है़ सरजमीन पर क्या स्थिति है इसकी सुधी नहीं लेती है़
शिला टुडु, ग्रामीण महिला.
हर रोज डोभा का गंदा पानी पीने से ग्रामीण अक्सर बीमार पड़ते हैं. इलाज के लिए घर का मुर्गी, बकरी बेच कर प्राइवेट डाक्टर से इलाज कराते हैं. जहां पीने के लिए पानी की व्यवस्था नहीं है़ वहां दूसरी कल्पना करना ही बेकार है़
मीरू मुर्मू, ग्रामीण महिला.
आजादी के सात दशक बाद भी हम ग्रामीणों को डोभा का गंदा पानी पीना पड़ रहा है़ आज तक गांव में न तो कुंआ बना और न ही चापानल लगा है़ इसके लिए दोषी कौन है यह नहीं जानता पर हम ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल भी नसीब नहीं है़
सोनापति मरांडी, ग्रामीण महिला.
मनरेगा के तहत हजारों की संख्या में कुंआ बन रहा है़ पर इस गांव में एक भी कुंआ नहीं बना है़ कुंआ बनाये जाने से सिंचाई के साथ-साथ पानी पीने को नसीब हो जाता़
सोनी हांसदा, ग्रामीण महिला.
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