धनबाद: चार आना में झरियागढ़ की दुर्गा पूजा घूम आते थे. दो आना में रसगुल्ला व सिंघाड़ा हो जाता था. मिट्ठू रोड (बैंक मोड़) निवासी गजानंद अग्रवाल 55-60 के दशक को याद करते हुए बीते जमाने में खो जाते हैं.
कहते हैं, उस समय घर से चार आना मिलता था तो उसी पैसे में टैक्सी व बस पकड़ कर झरिया घूमने जाते थे. धनबाद में पुराना बाजार स्थित दुर्गा स्थान, नगर निगम कैंपस, हीरापुर रेलवे कॉलोनी व कुछ और स्थानों पर दुर्गा पूजा होती थी. न तो उस समय इतनी भीड़-भाड़ होती थी और न ही इतनी गाड़ियां थी. सारे लोग बहुत आराम से पूजा घूमते थे और शांतिपूर्ण तरीके से पूजा होती थी.
नहीं दिखता मीना बाजार : उस समय मीना बाजार की रौनक हुआ करती थी. सर्कस देखना, प्रोजेक्टर में गाना देखना व मीना बाजार में बिकने वाली हस्त कला बहुत भाती थी. लेकिन अब न तो वह प्रोजेक्टर पर गाना सुनने को मिलता है और न ही उतने आराम से मेला घूम सकते हैं. अब तो सिर्फ माता के दर्शन करने के लिए ही पंडाल में जाते हैं. पहले आज की तरह अश्लील गाने नहीं बजते थे.