ऋषि के पंचवर्षीय पुत्र सृंगी ने शाप दिया कि जिसने मेरे पिता के गले में सर्प डाला है, उसकी आज से सातवें दिन तक तक्षक सर्प के डंसने मृत्यु हो जायेगी. इसके बाद राजा परीक्षित अपने पुत्र जन्मेजय को राज्य का भार सौंप कर गंगा किनारे अन्न जल त्याग कर संकल्प लेकर बैठ गये. स्वामी जी ने कहा कि जो राजा संतों का सेवक हो और प्रजा को पुत्रवत भाव रखता हो, वैसे राजा के प्रति संतों की शुभकामना रहती है.
राजा परीक्षित के सातवें दिन मृत्यु होने की सूचना सुनकर श्री वेदव्यास, वशिष्ठ, पराशर आदि सारे संत उपस्थित हो गये. उसी समय व्यास पुत्र शुकदेव जी महाराज भी पहुंचे. उन्होंने राजा के कल्याणार्थ उन्हें श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा सुनायी, जिससे उन्हें मृत्यु भय पूर्णत: समाप्त हो गया और सातवें दिन तक्षक सर्प डंसने के राजा की मृत्यु हुई और उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ. कथा सुनने के लिए विधायक राज सिन्हा, अधिवक्ता सुरेश प्रसाद चौधरी, संतलाल यादव व हरि गोप आदि मौजूद थे.