धनबाद: प्रदूषण के लिहाज से बेहद गंभीर हालात के कारण धनबाद जिले में किसी भी तरह के नये उद्योग लगाने को लेकर लगा प्रतिबंध हट गया है. केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रलय ने 17 सितंबर को इस आशय का कार्यालय आदेश जारी कर दिया है. इस फैसले से धनबाद में प्रस्तावित करीब तीन दर्जन छोटे-बड़े उद्योगों की स्थापना का रास्ता साफ हो गया है. प्रदूषण के खतरनाक स्तर के मद्देनजर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रलय ने 13 जनवरी, 2010 को जारी आदेश में धनबाद में 31 मार्च, 2012 तक किसी भी तरह का उद्योग लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
क्या है मामला : वर्ष 2009 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने वायु प्रदूषण के लिहाज से देश के 91 शहरों की स्थिति को गंभीर माना. इनमें धनबाद भी शामिल था. वर्ष 2010 में सीपीसीबी ने देश भर के 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर का अध्ययन कराया.
उस अध्ययन में धनबाद में प्रदूषण का स्तर 131 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर बताया गया. यह स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से तय मानक के पांच गुना से भी अधिक था. डब्ल्यूएचओ का मानक 25 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है. अध्ययन के बाद सीपीसीबी ने अपनी रिपोर्ट में धनबाद को देश के 43 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 13वें स्थान पर रखा. इसके बाद वर्ष 2011 में डब्ल्यूएचओ ने दुनिया के प्रदूषित शहरों की एक सूची जारी की, जिसमें भारत के 33 शहरों को भी शामिल किया गया. इनमें धनबाद को 11 वें स्थान पर रखा गया. देश के प्रदूषित शहरों की यह सूची डब्ल्यूएचओ ने जनवरी, 2003 से दिसंबर, 2010 तक के उन आंकड़ों के आधार पर तैयार की, जो सीपीसीबी ने उपलब्ध कराये. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रलय ने धनबाद में 31 मार्च, 2012 तक किसी भी तरह का उद्योग लगाने पर रोक लगा दी.
खता झरिया की, सजा पूरे जिले को : वायु प्रदूषण को लेकर धनबाद जिले में नये उद्योगों की स्थापना पर जो रोक लगायी गयी, उसके पीछे सबसे बड़ी वजह है झरिया का कोयला खनन उद्योग और झरिया की कोयला खदानों में लगी आग के कारण निकलनेवाली गैस. ओपन कास्ट प्रोजेक्टों में जैसे-तैसे कोयला खनन के कारण बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण होता है. इस मामले में खता झरिया की रही और सजा पूरे धनबाद जिले को मिली. अन्य राज्यों में जहां किसी जिले के प्रदूषित एक इलाके के कारण पूरे जिले को गंभीर रूप से प्रदूषित नहीं बताया जाता, वहीं धनबाद के साथ ऐसा नहीं हुआ. कारण राजनीतिक उदासीनता. उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश के प्रदूषित शहरों की सूची में इंदौर के सांवेर और संगरौली के बेढ़न का नाम है. सांवेर के कारण पूरे इंदौर या बेढ़न के कारण पूरे सिंगरौली को गंभीर रूप से प्रदूषित शहरों की सूची में नहीं डाला गया है. लेकिन झरिया के प्रदूषण के कारण पूरे धनबाद जिले को प्रदूषित शहरों की सूची में डाल दिया गया.
2009 के बाद सूची में बदला नाम : 2003 में तत्कालीन पर्यावरण और वन राज्य मंत्री दिलीप सिंह जूदेव ने राज्यसभा में लिखित उत्तर में देश के सर्वाधिक प्रदूषित 10 शहरों के नाम बताये थे. ये शहर थे उत्तर प्रदेश में आगरा, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, हरियाणा में फरीदाबाद, राजस्थान में जोधपुर, झारखंड में झरिया, बिहार में पटना, गुजरात में अहमदाबाद और राजधानी दिल्ली. उस समय तक झरिया के वायु प्रदूषण की सजा पूरे धनबाद जिले को नहीं दी जाती थी. 2009 के बाद अचानक वायु प्रदूषण के लिहाज से गंभीर शहरों की सूची में झरिया की जगह पूरे धनबाद जिले का नाम आने लगा.
क्यों था जरूरी : अविभाजित बिहार के जमाने से औद्योगिक जिले के रूप में प्रतिष्ठित धनबाद ‘‘उद्योगों का कब्रगाह’’ बनता गया है. जिस धनबाद की पहचान कभी कोयला के साथ-साथ नौकरी व रोजगार की खदान के रूप में थी, उसी धनबाद में आज नौकरी व रोजगार करीब-करीब असंभव हो चुका है. जिस धनबाद में कभी दो जून की रोटी की तलाश में बिहार-यूपी समेत देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते थे, उसी धनबाद के वाशिंदे आज पेट की आग बुझाने देश के विभिन्न हिस्सों में जा रहे हैं. धनबाद का पूरा अर्थतंत्र उद्योग पर निर्भर रहा है. एक तरफ पुराने उद्योग बंद होते गये हैं. दूसरी तरफ नये उद्योगों पर रोक लगी हुई है. उद्योगपति निराश हैं. दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं. इधर, निरसा में रेलवे का वैगन बनानेवाली कंपनी ओम बेस्को रेल प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड का प्रोजेक्ट और एमपीएल का एक्सटेंशन प्रोजेक्ट प्रस्तावित है. सिंदरी में सेल की ओर से इस्पात, उर्वरक व बिजली के प्लांटों की स्थापना की योजना है. कई अन्य उद्योग प्रस्तावित हैं. बिना प्रतिबंध हटे, इन उद्योगों की स्थापना संभव नहीं थी.