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विद्वानों ने बताये रामायण के विभिन्न आयाम

धनबाद. फिजी में अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का आयोजन किया गया था. थीम था रामायण का सार्वभौमिक प्रभाव. कार्यक्रम का आयोजन फिजी सेवाश्रम संघ, शिक्षा संस्कृति व कला मंत्रालय, फिजी सरकार एवं भारतीय उच्चायोग, फिजी के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था. इसमें आठ देशों के विद्वानों एवं वक्ताओं ने भाग लिया, उन्होंने रामायण के विभिन्न […]

धनबाद. फिजी में अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का आयोजन किया गया था. थीम था रामायण का सार्वभौमिक प्रभाव. कार्यक्रम का आयोजन फिजी सेवाश्रम संघ, शिक्षा संस्कृति व कला मंत्रालय, फिजी सरकार एवं भारतीय उच्चायोग, फिजी के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था. इसमें आठ देशों के विद्वानों एवं वक्ताओं ने भाग लिया, उन्होंने रामायण के विभिन्न आयाम का उल्लेख किया.

कार्यक्रम का उद्घाटन उप प्रधानमंत्री अइयाज सयद खैयूम एवं अन्य ने दीप प्रज्वलित कर एवं भगवान की प्रतिमा पर पुष्प चढ़ा कर किया. कार्यक्रम में शामिल धनबाद से आइएसएम के मैनेजमेंट स्टडीज विभाग के डॉ प्रमोद पाठक ने बताया कि कार्यक्रम भारत सेवाश्रम संघ के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर था, जिसमें उन्हें फिजी के शिक्षा मंत्री डॉ महेंद्र रेड्डी ने आमंत्रित किया था.

अपने वक्तव्य में डॉ पाठक ने कहा कि हमारे यहां प्रबंधन की पढ़ाई होती है और उसमें पश्चिम को कोट किया जाता है, लेकिन हमारे रामायण में ही उससे ज्यादा अच्छे से वही बातें लिखी गयी है और हम उसका इस्तेमाल नहीं करते हैं. चाहे श्रीराम का नेतृत्व हो, कुशल प्रशासन हो या सामाजिक दायित्व ही हो. सभी बातों की बहुत सटीक चर्चा रामायण में है.

जिसे मैनेजमेंट के सिद्धांत में यहां प्रतिपादित किया जा सकता है. उत्तरकांड में श्रीराम भरत को बताते हैं कि सबसे बड़ा धर्म दूसरों का हित है, जिसमें सीएसआर (सामाजिक दायित्व) का सिद्धांत छुपा है. प्रबंधन की मनोभाव का प्रत्यक्षण पर प्रभाव है. ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी…,’ मतलब हम जिसे जिस रूप में देखना चाहते हैं देख सकते हैं.

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