– अशोक वर्मा –
धनबाद : जिला परिषद के गठन से लेकर तीन वर्षो में अब तक 20 बैठकें हुई और दो सौ से अधिक प्रस्ताव पारित हुए. लेकिन दस योजनाएं भी सरजमीन पर नहीं उतरी. 26 फरवरी, 2011 को गठन होने के बाद से अब तक 25 बैठकें होनी चाहिए थी.
लेकिन जहां बैठक बुलाने की गति धीमी है, वहीं सरजमीन पर योजनाओं की उतारने की गति और भी काफी धीमी है. इस दौरान केवल आपसी खींचतान एवं झगड़े में ही सब सदस्य उलङो रहे.
20 बैठकों के अलावा बाजार समिति के वोटर बनाये जाने के सवाल पर अध्यक्ष माया देवी के खिलाफ सदस्यों ने एक आवश्यक बैठक भी 18 जनवरी को बुलायी गयी लेकिन वह भी बेनतीजा रही. काम की गति धीमी होने का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता कि अभी तक वर्ष 2011-12 की बीआरजीएफ की राशि से होने वाला काम तक पूरा नहीं हुआ है. वर्ष 12-13 की राशि की बात ही और है.
इसी तरह 13 वें वित्त आयोग की साढ़े छह करोड़ की राशि यूं ही पड़ी हुई है. पहली बैठक में जिले की 256 पंचायतों में एक-एक चापानल लेने का निर्णय लिया गया था. इसमें बलियापुर, टुंडी और बाघमारा में चापानल आज की तिथि तक नहीं गाड़े गये. जबकि दो साल से अधिक बीत गये.
लाभुक समिति से 16- 16 लाख रुपये काम करने को दिया गया था, यह भी सभी जगहों का पूरा नहीं हुआ. इससे पुल-पुलिया और पीसीसी बनाना था.